कार्कोट वंश
पूर्व मध्यकाल में कार्कोट कश्मीर का सबसे महत्वपूर्ण वंश था। कार्कोट वंश की स्थापना दुर्लभवर्द्धन ने की थी। दुर्लभवर्द्धन (627-649ई.) गोनन्द वंश के अन्तिम राजा बालादित्य का अधिकारी था। दुर्लभवर्द्धन के ही समय में स्वेनसांग कश्मीर की यात्रा पर गया था। स्वेनसांग बताता है कि सिन्धु के पूर्व का तक्षशिला प्रदेश हजारा, सिंहपुर, पूँछ तथा राजापुर कश्मीर के अंग थे। दुर्लभवर्द्धन के बाद उसका पुत्र दुर्लभक कार्कोट वंश का अगला राजा हुआ। इसके अनेक सिक्के प्राप्त हुये हैं। उन पर उसे श्रीप्रताप कहा गया है। इसने प्रतापपुर नामक नगर बसाया था दुर्लभक के बाद उसका सबसे बड़ा पुत्र चन्द्रापीड राजा बना नी वर्ष के शासन काल के पश्चात् उसकी मृत्यु हो गयी। इसके बाद दुर्लभक का दूसरा पुत्र तारापीड राजा बना जिसे कल्हण ने क्रूर तथा निर्दयी राजा बताया है। चार वर्ष के अल्पकालीन शासन के पश्चात् उसकी भी मृत्यु हो गयी।
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इसके बाद दुर्लभक का सबसे छोटा पुत्र ललितादित्य मुक्तापीड राजा बना जो इस वंश का सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली शासक था। उसकी मृत्यु के पश्चात् जयापीड शासक बना। उसके शासनकाल के साथ इस वंश का पराभव प्रारम्भ हो गया। कार्कोट वंश के विषय में सम्पूर्ण जानकारी हमें कल्हण कृत राजतरंगिणी से प्राप्त होती है।