परामर्श प्राथ की समस्या में प्रेरणा तथा स्वप्रतिमा की क्या भूमिका है?

परामर्श प्राथ की समस्या – परामर्श की प्रक्रिया में प्रार्थी स्वयं की समस्या के समाधान के लिए रास्ता खोजता है तो उसके अन्दर में वेग उत्पन्न होता है। वह प्रेरणा का रूप ले लेता है। उसे ही स्वप्रतिमा कहते है क्योंकि यह स्वयं के द्वारा प्राप्त होती है। इसमें प्रार्थी की स्वयं की समस्या होती है। उसके निम्नलिखित पहलू हैं जो निम्न है

  1. छात्र को उसी सफलता के महत्व के विषयों की जानकारी प्रदान करने के लिए प्रेरणा का होना।
  2. छात्र को शैक्षिक एवं व्यावसायिक चयन की योजना निर्माण में स्वप्रियता को सहायता मिलना।
  3. शैक्षिक प्रति हेतु यथोचित प्रयास करने की प्रेरणा छात्र को देना।
  4. छात्रों में विशिष्ट योग्यताओं एवं सही दृष्टिकोण को प्रोत्साहित तथा विकसित करना।
  5. छात्रों को स्वयं की योग्यताओं, रूचियों, एवं अवसरों आदि को समझकर स्वयं को और भली प्रकार समझने में सहायता करना ?
  6. छात्रों को स्वयं की कठिनाइयों को हल करने की योजना बनाने में सहायता करना।
  7. शिक्षक एवं विद्यार्थी के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों की भावना विकसित करना, तथा।
  8. छात्रों के सम्बन्ध में वे सूचनाएं प्राप्त करना जो उसकी समस्याओं के निराकरण में सहायक हो।

चार्ल्स ग्राण्ट के शैक्षिक प्रयास को बताइये।

परामर्श की प्रक्रिया के जो उद्देश्य हैं उनकी प्राप्ति, प्रक्रिया के अन्य अंगों सेवार्थी तथा उपबोधक के सम्बन्धों पर निर्भर करती है। जिसमें प्रेरणा तथा स्वप्रितमा का बहुत बड़ा महत्व होता है।

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