वैदिक कालीन देवताओं में इन्द्र का महत्वा

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वैदिक काल मे इन्द्र का महत्वा – आम्वेदिक कालीन देवताओं में इन्द्र का सर्वोच्च स्थान था। ऋग्वेद में इन्द्र देवता का स्थान सर्वोच्च है। इन्द्र को संसार का स्वामी माना जाता था। उसे मुख्य रूप से युद्ध का देवता माना जाता था। उनके दो रूप कहे गये हैं- (1) मानव रूप में इन्द्र अनुपम धोद्धा है। (2) उनका प्राकृतिक शक्ति का प्रतीकात्मक रूप जिनके बिना मनुष्य युद्ध में विजय प्राप्त नहीं कर सकते। युद्ध करते हुए लोग आत्मरक्षा के लिए जिनकी उपासना करते हैं, वह इन्द्र ही है। वित आत्य, अपनपात, मातरिश्वा और अहिदुधन्या ऐसे आन्तरिक्ष-स्थानीय देवता है, जिनका इन्द्र के साथ निकट सम्बन्ध है। ये सब खेती में सहयोग देने वाले हैं। इनके साथ ही अज, एक पाद, मारूत, पर्जन्या, वायुवान और शाप देवता भी कृषि कार्य में सहायक है।

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इन्द्र की प्रमुख संज्ञा ‘पुरन्दर’ थी। वह मेघों को रोककर पृथ्वी पर जल की वर्षा करता था जिससे पृथ्वी पर जीवन चलता था। इस प्रकार वैदिक काल में इन्द्र देवताओं का राजा था।

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