वत्सराज (775-800 ई.)
गुर्जर प्रतिहार वंश का चौथा शासक वत्सराज ‘775 ई. में गद्दी पर बैठा, जो देवराज का पुत्र था। वत्सराज एक शक्तिशाली शासक था, जिसे प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक निर्माता कहा जा सकता है। उसने कन्नौज पर आक्रमण कर वहाँ के शासक इन्द्रयुध को परास्त कर उसे अपने अधीन कर लिया। ‘ग्वालियर अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने मण्डि वंश को पराजित कर उसका राज्य छीन लिया। कुछ विद्वान इस वंश की पहचान हर्षवर्द्धन के ममेरे भाई मण्डि द्वारा स्थापित वंश से करते हैं। किन्तु यह मत संदिग्ध है, क्योंकि निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि मण्डि ने कोई स्वतंत्र बंश या राज्य रस्थापित किया था कुछ इतिहासकार इसे ‘जोधपुर लेख’ में उल्लिखित ‘मटटिकुल’ बताते हैं। अतः इस विषय में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता है।
सफलता (उपलब्धियाँ)
वत्सराज को सबसे महत्वपूर्ण सफलता गौड़ देश के शासकों के विरुद्ध प्राप्त हुई। राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय के ‘राघनपुर अभिलेख’ से ज्ञात होता है कि वत्सराज ने गौड़देश के राजा को हराया था ‘मदान्ध वत्सराज ने गौड़ की राजलक्ष्मी को आसानी से हस्तगत कर उसके दो राजछयों को छीन लिया था। गयानक के ‘पृथ्वीराज विजय’ से ज्ञात होता है कि उसके सामन्त दुर्लभ राज ने गौड़ देश पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की थी। डा. मजूमदार के अनुसार, प्रतिहारों और पालों के बीच यह युद्ध दोआब में कहीं हुआ था और प्रतिद्वार सेनायें बंगाल में नहीं घुसी। यह वत्सराज की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। पराजित नरेश पालवंशी शासक धर्मपाल था। इस प्रकार वत्सराज उत्तरी भारत के एक विशाल भू-भाग का स्वामी बन गया।
प्रतिहार वंश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
किन्तु इसी के बाद राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव ने उस पर आक्रमण कर युद्ध में उसे बुरी तरह से हरा दिया। राष्ट्रकूट लेखों (राधनपुर तथा बनी दिन्दोरी) से ज्ञात होता है कि बत्सराज भयभीत होकर राजपूताना के मरूस्थल की ओर पलायन कर गया। ध्रुव ने उन दोनों राजछत्रों को भी हस्तगत कर लिया, जो वत्सरा ने गौड़ नरेश से छीन लिये थे। उत्तर भारत में अपनी शक्ति दिखाकर ध्रुव अपने देश लौट गया। ध्रुब के लौटने के बाद भी वत्सराज अवन्ति पर पुनः अधिकार नहीं कर पाया, क्योंकि उसकी शक्ति निर्बल बनी रही। इसका लाभ उठाकर उसके प्रतिद्वन्द्वी धर्मपाल ने भी उसे पराजित किया। धर्मपाल ने वत्सराज द्वारा मनोनीत शासक इन्द्रायुध को पदच्युत करके उसके स्थान पर चक्रायुध को राजा बनाया। धर्मपाल ने कन्नौज में एक दरबार किया, जिसमें उत्तर भारत के अधीनस्थ राजाओं ने भाग लिया। इसमें वत्सराज को भी उपस्थित होने के लिए बाध्य होना पड़ा और अब उसकी स्थिति एक सामान्त के समान हो गयी।