यूजीसी की स्थापना, संगठन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।

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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी)

केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को अनुदान के विषय में परामर्श देने के लिए सन् 1945 में सरकार ने एक चार सदस्यीय विश्वविद्यालय अनुदान समिति का गठन किया था। सन् 1949 में राधाकृष्णन आयोग के सुझाव पर इसका क्षेत्र विस्तृत करके इसे अन्य विश्वविद्यालयों से सम्बन्धित किया गया तथा इसे विश्वविद्यालयों के लिए अनुदान धनराशि निश्चित करने का भी अधिकार प्रदान किया गया। सन् 1953 में इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) कहा गया।

स्थापना एवं संगठन

यूजीसी की स्थापना सन् 1953 में की गयी थी। सन् 1956 के संसद के अधिनियमानुसार इस संगठन का एक चेयरमैन होता है जो

सचिव की मदद से संगठन का संचालन संभालता है। इस आयोग में सचिव के अतिरिक्त जो अन्य सदस्य भी होते हैं जिसमें से तीन सदस्य विश्वविद्यालय के उपकुलपति, दो सदस्य केन्द्रीय सरकार के प्रतिनिधि तथा चार सदस्य शिक्षाशास्त्री या शिक्षा विशेषज्ञ होते हैं।

इसके अध्यक्ष को अंशकालिक अवैतनिक न रखकर वैतनिक व पूर्णकालिक रख गया। इसमें अध्यक्ष की सहायता के लिए, एक सचिव तथा अन्य आठ सदस्य रखे गये। इनमें से चार सचिवों का चुनाव विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों में से होता है, जबकि शेष चार वे हैं

  1. जो कृषि, वाणिज्य, वानिकी व उद्योग का ज्ञान व अनुभव रखते हैं,
  2. जो प्रौद्योगिकी, विधि, चिकित्सा या अन्य किसी प्रोफेशन में कार्यरत विद्वान हों,
  3. जो विश्वविद्यालयों के कुलपति हों,
  4. जो केन्द्र सरकार द्वारा उच्च शैक्षिक श्रेष्ठता प्राप्त करने वाले या प्रसिद्ध शिक्षाविद् माने गये हों।

सन् 1974 से आयोग में तीन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के अलावा टेक्नोलॉजी, कृषि, वैज्ञानिक, अनुसंधान, उद्योग व इंजीनियरिंग के प्रतिनिधियों को सदस्यता दी गई। सरकारी नियमानुसार अध्यक्ष का कार्यकाल पाँच वर्ष परन्तु 65 वर्ष की आयु तक तथा उपाध्यक्ष का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है। इस कार्यकाल को पुनः एक बार बढ़ाया जा सकता है। आयोग के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की नियुक्ति केन्द्र सरकार करती है तथा इनमें केन्द्र का प्रतिनिधित्व उसके दो अधिकारी वित्त सचिव तथा शिक्षा सचिव करते हैं।

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कार्य

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  1. शिक्षा के उच्च स्तर पर शिक्षा के विकास तथा विस्तार के लिए नवीन योजनाओं, कार्यक्रमों एवं परीक्षणों को क्रियान्वित कराना तथा उन्हें प्रोत्साहित करना।
  2. देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षा स्तर को ऊंचा उठाना, शिक्षण प्रक्रिया को अधिक उपयोगी बनाना, परीक्षा प्रणाली में सुधार लाना तथा शोध कार्यों में समन्वय स्थापित करते हुए उनमें प्रगति लाना और आवश्यक परामर्श देना ।
  3. विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं का निराकरण करना।
  4. विश्वविद्यालय छात्रावासों एवं शिक्षकों के आवास गृह के लिए व्यवस्था करना।
  5. देश में नवीन विश्वविद्यालयों की स्थापना करे तथा प्रचलित विश्वविद्यालयों के कार्य क्षेत्र के विषय में अनुमति प्रदान करना।
  6. विश्वविद्यालय की शैक्षणिक तथा आर्थिक क्रियाओं पर प्रशासनिक नियंत्रण रखना।
  7. विभिन्न पाठ्यक्रमों एवं परीक्षार्थियों को दी जाने वाली विभिन्न उपाधियों के विषय में शासन को परामर्श देना।
  8. विश्वविद्यालयों से चलने वाले पाठ्यक्रमों, परीक्षा-प्रणालियों तथा अन्वेषण कार्यों आदि के विषय में प्रदत्तों का संकलन करना।
  9. केन्द्रीय सरकार तथा विश्वविद्यालयों द्वारा उठने वाली प्रान्तियों, प्रश्नों तथा संदेहों को समाप्त करना तथा उन्हें उचित उत्तर देना ।

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