नगरीय जीवन की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं-
1.शिक्षित और तर्क
प्रधान जीवन नगरीय समुदाय की अन्तिम महत्त्वपूर्ण विशेषता शिक्षित और विवेकशील जीवन का होना है। राजनीतिक जीवन के केन्द्र होने के कारण नगरों में शिक्षा की सुविधाएं सबसे अधिक होती हैं और सामाजिक जागरूकता होने के कारण व्यक्ति शिक्षा को सबसे अधिक आवश्यक भी मानते हैं। अन्धविश्वासों और रूढ़ियों का प्रभाव नगर में न्यूनतम होता है। नगरीय पर्यावरण में अधिकांश व्यक्ति ऐसे तथ्य में विश्वास नहीं करते जिसे तर्क के द्वारा प्रमाणित न किया जा सकता हो। परम्पराओं के प्रति उदासीनता और नवीनता के प्रति प्रेम, नगर की स्थायी विशेषता है। कुछ सामाजिक समस्याएं जिन्हें ‘सनातनी’ (conservative) कहना उचित होगा, नगरों में बिल्कुल भी देखने को नहीं मिलतीं। इस प्रकार नगरीय पर्यावरण कुछ अर्थों में प्रगतिशील भी है।
2. सामाजिक गतिशीलता
नगरीय समुदाय में स्थानीय गतिशीलता की ही अधिकता नहीं होती, बल्कि सार्वजनिक गतिशीलता भी अपनी चरम सीमा पर होती है। नगरीय पर्यावरण व्यक्ति की पारिवारिक पृष्ठभूमि को महत्व न देकर उसकी व्यक्तिगत सफलताओं को सबसे अधिक महत्व देता है। यहां साधारणतया व्यक्तियों द्वारा एक-दूसरे की कार्यक्षमता, आविष्कार करने के गुण तथा व्यवहारकुशलता को महत्त्व दिया जाता है। इस स्थिति में एक व्यक्ति अपने जीवन काल में ही अपने सामाजिक पद को बहुत ऊंचा उठा सकता है अथवा कुछ समय तक बहुत ऊंची स्थिति में रह लेने के बाद एकाएक सभी सुविधाओं से वंचित हो जाता है। यह परिस्थिति व्यक्ति के सामाजिक जीवन को अत्यधिक असुरक्षित बना देती है।
3. व्यक्तिवादिता और प्रतिस्पद्ध
नगरीय जीवन में सभी प्रकार की क्रियाओं का आधार व्यक्तिगत लाभ और व्यक्तिवादी धारणाएं होती डेविस का कथन है कि नगरों में व्यक्तिवादिता इस सीमा तक पायी जाती है कि व्यक्ति प्रत्येक क्षेत्र में अपने को सबसे अधिक चतुर और साधन सम्पन्न प्रमाणित करके अधिकतम लामों को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है, चाहे उसके कार्य से सार्वजनिक जीवन को कितनी भी हानि होने की आशंका क्यों न हो। इसी स्थिति ने प्रतिस्पर्द्धा को जन्म दिया है। वर्तमान समय में नगरों की प्रतिस्पर्द्धा आर्थिक क्षेत्र तक ही सीमित न रहकर सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक क्षेत्र में भी फैल गयी है। व्यक्ति के सामने एक ही सम्बन्ध प्रधान है जिसे हम आर्थिक सम्बन्ध कहते हैं। समाज सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन भी प्रतिस्पर्द्धा के अभाव से अछूता नहीं रहा है।
4. स्थानीय पृथक्करण
नगरीय समुदाय में अम-विभाजन और विशेषीकरण के कारण प्रत्येक कार्य का स्थान पूर्णतया नियत होता है। इसके आधार पर समाजशास्त्र में ‘क्षेत्रीय सम्प्रदाय तक की धारणा विकसित हो गयी है। नगर के बिल्कुल मध्य भाग में वे कार्यालय होते हैं जो सार्वजनिक जीवन के लिए उपयोगी हैं। इनके चारों ओर प्रमुख व्यापारिक संस्थान, होटल रेस्टोरेण्ट तथा मनोरंजन के साधन उपलब्ध होते हैं। नगर के अन्दर घनी बस्ती वाले क्षेत्र होते हैं जिनमें श्रमिक और कम आय वाले वर्ग निवास करते हैं। सबसे बाहर के क्षेत्र में धनी और प्रतिष्ठित वर्ग के निवास स्थान तथा विलासी संस्थान होते हैं। इस प्रकार नगरीय समुदाय प्रत्येक क्षेत्र में विशेषीकृत होते हैं।
5. द्वतीयक सम्बन्धों की प्रधानता
द्वतीयक सम्बन्धों का अर्थ है अपने हितों की पूर्ति के लिए स्थापित किये गये सम्बन्ध नगरों में विभिन्न समितियों समूहों और संगठनों की सदस्यता का आधार द्वैतीयक सम्बन्ध ही है। इसका मुख्य कारण नगरों की जनसंख्या में व्यक्तियों की एक-दूसरे से भिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का होना है। नगरों में व्यक्तियों में पारस्परिक सम्बन्ध ही द्वैतीयक होते है, जैसे-पुलिस, न्यायालय तथा कानून आदि। नगरों में व्यक्तिगत स्वार्थ इतने प्रभावपूर्ण होते हैं कि नैतिकता तथा आदर्श नियमों के आधार पर ही नियन्त्रण की स्थापना नहीं की जा सकती।
6. आर्थिक क्रियाओं के केन्द्र
नगरों का निर्माण आर्थिक जीवन की सफलता से हुआ और आज भी नगरीय समुदाय आर्थिक क्रियाओं के केन्द्र बने हुए हैं। नगर में अधिकतर व्यक्ति बड़ी मात्रा के उत्पादन और प्रशासन सम्बन्धी कार्यों में लगे होते हैं। यातायात, संचार, सुरक्षा व न्याय की अधिक सुविधाएं होने के कारण सभी साहसी (enterprising) व्यक्ति नगरों में ही स्थायी रूप से रहना पसन्द करते हैं। वास्तविकता यह है कि आर्थिक क्रियाओं का केन्द्रीकरण होने के कारण ही नगरों की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
7. जनसंख्या में विभिन्नता
नगरीय समुदाय का आकार ही बड़ा नहीं होता बल्कि इसकी जनसंख्या में धर्म, भाषा, व्यवसाय और जीवन-स्तर के आधार पर अत्यधिक विषमता भी पायी जाती है। नगरों से विभिन्न भाषा-भाषी, धर्मों, सम्प्रदायों, विचारों, जातियों, वर्गों व प्रान्तों के व्यक्ति एक साथ रहकर कार्य करते हैं। उनकी वेश-भूषा, जीवन स्तर और आदर्शों में अत्यधिक भिन्नता पायी जाती है। इस प्रकार नगर एक ऐसे समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है जहां सभी को अपनी रुचि तथा आवश्यकता वाले समूह मिल जाते हैं। व्यक्ति इनमें से किसी भी समूह की सदस्यता प्राप्त करने के लिए पूरी तरह स्वतन्त्र होता है।