व्यक्ति तथा समाज के सम्बन्ध – वास्तविकता यह है कि व्यक्ति और समाज एक दूसरे पर निर्भर है। एक ओर समाज ही व्यक्ति के ‘आत्म’ का विकास करता है, सामाजिक विरासत द्वारा उसके व्यवहारों को प्रभावित करता है तथा उसे एक जैविकीय प्राणी से सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित करता है। दूसरी ओर व्यक्ति के द्वारा बनायी गयी संस्कृति भी सामाजिक व्यवस्था के रूप को प्रभावित करती है। इसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति ने अपने लम्बे अनुभवों के आधार पर जिस संस्कृति का निर्माण किया है, वह समाज की संरचना को बहुत बड़ी सीमा तक प्रभावित करती है।
संस्कृति में हम उस सभी विचारों, विश्वासों, धर्म, नैतिकता, परम्परा, प्रथा, उपकरणों और भौतिक वस्तुओं को सम्मिलित करते हैं जिनको मनुष्य (व्यक्ति) ने समाज का सदस्य होने के स्वयं अविष्कार किया है। वस्तुतः व्यक्ति एवं समाज एक दूसरे के पूरक है, एक के बिना दूसरा कभी पूर्ण नही हो सकता है। अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्ति और का सम्बन्ध परस्पर निर्भरता का है।