वैदिक कालीन सामाजिक जीवन – वैदिक कालीन आर्यों में वर्ण-व्यवस्था प्रचलित थी। यह व्यवस्था समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए की गयी थी। समाज में चार वर्ण थे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। आर्यों का समाज पितृसत्तात्मक था। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार थी। कुलपति का परिवार के सदस्यों पर प्रभाव एवं नियन्त्रण रहता था। परिवार ज्यादातर संयुक्त होते थे, एकात्मक परिवार का उल्लेख नहीं मिलता है। कई पीढ़ियों के लोग, बन्धु बान्धव एक ही साथ रहते थे। इन्हें नप्तृ कहा गया है।
पितृसत्तात्मक तत्व की प्रधानता होते हुए भी परिवार में नारी को यथोचित आदर एवं सम्मान प्रदान किया जाता था। माता का गृहस्वामिनी के रूप में पर्याप्त आदर होता था। स्त्रियों को पर्याप्त स्वतन्त्रता भी प्राप्त थी। यद्यपि विवाह में पिता की अनुमति या सहमति आवश्यक थी, तथापि अनेक स्त्रियों को विवाह सम्बन्धी स्वतन्त्रता प्राप्त थी। उन्हें शिक्षा पाने और राजनैतिक संस्थाओं में हिस्सा लेने का भी अधिकार था।
शक सातवाहन संघर्ष के विषम में बताइये।
बहुत सी स्त्रियाँ अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध थीं और उन्होंने अनेक सूक्तों की रचनाएँ। की। विश्वतारा, विपाला एवं घोषा ऐसी ही विदुषी महिलाएं थीं। स्त्रियों धार्मिक कृत्यों में भी अपने पतियों के साथ भाग लेती थीं, परन्तु इनके साथ-साथ उन पर कुछ प्रतिबन्ध भी थे। इस काल में लोग सामान्यता गांवों में रहा करते थे और कृषि ही उनका मुख्य व्यवसाय था यद्यपि पशुपालन भी किया जाता था। लोग मुख्य रूप से शाकाहारी थे।