वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता क्यों हैं ?

वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता

वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता इस प्रकार होती है

  1. व्यक्तिगत जीवन में सुख-शान्ति एवं सन्तोष का विकास करने हेतु
  2. व्यक्तिगत समस्याओं के सन्दर्भ में सही निर्णय लेने हेतु
  3. व्यक्तिगत समायोजन की क्षमता का विकास करने हेतु
  4. व्यक्तिगत कौशलों का विकास करने की दृष्टि से
  5. पारिवारिक एवं व्यावसायिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने हेतु तथा।
  6. पारस्परिक तनावों को कम करने हेतु।

उपरोक्त आवश्यकताओं का संक्षिप्त वर्णन यहाँ दिया गया है

(1 ) व्यक्तिगत जीवन में सुख-शान्ति एवं संतोष का विकास करने हेतु

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में अधिक से अधिक सुख, शान्ति एवं संतोष चाहता है। प्राया यह देखने में आना है कि विभिन्न दृष्टियों से बहुत कुछ उपलब्ध करने के उपरान्त भी व्यक्ति में संतोष वृत्ति का उदय नहीं हो पाता और मृत्युपर्यन्त कुछ न कुछ और पाने की धुन में तनावग्रस्त बना रहता है। इसी स्थिति में जो उपलब्ध है, उसका सुख भी वह नहीं भोग पाता है और परिणामतः अशान्त रहता है। ऐसा नहीं है कि सुख, सन्तोष अथवा शान्ति की स्थिति को प्राप्त कर पाना असम्भव है। यह सम्भव है, परन्तु इसके लिए जिस आत्मबोध का विकारा आवश्यक है, उससे प्रायः हम वंचित रहते हैं। व्यक्तिगत निर्देशन के द्वारा व्यक्ति में इस आत्मबोध का विकास किया जा सकता है।

( 2 ) व्यक्तिगत समस्याओं के सन्दर्भ में सही निर्णय लेने हेतु

निर्णय लेने की क्षमता का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सर्वाधिक महत्व होता है जो व्यक्ति अपने वैयक्तिक जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के सन्दर्भ में समुचित निर्णय लेने में दक्ष होता है. निःसन्देह वही व्यक्ति अपेक्षाकृत अधिक प्रगति करने की दिशा में सफल हो पाता है। अतः इस क्षमता का विकास बाल्यकाल से ही किया जाना चाहिए। इस दिशा में व्यक्ति को यह बताया जा सकता है कि उसे किस प्रकार अपनी क्षमता, योग्यता, समय एवं साधनों के सन्दर्भ में निर्णय लेना चाहिए तथा निर्णय लेते। समय किस मानसिक प्रक्रिया को प्रयुक्त करना चाहिए।

हिन्दू विवाह की प्रमुख समस्याएं क्या हैं?

(3 ) व्यक्तिगत समायोजन की क्षमता का विकास करने हेतु

व्यक्तिगत समायोजन की क्षमता का, विशेषकर वर्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त महत्व है। परिवार, समुदाय अथवा समाज के व्यक्तियों से बने सम्बन्धों को यह क्षमता प्रभावित करती ही है, व्यक्ति के निजी एवं भावी जीवन की दृष्टि से भी समायोजन की क्षमता का अधिक महत्व होता है। अपने एवं दूसरे व्यक्ति के मध्य सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना एवं उनको यथावत बनाए रखना ही इस योग्यता की कसौटी हैं इसलिए अपना एवं समाज के सदस्यों का सही अध्ययन एवं मूल्यांकन नितान्त आवश्यक होता है। इस योग्यता का व्यक्ति की शैक्षिक एवं व्यावसायिक समाज में समायोजित नहीं हो पाता है वह अपने विद्यालयी जीवन तथा व्यावसायिक क्षेत्र में भी किसी न किसी दृष्टि से असमायोजित ही रहता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top