व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता तथा विशेषताएं बताइये ।

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व्यावसायिक निर्देशन की विशेषताएँ

निर्देशन की उपरोक्त सभी परिभाषाओं का अध्ययन करने के उपरान्त इसकी कुछ विशेषताएं स्पष्ट होती है जो निम्नलिखित है

  1. व्यवसाय निर्देशन के माध्यम से व्यक्ति में सम्बन्ध से स्पष्ट बोध विकसित किया जा सकता है। इसके आधार पर व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि उसका वास्तविक स्वरूप क्या है ?
  2. व्यवसाय निर्देशन के आधार पर कार्य के स्वरूप एवं कार्य से सम्बन्धित व्यक्तियों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है।
  3. व्यवसाय निर्देशन एक प्रक्रिया है। विभिन्न उद्देश्य सत्यन प्रविधियों आदि को समन्वित रूप से ध्यान में रखकर इस प्रक्रिया को सम्पन्न किया जाता है।
  4. व्यावसायिक निर्देशन की प्रक्रिया के आधार पर व्यक्तिको योग्यताओं सफलताओं, कवियों, प्रेरणाओं आदि के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
  5. व्यावसायिक निर्देशन के लिए आवश्यक जानकारी, दक्षता, योग्यता आदि के सम्बन्ध

में सूचनाएं एकत्र की जाती है। इस प्रकार संक्षेप में, व्यावसायिक निर्देशन के अन्तर्गत व्यक्ति एवं व्यवसाय दोनों का ही समान रूप से अध्ययन एवं मूल्यांकन किया जाता है। व्यावसायिक समस्याओं के समाधान हेतु प्रदान की जाने वाली यह एक ऐसी सहायता है जो व्यावसायिक अवसरों के लिए बांछित योग्यताओं को ध्यान में रखकर प्रदान की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य व्यावसायिक समायोजन की योग्यता का विकास करना तथा मानव की शक्ति के यथेष्ठ उपयोग द्वारा समाज की अर्थव्यवस्था के संचालन में सहायता प्रदान करना है।

व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता

वैयक्तिक भिन्नताओं एवं व्यावसायों को विविधता के कारण व्यावसायिक निर्देशन की प्रक्रिया का उपयोग करना अत्यन्त आवश्यक होता है। मानवीय व्यक्तित्व की जटिलता तथा व्यावसायिक कार्यक्षेत्रों में होने वाले तीव्रगामी परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए व्यवसायिक निर्देशन की आवश्यकता और भी अधिक अनुभूति की जाने लगी है। इस प्रक्रिया की महता, केवल किसी व्यवसाय में प्रवेश करने की दृष्टि से ही नहीं, वरन् व्यवसाय में प्रविष्टि होकर वृतिक सन्तोष की दृष्टि से भी यह सहायक हैं संक्षेप में व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. वैयक्तिक मित्रताओं की दृष्टि से,
  2. व्यावसायिक भित्रता की दृष्टि से,
  3. समाज की परिवर्तित दशाएं
  4. मानवीय क्षमताओं का वांछित उपयोग करने
  5. व्यावसायिक प्रगति हेतु हेतु
  6. स्वास्थ्य को बनाएं रखने की दृष्टि से, तथा
  7. पारिवारिक एवं व्यावसायिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने की दृष्टि से

उपरोक्त आवश्यकताओं का वर्णन इस प्रकार है

(1) वैयक्तिक भिन्नताओं की दृष्टि से

वैयक्तिक मित्रता के सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में निहित योग्यताएँ क्षमताएँ, रूचि, अभिरुचि आदि भिन्न-भिन्न होती है। किसी न किसी रूप में, प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता ही है। इस विभिन्नता की समुचित जानकारी प्राप्त किए बिना यह सम्भव नहीं है कि व्यक्ति की अभिरूचि, भावी प्रगति अथवा व्यावसायिक अनुकूलता के सम्बन्ध में निश्चित कथन दिया जा सके। किसी भी व्यवसाय के लिए अनुकूल व्यक्तियों की चयन करने से पूर्व वैयक्तिक विभिन्नताओं के स्तर एवं स्वरूप की जानकारी आवश्यक होती है, क्योंकि प्रत्येक व्यवसाय के लिए कुछ विशेष योग्यताओं वाले व्यक्ति की आवश्यकता होती हैं निर्देशन के द्वारा इस सन्दर्भ में विभिन्न माध्यमों से पर्याप्त सूचनाएँ एकत्र की जा सकती है।

(2) व्यावसायिक भिन्नता की दृष्टि से

प्राचीन समय में देश की अधिकांश जनता कृषि व्यवसाय के माध्यम से ही अपनी जीविकोपार्जन की समस्या का समाधान कर लेती थी। समाज की आवश्यकताएँ भी उस समय सीमित थी तथा जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत कम था। संयुक्त परिवार प्रथा के कारण एक परिवार के सदस्यों को एक ही स्थान पर रहकर अधिकाधिक अर्थोपार्जन का अवसर सुलभ रहता था परन्तु जनसंख्या की तीव्रगति से होती हुई वृद्धि, आवश्यकताओं में वृद्धि, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण आदि के फलस्वरूप अनेक नवीन प्रकार के उद्योगों, व्यवसायों की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा।

(3) समाज की परिवर्तित दशाएं

समाज की पारिवारिक, आर्थिक, धार्मिक आदि विभिन्न दशाओं में आज पर्याप्त अन्तर हो चुका है। एक समय था जब व्यक्ति की योग्यताओं, व्यक्ति के अस्तित्व एवं परोपकार की दृष्टि से किए जाने वाले कार्यों को महत्व दिया जाता था वर्तमान समाज की स्थितियाँ सर्वथा भिन्न है। आज व्यक्ति के स्तर, धन, भौतिक साधनों की अधिक महत्व दिया जाता है। अपने पड़ोस, सम्बन्धियों एवं परिचितगणों से सम्मान प्राप्त करने के लिए आज यह आवश्यक है कि व्यक्ति का रहन-सहन का स्तर सन्तोषजनक हो।

(4) मानवीय क्षमताओं का वांछित उपयोग करने हेतु

समाज अथवा राष्ट्र को प्रगति के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि मानवीय क्षमताओं का समुचित प्रयोग किया जाएँ। प्रगति की दौड़ में आज जितने भी राष्ट्र अग्रणीय है, उनकी सफलता का एक प्रमुख रहस्य यह भी है कि उन देशों में व्यक्ति की क्षमताओं का समुचित उपयोग किया जाता है। हमारे यहाँ व्यक्ति की योग्यता का सही मूल्यांकन प्रायः नहीं हो पाता है। योग्यता एवं व्यवसायिक अवसर में अन्तर इस सीमा तक है कि जिन व्यक्तियों को मात्र एक लिपिक के रूप में कार्य करना चाहिए था वह अफसर बना दिए गए है और जो अधिकारी होने चाहिए थे वह मात्र लिपिक के रूप में ही जीविकोपार्जन कर रहे हैं। रिश्वत, सिफारिश, जातिवाद, वर्गवाद, मूल्यांकन की अनुचित कसौटियाँ आदि अनेक कारण इस प्रकार की दुरावस्था के लिए उत्तरदायी है।

व्यावसायिक निर्देशन के उद्देश्य

  1. विद्यालयों में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं को विश्लेषण करने की योग्यता एवं क्षमता विकसित करना।
  2. सत्यनिष्ठता से किया गया कार्य सदैव सर्वोत्तम होता है कि भावना का छात्रों में विकास करना।
  3. व्यक्ति के व्यवसाय चयन के पश्चात उसकी अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करने में सहायता प्रदान करना।
  4. छात्रों को विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों से अवगत कराना।
  5. गरीब विद्यार्थियों को अर्थ के अतिरिक्त अन्य प्रकार की सहायता प्रदान कर, उनकी व्यवसाय से सम्बन्धित योजना को सफल बनाना।
  6. छात्रों को भिन्न-भिन्न व्यवसायों का निरीक्षण करने हेतु सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  7. किसी व्यवसाय हेतु कौन-कौन से गुण, योग्यता एवं कुशलता अपेक्षित है कि जानकारी विद्यार्थियों को प्रदान करना।
  8. छात्रों को विभिन्न व्यवसायों के सम्बन्ध में ऐसी सूचनाओं को एकत्रित करने में सहायता करना जिनका वह चयन कर सकें। ]
  9. छात्रों को विभिन्न व्यवसायों में अवगत कराकर उन व्यवसायों के सामाजिक एवं वैयक्तिक महत्व के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करना।
  10. छात्रों में कार्य के प्रति एक आदर्श भावना का विकास करना।

परिवार की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

व्यावसायिक निर्देशन के सिद्धान्त

व्यवसाय निर्देशन के भी कुछ सिद्धान्त होते हैं। इन सिद्धान्तों का अनुसरण करके ही व्यवसायों का चयन करना चाहिए। व्यवसाय चयन के सिद्धान्त के पीछे यह तथ्य रहा है कि व्यावसायिक विकास एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है। सन् 1951 में एली जिन्जबर्ग ने व्यावसायिक के सिद्धान्तों के बारे में जो अध्ययन किया उसके अनुसार उसने यह निष्कर्ष निकाला कि व्यवसाय चयन एक प्रक्रिया होती है।

  1. हालैंड का व्यावसायिक चयन का सिद्धान्त,
  2. हालैंड की व्यावसायिक चयन के लिए प्रक्रिया,
  3. जिन्जबर्ग का सिद्धान्त,
  4. जिन्जबर्ग के व्यवसाय चयन के सिद्धान्त की आलोचना,
  5. सुपर का व्यावसायिक चयन का सिद्धान्त,
  6. व्यावसायिक चयन का हैबीघर्स्ट का सिद्धान्त, तथा
  7. संरचनात्मक सिद्धान्त ।

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