विद्यालयों में लैंगिक भेदभाव दूर करने में शिक्षकों की भूमिका सामान्यतः
विद्यालयों में लैंगिक भेदभाव – शिक्षक भी समाज के पूर्वाग्रहों के प्रभाव से अधिक समय तक बचा नहीं रह सकता। इसी प्रकार समाज की रूढ़िवादिताएँ भी उसको प्रभावित करती हैं। एक शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि सर्वप्रथम उसको लिंग सम्बन्धी भेदभाव एवं लिंग सम्बन्धी भ्रामक धारणाओं से दूर रहना चाहिये उसको अपनी साथी शिक्षिकाओं को सदैव अपने समकक्ष समझने का प्रयास करना चाहिये तथा विद्यालय में भी छात्र एवं छात्राओं को समान रूप से कार्य करने के अवसर प्रदान करने चाहिये। समाज में भी इस प्रकार के कार्य यदि कहीं सम्पन्न होते हैं जो कि लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रह एवं भेदभाव से सम्बन्धित हैं तो शिक्षक को उसका भी विरोध करना चाहिये, इसके लिये भले ही उसको सामाजिक कोप का सामना करना पड़े। शिक्षक द्वारा जब लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रहों एवं रुढ़िवादी धारणाओं पर अंगुली नहीं उठायी जायेगी तब तक समाज में इस प्रकार की स्थिति बनी रहेगी। इस प्रकार लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रहों को एवं रूढ़ियों को शिक्षक को न तो अपने मन में स्थान देना चाहिये और न ही इसका समर्थन करना चाहिये। एक शिक्षक को लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रह एवं रूढ़िवादिता को समाप्त करने के लिये निम्नलिखित प्रयास करने चाहिये, जिससे स्त्री पुरुष, बालक, वृद्ध एवं सभी प्रकार के मानव एक सूत्र में बंध सकें –
(1) महान स्त्रियों का वर्णन
शिक्षक द्वारा विद्यालय एवं समाज दोनों में ही स्त्रियों द्वारा किये जाने वाले महान कार्यों के बारे में बताया जाना चाहिये, जैसे सरोजिनी नायडू, महारानी लक्ष्मीबाई, सती अनुसुइया, गार्गी एवं शबरी आदि इन स्त्रियों ने लैंगिक एवं पारलौकिक समाज दोनों के लिये ही कार्य किये। इस प्रकार की स्थिति से समाज में लिंग के आधार पर भेदभाव की स्थिति समाप्त होगी तथा नारी का वर्चस्व बढ़ेगा।
(2) स्त्रियों की योग्यता का अधिक उपयोग
शिक्षक को विद्यालय में छात्राओं की योग्यता का सर्वाधिक उपयोग करना चाहिये। इससे यह सिद्ध किया जा सकता है कि छात्राओं में छात्रों से अधिक योग्यता होती है। इसके साथ-साथ छात्राओं में जो भी प्रतिभाएँ पायी जाती हैं, उनके विकास की व्यवस्था भी एक शिक्षक को अपने ऊपर लेनी चाहिये। स्त्रियों की प्रतिभाओं के विकास एवं उनके उपयोग से सभी पूर्वाग्रह एवं रूढ़ियों समाप्त हो सकेंगी।
(3) स्त्रियों का सम्मान
समाज में स्त्रियों को पुरुषों से कम सम्मान दिया जाता है क्योंकि समाज में पुरुष की प्रधानता मानी जाती है। पुरुष की प्रधानता के अनेक कारण माने जाते हैं; जैसे नारी का कमजोर होना, नारी में बुद्धि का अभाव होना एवं नारी में अपवित्रता होना आदि। एक शिक्षक को इन सभी पूर्वाग्रहों एवं रुढ़िवादिताओं को दूर करने के लिये स्वयं अपनी पत्नी को समाज में सम्मान देना चाहिये एवं महिला शिक्षिकाओं को भी सम्मान प्रदान करना चाहिये। इससे अन्य व्यक्ति भी प्रेरित होंगे, स्त्रियों को सम्मान प्रदान करेंगे। इससे लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रह एवं रूढ़िवादिता को दूर किया जा सकेगा।
(4) महिला सशक्तिकरण का विकास
लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रहों एवं रूढ़ियों को समाप्त करने के लिये शिक्षक को महिला सशक्तिकरण की भावना को सुदृढ़ करने का प्रयास करना चाहिये। स्त्रियों के प्रति समाज में होने वाले अन्याय का विरोध करने का प्रयास करना चाहिये। स्त्रियों को इस तथ्य से अवगत कराना चाहिये कि वह भी पुरुषों से कम नहीं हैं, पुरुषों की भाँति सभी कार्यों को कर सकती हैं तथा पुरुषों से भी अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं। इससे लिंग सम्बन्धी सभी पूर्वाग्रह एवं रूढ़िवादी धारणाएँ समाप्त हो। जायेगी।
(5) बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन
लिंग सम्बन्धी रुद्रियों एवं पूर्वाग्रहों को समाप्त करने के लिये एक शिक्षक को बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करना चाहिये। कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर बालिकाओं को पुरस्कृत किया। जाना चाहिये। विद्यालय में शिक्षक द्वारा बालिकाओं को महत्वपूर्ण कार्य सौंपे जाने चाहिये। जिससे उनको यह अनुभव न हो कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। जो अभिभावक किसी समस्या के कारण बालिकाओं को विद्यालय नहीं भेजते हैं शिक्षक को उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिये।
(6) स्त्रियों की महानता के सम्बन्ध में प्रमाण प्रस्तुत करना
सामान्यतः भेदभाव के कारण स्त्रियों को समाज में सम्मान नहीं मिलता और इसके लिये शिक्षक को स्त्रियों की शक्ति के रूप में धार्मिक एवं ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत करने चाहिये; जैसे सीता राम एवं राधे श्याम में सीता एवं राधा दोनों का ही नाम पहले आता है। इस प्रकार प्राचीनकाल से ही नारी को आदि शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। इस प्रकार आज लिंग भेद करना एक भूल होगी। इससे लिंग भेद की स्थिति समाप्त होगी।
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(7) पुरुष एवं स्त्री के प्रति समन्वित दृष्टिकोण का विकास
शिक्षक को यह प्रयास करना चाहिये कि वह समाज में नारी एवं पुरुष के सह अस्तित्व को बताये जिससे की समाज यह समझ सके कि नारी के अभाव में इस संसार की सृष्टि सम्भव नहीं है। इसलिये नारी के साथ भेदभाव करना एक अपराध ही नहीं वरन् समाज के विनाश को नीव डालना है। नारी एवं पुरुष दोनों ही मिलकर इस समाज को नवीन दिशा प्रदान कर सकते हैं।
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