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‘सबको शिक्षा सुलभ कराना’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

सबको शिक्षा सुलभ कराना

सबको शिक्षा सुलभ कराना हमारी देश की अति प्राचीन मान्यता के अनुसार शिक्षा हर व्यक्ति के जीवन-निर्माण के लिए आवश्यक है। इसी कारण प्राचीन ऋषियों ने हर मनुष्य के लिए जो संस्कार निश्चित किए थे उनमें से दो थे, ‘उपनयन और वेदारम्भ/विद्यारम्भ’। इन्हें आधुनिक शब्दावली में औपचारिक शिक्षा शुरू करने के संस्कार कह सकते है। पर कालान्तर में संस्कारों का मूल उद्देश्य तिरोहित होता गया और संस्कार कर लेना एक रूढ़ि बन गया। कुछ संस्कार तो समाज के कुछ लोगों के लिए विशेष रूप से स्त्रियों और शूद्रों के लिए निषद्ध कर दिए गए। इससे शिक्षा की परम्परा शिथिल पड़ती गई और अन्ततः ऐसी सामाजिक व्यवस्था विकसित हुई जिसमें शिक्षा प्राप्त करना सबके लिए सम्भव रहा ही नहीं ऐसे माहौल में जब संयुक्तराष्ट्र ने वर्ष 1990 में ‘सबके लिए शिक्षा की घोषणा की, तो अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आधारभूत शिक्षा के विभिन्न पक्षों पर गया।

इस घोषणा का प्रभाव हमारी वर्तमान राष्ट्रीय नीतियों पर भी पड़ा और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कतिपय विशेष योजनाएं बनाई गई। इनमें से कुछ की चर्चा पीछे की जा चुकी है। जैसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 1992 में संशोधन, शिक्षा को बच्चों का मूलभूत अधिकार बनाने से सम्बन्धित संविधान ( 86वाँ संशोधन) अधिनियम 2002 आदि।

संस्कृति का शिक्षा का प्रभाव डालिए।

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