वर्गों का उदय – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है परन्तु मार्क्स के अनुसार मनुष्य एक वर्गप्राणी है। मार्क्स का कथन है कि किसी भी युग में जीविका उपार्जन की प्राप्ति के विभिन्न साधनों के कारण मनुष्य पृथक- पृथक् वर्गों में विभाजित हो जाते हैं। वर्ग का जन्म उत्पादन के नवीन तरीकों के आधार पर होता है। जैसे ही भौतिक उत्पादन के तरीकों में परिवर्तन होता है वैसे ही नए वर्ग का उदय होता है।
आदिम समुदायों में कोई भी वर्ग नहीं होता था मनुष्य प्रकृति द्वारा प्राप्त वस्तुओं से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता था अर्थात वितरण बहुत कुछ समान था क्योंकि सभी व्यक्ति प्रकृति पर निर्भर थे। अतः उस युग में वर्ग का उदय नहीं हुआ पर शीघ्र ही वितरण में अन्तर आने लगा और उसी के साथ समाज वर्गों में विभाजित हो गया। यह विभाजन घनी और निर्धन, शोषक और शोषित तथा शासक और शासित वर्गों में होता है।
अवलोकन की परिभाषा दीजिए। अवलोकन की विशेषताओं एवं प्रकारों का वर्णन कीजिए।
मैक्स वेबर की वर्ग की परिभाषा कार्ल मार्क्स से थोड़ी भिन्न है। वेबर भी सामाजिक व का आधार आर्थिक ही बताते हैं। वेबर सामाजिक वर्ग की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए सामाजिक व्यवस्था एवं शक्ति को स्पष्ट करते हैं। व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा सामाजिक व्यवस्था को निर्धारित करती है इसे ही वर्ग कहा जाता है। समाज में तीन प्रकार की व्यवस्थाएँ पायी जाती हैं – (1) सामाजिक व्यवस्था (2) आर्थिक व्यवस्था (3) वैधानिक व्यवस्था। वर्ग समाज की सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्थाओं में पाए जाते हैं।