व्यक्तिगत निर्देशन की प्रक्रिया तथा आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।

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व्यक्तिगत निर्देशन की प्रक्रिया – शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन के अतिरिक्त जितनी भी समस्याएँ व्यक्ति के समक्ष आती हैं, उन समस्याओं को व्यक्तिगत निर्देश के अन्तर्गत रखा जाता है। प्रायः व्यक्तिगत जीवन को चार प्रमुख पक्षों में विभक्त किया जाता है- शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक एवं सामाजिक। इन समस्त क्षेत्रों में उत्पन्न समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करना ही व्यक्तिगत निर्देशन की कार्यविधि के

अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। इस दृष्टि से व्यक्तिगत निर्देश का क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक व्यापक होता है। बाल्यवस्था से लेकर प्रौढावस्था तक व्यक्तिगत निर्देशन की सतत् रूप से आवश्यकता होती है। वस्तुतः प्रायः प्रत्येक प्रकार का निर्देशन व्यक्तिगत रूप में ही सम्पन्न होता है।

व्यक्तिगत निर्देशन के आधारभूत प्रत्यय

व्यक्तिगत निर्देशन की प्रक्रिया, जिन सिद्धान्तों पर आधारित होती है, वह इस प्रकार है

  1. व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान हेतु अर्न्तदृष्टि के विकास का विशेष महत्व होता है।
  2. व्यक्ति से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान की दिशा में उसकी अपनी धारणा सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
  3. व्यक्ति के जीवन से सम्बन्धित समस्त समस्याओं में अपना सम्बन्ध रहता है।
  4. प्रत्येक व्यक्तिगत समस्या के साथ कोई न कोई संवेगात्मक पहलू भी संयुक्त रूप से प्रभावित रहता है।
  5. वैयक्तिक समसओं का जन्म केवल प्रत्यक्ष कारणों से ही नहीं होता वरन् अनेक परोक्ष कारण इनके लिए उत्तरदायी होते हैं। अतः इन समस्याओं से सम्बन्धित मूलकारणों की खोज के आधार पर ही इस प्रकार की समस्याओं के समाधान की दिशा में सहायता प्रदान की जानी चाहिए।

व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्य

व्यक्तिगत निर्देशन के अधोलिखित उद्देश्य होते हैं

  1. व्यक्ति में समायोजन की योग्यता का विकास करना।
  2. पारस्परिक सम्बन्धों को बताये रखने से सम्बन्धित कौशल के विकास में सहायता प्रदान करना।
  3. जीवन से सम्बन्धित विभिन्न परिस्थितियों में विवेक एवं सूझयुक्त व्यवहार का विकास करने में सहयोग प्रदान करना।
  4. व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित समस्याओं की जानकारी प्राप्त करने, उनके कारणों एवं प्रभावों को खोजने तथा उनका समाधान खोजने में सहायता देना।
  5. व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के सन्दर्भ में निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना।
  6. परिवार एवं समाज में सम्बन्धित सदस्यों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने की योग्यता का विकास करने में सहायता देना।
  7. अपने स्वास्थ्य के प्रति निरन्तर सचेत रहने तथा मानसिक एवं सांवेगिक सन्तुलन को बताये रखने में सहायता प्रदान करना।
  8. व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित समस्याओं का बोध एवं उन समस्याओं का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण करने की योग्यता का विकास करना।

व्यक्तिगत निर्देशन की प्रक्रिया

व्यक्तिगत निर्देशन की प्रक्रिया अथवा उसी कार्यप्रणाली का संचालन करने के लिए विभिन्न सोपानों का क्रमिक रूप से अनुसरण करना आवश्यक होता है। इन सोपानों का उल्लेख निम्नलिखित है

प्रथम सोपान सर्वप्रथम यह आवश्यक होता है कि जिस व्यक्ति की समस्याओं के सन्दर्भ में प्रयास किया जा रहा है, उस व्यक्ति के साथ इस प्रकार के सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना की जाए, जिससे वह अपनी समस्याओं के सन्दर्भ में निःसंकोच विवरण दे सके।

द्वितीय सोपान व्यक्तिगत निर्देशन के दूसरे सोपान के अन्तर्गत, विभिन्न प्रकार की मापनियों एवं परीक्षणों के आधार पर, व्यक्ति की रूचि एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं की जानकारी प्राप्त की जाती है।

तृतीय सोपान-रूचि एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं की जानकारी प्राप्त कर लेने के उपरान्त मनोविश्लेषणात्मक विधियों के आधार पर व्यक्ति के अहं (Ego), इसमें पराहम (Super-ego) की स्थिति तथा समायोजन से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन एवं मूल्यांकन किया जाता है।

चतुर्थ सोपान उपरोक्त अध्ययन एवं मूल्यांकन के उपरान्त, वास्तविक, समस्या के. समाधान की दिशा में व्यक्ति को परामर्श प्रदान किया जाता है।

पंचम सोपान अपनी समस्याओं के सन्दर्भ में स्वः मूल्यांकन, एवं विवेकपूर्ण निर्णय की क्षमता, के विकास की प्रक्रिया के उपरान्त अन्तिम रूप में निर्णित की जाने वाली कार्ययोजनाओं को क्रियान्वित करने में सहायता प्रदान करना कि समाधान से सम्बन्धित उन योजनाओं की क्रियान्विति के उपरान्त, उनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना।

षष्टम सोपान यथा समय व्यक्ति की समस्याओं के समाधान के सन्दर्भ में विचार-विमर्श का अवसर उत्पन्न करना।

सप्तम सोपान समस्या के स्वरूप, समस्या के समाधान, तथा उन समाधानों के उपरान्त प्राप्त परिणामों का मूल्यांकन करना। इस मूल्यांकन के आधार पर प्राप्त परिणामों अथवा अनुभवों का भविष्य में उपयोग करना संभव होता है।

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व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता

व्यक्तिगत निर्देशन की प्रमुख आवश्यकता इस प्रकार होती है

  1. व्यक्तिगत जीवन में सुख-शान्ति एवं सन्तोष का विकास करने हेतु,
  2. व्यक्तिगत समस्याओं के सन्दर्भ में सही निर्णय लेने हेतु..
  3. व्यक्तिगत समायोजन की क्षमता का विकास करने हेतु.
  4. व्यक्तिगत कौशलों का विकास करने की दृष्टि से,
  5. पारिवारिक एवं व्यावसायिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने हेतु तथा
  6. पारस्परिक तनावों को कम करने हेतु।

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