वाकाटक वंश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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वाकाटक वंश की स्थापना विन्ध्यशक्ति ने की थी जो सातवाहनों के अधीन बरार का सामन्त शासक था। विन्ध्यशक्ति ने 255-275 ई. तक शासन किया। उसके पश्चात् उसका पुत्र प्रवरसेन प्रथम वाकाटक नरेश बना। वह पहला ऐसा शासक या जिसने सम्राट की उपाधि धारण की थी। इसने चार अश्वमेध यज्ञ किया था। इसके शासन काल में वाकाटक शक्ति का विस्तार हुआ। उसने दक्षिणी, बरार, उत्तरी-पश्चिम आन्ध्रप्रदेश, गुजरात तथा कठियावाड़, मालवा, मध्यप्रदेश, उत्तरी महाराष्ट्र, उत्तरी हैदराबाद एवं दक्षिणी कोशल तक के भू-क्षेत्र को अपने राज्य में शामिल कर लिया था। इसकी

मृत्यु. के बाद वाकाटक वंश प्रधान शाखा एवं वासीन शाखा में विभाजित हो गया। प्रवरसेन के पश्चात् रुद्रसेन प्रथम (335-360 ई.) शासक हुआ। इसके शासन काल में वाकाटक वंश की शक्ति का ह्रास हुआ। रूद्रसेन प्रथम के पश्चात् पृथ्वीसेन प्रथम शासक हुआ। उसने 360-385 ई. तक शासन किया। इसके शासन काल में वाकाटक शक्ति एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने इसके पुत्र रुद्रसेन द्वितीय के साथ अपनी पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह किया था।

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पृथ्वीसेन प्रथम के पश्चात् रुद्रसेन द्वितीय (385-390 ई.) शासक हुआ। परन्तु उसका शासन काल अल्पकालिक था। उसकी मृत्यु के पश्चात् प्रभावती गुप्ता ने अपने पिता चन्द्रगुप्त द्वितीय की देख-रेख में वाकाटक राजवंश की बागडोर सम्भाली। प्रभावती गुप्ता के पश्चात् उसका पुत्र प्रवरसेन द्वितीय शासक हुआ। इसने 440 ई. तक शासन किया। इसके पश्चात् ही वाकाटक वंश का पतन प्रारम्भ हो गया।

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