व्यवसाय निर्देशन की आवश्यकता
अब यह देखने के उपरान्त कि व्यवसाय निर्देशन क्या है तथा इसके उद्देश्य क्या है, हमारे सामने प्रश्न यह स्वतः ही उठ खड़ा होता है कि व्यवसाय निर्देशन क्यों दिया जाय ? इसकी क्या आवश्यकत है ? क्या निर्देशन के अभाव में कोई व्यक्ति अपना व्यवसाय चुन नहीं सकता है? इसके उत्तर में हम कह सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपना व्यवसाय तो चुन सकता है, परन्तु निर्देशन के अभाव में वह सफलता संभवतः ही प्राप्त कर सकता है। अतः व्यवसाय-निर्देशन की आवश्यकता निम्नांकित तथ्यों को ध्यान में रखने पर ही स्पष्ट दृष्टिगोचर हो सकेगी, यथा
(1 ) व्यवसायों में विभिन्नता
आधुनिक काल में व्यवसाय निर्देशन की आवश्यकता व्यवसायों में विविधता के कारण अधिक अनुभव की जाने लगी है। प्राचीनकाल में व्यवसायों की संख्या इतनी अधिक नहीं थी। अतः युवकों के सम्मुख व्यवसाय चयन की समस्या भी न थी। आज विद्यालय छोड़ने से पूर्व ही यह आवश्यक हो जाता है कि विद्यार्थियों को विद्यालय कार्यकाल में ही व्यावसायिक निर्देशन दे दिया जाय। विद्यार्थी के शिक्षण-काल में ही यदि विषयों का चुनाव उचित ढंग से उसकी योग्यता तथा कार्यक्षमतानुसार हो गया जो आगे चलकर उसे व्यवसाय चयन करने में असुविधा न होगी। अध्ययन के पश्चात उसे निर्देशन के अभाव में कई वर्ष बेकार बैठे रहना पड़ेगा, अथवा ऐसा व्यवसाय चुनना पड़ेगा जिसके वह उपयुक्त नहीं है। अतः यह आवश्यक है कि छात्र को विभिन्न व्यवसायों से परिचित कराया जाए, उसको आवश्यक योग्यताओं, क्षमताओं तथा शक्तियों का ज्ञान कराया जाए एवं छात्र की जो निहित शक्तियाँ है, उनका ज्ञान भी छात्र को कराया जाए, जिससे वह भावी जीवन के व्यवसाय से अपनी शक्तियों का मिलान करके उचित व्यवसाय का चयन कर सकें।
(2) छात्रों के भावी जीवन में स्थिरता लाना
छात्र जिस समय विद्यालय छोड़कर व्यवसाय में प्रवेश करता है तो वहाँ ऐसे वातावरण पाता है जिसके सम्बन्ध में उसे बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है। अज्ञात वातावरण में ठीक से समायोजित हो जाना सरल नहीं है। समायोजन की त्रुटि अल्पकाल में ज्ञात नहीं होती है, इसमें तो समय लगता है और जब अनुचित समायोजन का पता लगता है तब तक पर्याप्त समय गुजर चुका होता है। अत: यह आवश्यक है कि बच्चों को छात्र-जीवन में ही कार्य-जगत का पर्याप्त ज्ञान-प्रदान करा दिया जाय, जिससे छात्र-जीवन के पश्चात् तुरन्त ही वे व्यवसाय जीवन ही वे व्यवसाय जीवन में स्थिरता ला सकें और उन्हें शीघ्र ही अपने व्यवसाय बदलने न पड़े।
(3 ) व्यक्ति भिन्नताएँ
संसार में दो प्रकार की विभिन्नताएँ पायी जाती है व्यक्ति-विभिन्नताएं तथा व्यवसाय विभिन्नाएँ संसार में जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के व्यक्ति पाये जाते हैं, उसी प्रकार विभिन्न प्रकार के व्यवसाय भी दिखाई देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक कार्य नहीं कर सकता है, ठीक उसी प्रकार प्रत्येक कार्य व्यक्ति के उपयुक्त नहीं है। अब यह ज्ञान करना कि कौन व्यक्ति किस कार्य को कर सकता है तथा किस कार्य के लिए कौन व्यक्ति अच्छा तथा योग्य है, एक समस्या है। जब तक इन समस्या का समाधान नहीं हो जाता, समाज का कल्याण संभव नहीं है। इस कार्य हेतु हमें व्यवसाय निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।
( 4 ) आर्थिक दृष्टिकोण से आवश्यकता (
अक्सर देखने में आता है कि भारत जैसे देश में जहाँ बेकारी की समस्या अत्यन्त भयंकर रूप धारण किये हुए है, अनेक युवक विद्यालय छोड़ने के उपरान्त जिस व्यवसाय में उन्हें अवसर मिल जाता है, प्रवेश कर जाते हैं, चाहे उस व्यवसाय में उनकी रूचि हो अथवा नहीं।
(5) स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यकता
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी व्यवसाय निर्देशन की अत्यन्त आवश्यकता हैं अरूचिकर व्यवसाय श्रमिक के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है, अरूचिकर व्यवसाय में श्रमिक कोई भी रूचि नहीं लेगा, विना इच्छा के कार्य करेगा, उसका उत्साह जाता रहेगा, उसे अपना जीवन नीरस मालूम पड़ेगा, चिन्ताएँ उसे घेर लेगी और अन्त में वह अपना स्वास्थ्य खो देगा। कुछ व्यवसाय पूरे शरीर की क्रिया न चाहते हुए कुछ विशेष अंगों की क्रिया चाहते हैं। यदि वह विशेष अंग उसे व्यक्ति का पहले से ही खराब हुआ तो वह और भी ज्यादा खराब हो जायगा। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को ऐसा कार्य दिया गया है जो आंख के द्वारा किया जाता है और उस व्यक्ति की आँख पहले से ही खराब है तो वे और भी खराब हो जायेंगी। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से भी व्यवसाय निर्देशन आवश्यक है।
(6) अरूचिकर व्यवसाय में व्यक्तित्व सस
व्यक्ति के अनुपयुक्त एवं अरुचिकर व्यवसाय में ठहरने पर उसको आर्थिक हानि तो होती ही है, परन्तु उसके साथ ही साथ उसके व्यक्तित्व का विनाश भी हो जाता है। उपयुक्त व्यसाय में ही श्रमिक की खुशियाँ, सन्तोष तथा व्यक्तिगत विकास निहित है। और इनके माध्यम से ही व्यक्तित्व का विकास सम्भव है। यदि व्यक्ति को अरूचिकर एवं अनुपयुक्त व्यवसाय में कार्य करना पड़ता है तो उसका जीवन नीरस, असन्तोषजनक एवं निराशा में व्यतीत होत है, फलता उसके व्यक्तित्व का इस होता है व्यवसाय निर्देशन की सहायता से व्यक्ति को उपयुक्त व्यवसाय में डाला जा सकता है तथा उनके व्यक्तित्व में होने वाले हास को रोका जा सकता है।
(7) व्यवसाय निर्देशन के व्यक्तिगत एवं सामाजिक मूल्य
उपयुक्त व्यवसाय यही है जहाँ कर्मचारी अधिकतम सन्तोष, सुख, उत्साह एवं आशा का अनुभव करे। इसी में उसके वास्तविक जीवन का विकास सम्भव है। मनुष्य का सामाजिक इकाई के रूप में मूल्य तभी है, जब वह अधिकतम सामाजिक कल्याण करता है। वह हितैषी तभी है जब वह मानव संसार की अधिकतम भला करता है। ये कार्य मनुष्य जीविका जगत से बाहर रहकर नहीं कर सकता है तथा जीविका जगत में सफलता उसी समय सम्भव है जब जीविका उपयुक्त हो जब मनुष्य उपर्युक्त कल्याणकारी कार्यों को सफलतापूर्वक करता है तो हमें समझना चाहिए कि वह उपयुक्त व्यवसाय में नियुक्त हैं यदि ऐसा नहीं है तो उसे व्यवसाय निर्देशन की आवश्यकता है।
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( 8 ) मानवीय शक्तियों का उपयुक्त प्रयोग करने हेतु
व्यवसाय निर्देशन के माध्यम से छिपी हुई क्षमताओं को ज्ञात किया जाता है। संसार में अनेक ऐसी विभूतियाँ नष्ट हो गयी जो अवसर न मिलने के कारण अपने ज्ञान-प्रकाश से हमारा मार्ग दर्शन न कर सकी तथा हमेशा हमेशा के लिए लुप्त हो गयी। इस बात को भाषा के महान कवि ग्रे (Gray) ने इस प्रकार व्यक्त किया है।
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