योगासनों के भेद
योगासनों के भेद – योगासन का अर्थ है स्थिति। योग का अभ्यास करने के लिए सुविधाजनक स्थिति में बैठना सुगमता से हो सके, उसमें बैठकर अभ्यास में तत्पर होना ही आसन का उद्देश्य है और इसलिये योगाचार्यों ने अनेक प्रकार के आसनों की कल्पना की है जिसमें से साधक अपने शरीर की स्थिति के अनुकूल प्रतीत होने वाले किसी भी आसन का प्रयोग कर सके। कुछ योगाचार्यों ने इनकी संख्या चौरासी मानी है। इनमें से 28 आसन ध्यानार्थ तथा 56 आसन रोगोपचार्थ माने हैं।
प्रायः शरीर के मुख्य दो भाग माने जाते हैं प्रथम स्थूल भाग जिसे शरीर कहते हैं तथा द्वितीय सूक्ष्म भाग जिसे मन कहते हैं। इनके आधार पर आसनों को दो भागों में विभक्त किया। जाता है:
- (ए) व्यायाम मुद्रा,
- (बी) ध्यान मुद्रा।
(अ) व्यायात्मक आसन
व्यायात्मक आसन वे हैं जो शरीर को सुडौल बनाते हैं। मांसपेशियों को दृढ़ बनाकर बल प्रदान करते हैं। साथ ही रोग निवारक शक्ति की वृद्धि करते हैं। और मन को शान्ति प्रदान करते हैं। इनके द्वारा शरीर-मन पर प्रभाव डाला जाता है जिससे मनोकायिक रोगों का उपचार सम्भव होता है। इनके अभ्यास से शरीर रोगों से बचा रहता है।
(ब) ध्यानात्मक आसन
ये आसन वे हैं जिनमें बैठकर साधक ध्यान करते हैं। इनके अभ्यास से काम-वासना को उत्तेजित करने वाले केन्द्र वश में हो जाते हैं। उनकी तीव्रता समाप्त हो जाती है और काम पर विजय मिल जाती है। मन से विकार निकल जाते हैं और शान्ति उपलब्ध हो जाती है।
आसनों के अतिरिक्त तथा इनके साथ यौगिक क्रियाओं काफी बहुत महत्व है क्योंकि इनके द्वारा शरीर के द्वार और अवयव स्वच्छ और शुद्ध किये जाते हैं। इनको घटकर्म कहा जाता
उदाहरणार्थ-दाँतों के लिये धौति, अन्तड़ियों तथा गुदा हेतु वस्ति, उदर के लिये नौलि, नेत्रों के लिये त्राटक, नासिका के लिये नेति आदि। इन क्रियाओं के करने से मात्र शरीर ही नहीं, वरन् मन भी पवित्र होता है और चित्त साधना में रत होकर शान्ति की अनुभूति करता है।
योगासन करने से पूर्व ध्यान रखने योग्य बातें-
यम, नियम तथा आसन तीनों एक दूसरे के पूरक है। बिना यम-नियम के आसन का कोई महत्व नहीं है। अतः आसन करने के पूर्व निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए
- योगासन करने के पूर्व शौच एवं स्नान अवश्य करना चाहिए।
- योगासन करते समय साधक का पेट खाली होना चाहिए।
- व्यायात्मक आसनों के लिये कम-से-कम दस मिनट और अधिक-से-अधिक तीस मिनट दिये जाने चाहिए।
- साधक को ताजा एवं सात्विक भोजन करना चाहिए। चाहिए।
- स्थान पर चटाई या दरी या आसनी आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
- योगाभ्यास शुद्ध वायु, स्वच्छ वातावरण तथा खुले, किन्तु एकान्त स्थान पर करना
- योगाभ्यास समतल तथा स्वच्छ भूमि पर किया जाना चाहिए। आवश्यकतानुसार उस
- बीमारी की अवस्था में योगाभ्यास नहीं करना चाहिए। 8. योगाभ्यास योग्य गुरु के निर्देशन में ही किया जाना चाहिए।
योग्य से लाभ
योगासन साधक को अनेक प्रकार के लाभ प्रदान करता है। आसन शरीर के विभिन्न महत्वपूर्ण अंगों जैसे नाड़ी प्रणाली, संज्ञानात्मक फाइबर प्रणाली, श्वसन प्रणाली, रक्त प्रणाली आदि पर प्रभाव डालते हैं। वे शक्तिशाली हो जाते हैं।
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सामान्य लाभों के रूप में योग से निम्नांकित लाभ है
- इनसे अंतड़ियाँ बजबूत होती हैं।
- पान शक्ति बढ़ती है।
- कब्ज दूर हो जाती हैं।
- मोटापा दूर हो जाता है और शरीर सुडौल बनता है।
- बाँहें, पंजे, पैर आदि मजबूत होते हैं।
- इनसे टाँगों की मांसपेशियों में शक्ति आती है।
- भूख बढ़ती है।
- स्मरण शक्ति बढ़ती है।
- ग्रीवा शक्ति विकास नामक आसन से स्पांडलाइटिस के दर्द में लाभ होता है।
- कोणासन से शरीर में स्फूर्ति आती है चेहरे पर रौनक आती है और मुहासे कम होते हैं। यह पीठ के दर्द में लाभदायक है।
- शलभ आसन से छाती बड़ी होती है और कमर में लचक आती है। साथ ही पेट के विकार दूर होते हैं।
- नौकासन से पेट का मोटापा कम होता है। यह खून के बहाव को ठीक करता है।
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