लोकसभा अध्यक्ष की नियुक्ति शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।

लोकसभा अध्यक्ष की नियुक्ति – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि लोकसभा अपने सदस्यों में से दो को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनती है। प्राय: जिस राजनीतिक दल का लोकसभा में बहुमत होता है, उसी दल का सदस्य निर्वाचित होकर अध्यक्ष पद पर नियुक्त हो जाता है। परन्तु अब यह परम्परा विकसित हो रही है कि अध्यक्ष का चयन लोकसभा का बहुमत प्राप्त दल कर लेता है और उपाध्यक्ष का चयन विपक्षी दल मिलकर कर लेते हैं। इस प्रकार लोकसभा अध्यक्ष की नियुक्ति प्रायः सर्वसम्मति से ही जो जाती है। वह लोकसभा भंग हो जाने की स्थिति में भी नयी लोकसभा की प्रथम बैठक की तिथि तक अपने पद पर बना रहता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति पर उपाध्यक्ष सदन की अध्यक्षता करता है। दोनों की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही के संचालन हेतु पहले से वरिष्ठता के अनुसार 6 सदस्यों की सूची तैयार कर ली जाती है। जिसमें से वरिष्ठता के अनुसार कोई सदस्य सदन की अध्यक्षता करता है। लोकसभा अध्यक्ष सदन के विश्वास पर्यन्त ही अपने पद पर बना रह सकता है परन्तु अविश्वास की स्थिति में एक विशेष प्रक्रिया द्वारा लोकसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से उसको पद से हटाया जा सकता है या वह स्वयं त्यागपत्र दे दे।

लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ एवं कर्तव्य

भारतीय संविधान व्यवस्था में लोक सभा के अध्यक्ष का पद बड़ा ही उत्तरदायित्व युक्त पद है। भारतीय संविधान द्वारा लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ एवं कर्तव्य निर्धारित नहीं किए गए हैं परन्तु संसदीय कार्यवाही की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन सम्बन्धी नियमों के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियों एवं कर्तव्य निम्नलिखित है:

  1. प्रधानमन्त्री के परामर्श से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर वाद-विवाद के लिए समय निश्चित करना।
  2. लोकसभा के नेता (प्रधानमन्त्री) के परामर्श से सदन की कार्यवाही का संचालन करना।
  3. प्रवर समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति करना ।
  4. लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता और कार्यवाही का संचालन करना।
  5. किसी विचाराधीन विधेयक पर वाद-विवाद रोकने सम्बन्धी प्रस्ताव प्रस्तुत करनकी अनुमति देना।
  6. सदस्यों से प्रश्न पूछने की अनुमति प्रदान करना।
  7. सदस्यों को भाषण की अनुमति देना तथा उनका क्रम व समय निश्चित करना।
  8. कार्य स्थगन प्रस्तावों को प्रस्तुत करने की अनुमति देना।
  9. किसी विधेयक को समाचार-पत्र में प्रकाशित करने के लिए अनुमति प्रदान करना।
  10. विधेयकों तथा प्रस्तावों पर सदन में मतदान कराना एवं परिणाम की घोषणा करना। प्रस्तावों के पक्ष और विपक्ष में समान मतदान होने की स्थिति में अपना निर्णायक मत देना।

संसदीय व्यवस्था की विशेषतायें।

इस प्रकार संसदीय परम्पराओं के विकास में लोकसभा अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारत में लाकसभा अध्यक्ष की स्थिति ब्रिटिश कामन्स सभा के अध्यक्ष व अमेरिकन प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष के बीच की है। ब्रिटेन का अध्यक्ष पूर्णरूप से अराजनीतिक व्यक्ति होता है। वह अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हो जाने के बाद अपने राजनीतिक दल से त्यागपत्र दे देता है परन्तु भारत में अभी तक इस परम्परा का पूर्ण रूप से निर्वाह नहीं किया जा रहा है। हमारे देश के लोकसभा अध्यक्ष व्यवहार में अपने राजनीतिक दल से बने रहते हैं। यद्यपि वह दलगत राजनीति से ऊपर होता है। वह सदन में किसी मतदान में भाग नहीं लेता, पर समान मत आने की स्थिति में वह अपना निर्णायक मत देता है। उल्लेखनीय है कि लोकसभा अध्यक्ष का पद अत्यधिक प्रतिष्ठा, सम्मान, गरिमा एवं गौरव का पद है। भारतीय संविधान में यह अत्यधिक महत्वपूर्ण पद है।

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