वैदिक काल में पशुपालन – कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी वैदिक कालीन लोगों का मुख्य उद्यम था । पशु आर्यों की सम्पत्ति थी और उसकी वृद्धि हेतु देवी देवताओं से प्रार्थना करते थे। प्रत्येक परिवार के पास जितने ही अधिक पशु होते थे वह उतना ही अधिक धनवान समझा जाता था। वास्तव में आर्यों की आर्थिक व्यवस्था का मूल आधार कृषि और पशुपालन था। आर्यों के मुख्य पालतू पशु गाय, बैल, भैंस, भेंड़, बकरी, घोड़ा, कुत्ता और ऊंट थे। गन्धार देश भेड़े प्रसिद्ध थी। ऋग्वेद में हाथी, सुअर, गया और हिरण का भी उल्लेख है। इन पशुओं को वे विभिन्न प्रकार के कार्यों में उपयोग करते थे। प्रतिदिन पशुओं के झुण्डों को गोप चारागाहों में ले जाता था।
इन पशुओं में गायों की बड़ी प्रतिष्ठा थी उसका दूध ऋग्वेद कालीन परिवार के भोजन का प्रधान अंग था। यमुना नदी की घाटी गोधन के लिए विशेष प्रसिद्ध थी। धार्मिक और याज्ञिक कार्यों में ही गाय का महत्व नहीं था अपितु वह क्रय-विक्रय का माध्यम भी था। गाय का प्रयोग मुद्रा की भांति होता था। उसके लेनदेन से सामग्री और उपकरण खरीदे और बेचे जाते थे।
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आर्यों के जीवन में बैल और अश्व भी परम उपयोगी और महत्वशाली पशु थे। पशुओं पर अपना स्वामित्व प्रकट करने के लिए उनके कान रंग दिए जाते थे। भूमि की अपेक्षा पशुओं को महत्वपूर्ण धन या सम्पत्ति मानना उस युग की पद्धति थी। पशुओं की विपुलता और सम्पत्ति के रूप में ऋग्वेद के सूक्तों में वर्णन है। इस प्रकार वैदिक कालीन समाज में पशुपालन को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था ।