भारतीय विद्यालयों में निर्देशन की आवश्यकता की व्याख्या कीजिए। हमारे विद्यालयों में किस प्रकार का निर्देशन किया जाना चाहिए और क्यों?

भारतीय विद्यालय मे निर्देशन सेवाओं का संगठन

भारतीय विद्यालयों मे निर्देशन हमारे देश में शैक्षिक नों का विद्यालय में शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति सर्वांगीण विकास करना है। इस प्रक्रिया में निरन्तर शिक्षक की भूमिका का विशेष महत्व होता है। शिक्षक का प्रमुख कार्य शिक्षण करना है परन्तु मात्र शिक्षण कार्य में ही संलग्न रहकर वांछित विकास की क्रिया को सम्पन्न कर पान कठिन है। जब तक एक शिक्षक को यह ज्ञात नहीं होगा कि अधिगम व समायोजन से सम्बन्धित समस्यायें कौन सी है? कौन सा छात्र इन समस्याओं के समाधान के अभाव में पीछे रह गया है तथा इस प्रकार की समस्याओं के समाधान हेतु किस प्रकार सहायता प्रदान की जा सकती है? यह अपने निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं कर सकता है यदि शिक्षण एवं अधिगम की प्रक्रियाका वस्तुनिष्ठ रूप में अधिक महत्वपूर्ण निर्देशन की प्रक्रिया है। इस दृष्टि पर पहुँच सकते हैं कि शिक्षण से भी अधिक महत्वपूर्ण निर्देशन की प्रक्रिया है। इस दृष्टि से यह आवश्यक है कि विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं को ध्यान में रखते हुए प्रमुख स्थान दिया जाये। इसके लिये विद्यालयी निर्देशन सेवा संगठन के विभिन्न पक्षों से परिचित होना आवश्यक है। इसी के आधार पर विद्यालयी छात्रों की समस्याओं के सन्दर्भ में उचित सहायता का प्रावधान एवं उसकी व्यावहारिक क्रियानिति संभव है।

विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन के आधारभूत विचार

एम्फी एवं ट्रेक्सतर ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक (Guidance Services) में विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन हेतु सात आधारभूत विचार दिए हैं, जिनका उल्लेख निम्नलिखित है

  1. विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन के समय ही निर्देशन कार्यक्रम के उद्देश्य का स्पष्ट निर्धारण कर लेना चाहिए। उद्देश्यों का निर्धारण, छात्र एवं समुदाय की आवश्यकताओं और शिक्षण संस्था के आदर्शों को दृष्टि में रखकर ही किया जाना चाहिए।
  2. साररूप में निर्देशन सेवा के माध्यम से पूर्ण किये जाने वाले कार्यों का भी निर्धारण किया जाना चाहिये।
  3. निर्देशन सेवा में संलग्न कार्यकर्ताओं को निर्धारित कार्य सौंपे जाने चाहिये तथा प्रत्येक प्रत्येक कार्यकर्ता की विशिष्ट योग्यता को दृष्टि में रखकर ही कार्यों का विवरण किया जाना चाहिये।
  4. निर्देशन कार्यकर्ताओं को सौंपे गये कार्यों के अनुसार ही उनके अधिकार क्षेत्र को भी निर्धारित किया जाना चाहिये। इनके अलावा, संस्था के अन्य कर्मचारियों के साथ, उनके निर्देशन उत्तरदायित्वों के अनुरूप ही सम्बन्धों के स्वरूप को निर्धारित किया जाना चाहिये।
  5. निर्देशन सेवा के अन्तर्गत पूर्णकालिक तथा अंशकालिक कार्यकर्ताओं के सम्बन्धों की परिभाषा को स्पष्ट किया जाना चाहिये। इनके अलावा, संस्था के अन्य कर्मचारियों के साथ, उनके निर्देशन उत्तरदायित्वों के अनुरूप ही सम्बन्धों के स्वरूप को निर्धारित किया जाना चाहिये।
  6. निर्देशन सेवा संगठन का स्वरूप संस्था के गुणों, उद्देश्यों कर्मचारियों की संख्या, आर्थिक साधन एवं आकार के अनुरूप होना चाहिये।
  7. यथासंभव, विद्यालय-निर्देशन सेवा का संगठन जटिल नहीं होना चाहिये। संगठन के कार्यक्रम को सरल बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। व्यापक एवं जटिल सेवा संगठन योजनायें देखने में तो अच्छी लग सकती हैं, लेकिन विद्यालय की सीमाओं को देखते उनको सफलतापूर्वक क्रियान्वित करना संभव नहीं है।

विद्यालय निर्देश सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्य

वैसे तो निर्देशन का क्षेत्र असीमित है, लेकिन विद्यालय जीवन से सम्बन्धित कतिपय ऐसे विशिष्ट कार्य होते हैं, जिन पर निर्देशन सेवायें ही ध्यान देती है तथा इन्हीं के द्वारा उन कार्यों को किया जा सकता है

  1. बालक को विद्यालय में प्रवेश पाने तथा विद्यालयी जीवन की ओर उन्मुख करना, निर्देशन सेवा का विशिष्ट कार्य है। विद्यालय में प्रवेश के नियम, समय, शुल्क तथा योग्यता से सम्बन्धित विभिन्न सूचनायें छात्र को निर्देशन सेवा प्रदान करती हैं।
  2. निर्देशन सेवा छात्रों से सम्बद्ध अभिलेख, छात्रों की प्रगति तथा मूल्यांकन से सम्बन्धित सूचनायें एवं अन्य विवरण को समुचित एवं व्यवस्थित ढंग से रखती हैं।
  3. निर्देशन सेवा, छात्रों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित कार्य भी करती है।
  4. छात्रों के सामाजिक समायोजन, पारिवारिक समस्याओं नय अवकाश सम्बन्धी निर्देशन प्रदान करना निर्देशन सेवा का विशिष्ट कार्य है।
  5. निर्देशन सेवा का अन्य विशिष्ट कार्य है-प्रशासनिक कठिनाइयों, छात्रावास में भोजन इत्यादि की व्यवस्था करने में छात्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना।
  6. छात्रों के शिक्षण में आने वाली कठिनाइयों, उनके कारणों को विश्लेषण करके, विद्यार्थियों को शैक्षिक निर्देशन प्राप्त करना, निर्देशन सेवा का एक अन्य विशिष्ट कार्य है।
  7. छात्रों की आर्थिक कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करने वाले स्रोतों की सूचना प्रदान करना तथा उन्हें अंशकालिक नियुक्ति प्राप्त कराना भी, विद्यालय निर्देशन सेवा का कार्य है।
  8. अनेक छात्र ऐसे होते हैं, जो पढ़ते समय सही उच्चारण नहीं कर पाते हैं, उन छात्रों के निदानात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) की व्यवस्था करना, विद्यालयी निर्देशन से वा का विशिष्ट कार्य है।
  9. अध्ययन समाप्त कर लेने के उपरान्त नियुक्ति प्राप्त कर लेने के पश्चात् उनके निरन्तर जीवन की प्रगति तथा समस्याओं का अध्ययन करने का कार्य भी निर्देशन सेवा करती है।

विद्यालय निर्देशन सेवाओं के संगठन के प्रचलित अधिनियम

विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन के तीन अधिनियम प्रचलित हैं

  1. रेखीय संगठन (The Linear Organisation)
  2. कर्मचारी संगठन (The Staff Organisation) तथा
  3. रेखीय कर्मचारी मिश्रित संगठन (Combined Line and Staff Organisation)

(1) रेखीय संगठन

रेखीय संगठन के अन्तर्गत अधिकार क्रम से, कार्य करने वाले व्यक्तियों में उच्च से निम्न तक एक सीधा स्तरीकरण होता है यथा-मुख्य प्रशासकीय अधिकारी, सहायक अधिकारी तथा अधिकारियों के निरीक्षण का कार्य करने वाले अधीनस्थ कर्मचारी अधिकारी की दृष्टि से रेखीय संगठन का मुख्य प्रशासकीय अधिकारी सर्वोच्च होता है। प्रशासकीय अधिकारी का कार्य है अन्य अधिकारियों के मध्य कार्यों का वितरण करना तथा कार्य पूर्ण होने पर उनकी आंकलन करना।

( 2 ) कर्मचारी संगठन

इस संगठन के अन्तर्गत, कार्य-क्षेत्रों के मुख्य अधिकारी को ही मुख्य प्रशासकीय अधिकार सीपे जाते हैं। ये मुख्य अधिकारी अपने लिए उत्तरदायी होते हैं। कर्मचारी संगठन से मुख्य लाभ यह है कि इसमें प्रत्येक वर्ग के कर्मचारी अपने-अपने कार्यों में दक्ष हो जाते हैं।

दोनों प्रकार के संगठनों में, प्रशासकीय अधिकारी के हाथ में ही, प्रबन्ध की दृष्टि से नियंत्रण होता है, लेकिन कर्मचारी संगठन के अन्तर्गत, जिन कर्मचारियों को विशिष्ट कार्यों को सौंपा जाता है उनका एक निर्धारित अधिकार क्षेत्र तथा उत्तरदायित्व होता है।

3 ) रेखीय कर्मचारी मिश्रित संगठन

रेखा संगठन तथा कर्मचारी संगठन के संयुक्त रूप को, रेखीय कर्मचारी संगठन पद्धति के लाभ प्राप्त होते हैं। इस संगठन को प्रयोग, बड़े आकार की शिक्षण संस्थाओं में ही किया जा सकता है।

विद्यालयों के अनुरूप निर्देशन योजनाओं का स्वरूप

  1. छोटे विद्यालय हेतु निर्देशन सेवा संगठन की रूपरेखा,
  2. बड़े आकार के विद्यालयों को निर्देशन सेवा योजना का स्वरूप, तथा
  3. महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर निर्देशन संगठन की रूपरेखा।

निर्देशन सेवा संगठन की प्रारम्भिक आवश्यकताएँ

शिक्षण संस्थाओं में निर्देशन सेवा संगठन हेतु, निर्देशन सेवा समिति की मुख्य आधारभूत आवश्यकता है। इस निर्देशन सेवा समिति के प्रमुख रूप से तीन कार्य होते हैं

  1. विद्यालय में उपलब्ध, निर्देशन सुविधाओं का सर्वेक्षण करना.
  2. छात्रों की उन समस्याओं को संकलित करना, जिनके लिए निर्देशन की व्यवस्था करनी है, तथा
  3. विद्यालय के कर्मचारी वर्ग एवं साधनों की, निर्देशन योग्यता तथा निर्देशन कार्यक्रम में भाग लेने की रुचि का पता लगाना।

निर्देशन सेवा समिति, व्यापक सर्वेक्षण के माध्यम से उपरोक्त तीनों कार्यों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के उपरान्त ही संगठन सिद्धान्तों के अनुसार विद्यालय की निर्देशन योजना के रूप का निर्माण कर कार्यक्रम के उद्देश्यों को निर्धारित करती है। समिति को कार्यक्रम के उद्देश्य को निर्धारित करते समय, संस्था के उद्देश्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए, तदोपरान्त, संगठन सिद्धान्तों के आधार पर कर्मचारी या रेखीय संगठन का प्रारूप बना लेने के बाद ही समिति अपनी। संगठन योजनाको विद्यालय के कर्मचारी वर्ग एवं अधिकारी वर्ग की सामान्य सभा में प्रस्तुत कर सकेगी। सामान्य संस्था में सर्वसम्मति से कोई संशोधन करने की आवश्यकता हो तो उसे स्वीकर करके, समिति निर्देशन कार्यक्रम को अन्तिम रूप प्रदान करती है।

अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास का एकमात्र साधन शिक्षा है’ उपर्युक्त कर को स्पष्ट कीजिए।

निर्देशन कार्यक्रम में भाग लेने वाले व्यक्तियों में सहयोग तथा पारस्परिक उत्तरदायित्व की भावना होनी आवश्यक है

कोई भी निर्देशन- योजना तभी सफल हो सकती है, जब उसमें भाग लेने वाले व्यक्ति तथा विद्यार्थी परस्पर सहयोग एवं विश्वास की भावना से कार्य करें। निर्देशन समिति का गठन इस प्रकार किया जाय कि जिससे सभी कर्मचारियों को प्रतिनिधत्व प्राप्त हो सके और वे समिति के कार्यक्रम को स्वयं का कार्यक्रम मान सके।

अधिकारी तथा कर्मचारी वर्ग, सभी को अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह समुचित रूप में करना चाहिए क्योंकि यदि एक कर्मचारी अपने कार्य की उपेक्षा करता है तो उससे समग्र कार्यक्रम प्रभावित होता है। यदा-कदा समस्त निर्देशन सेवा संगठन से सम्बन्धित व्यक्तियों की बैठक होनी चाहिये जिससे निर्देशन कार्यक्रम में आने वाली कठिनाइयों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त कर, उसका समाधान सोचने हेतु प्रयास किये जा सकें।

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