अनुच्छेद 66 के अनुसार, उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्य मिलकर आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार, एकल संक्रमणीय मत द्वारा करेंगे। राष्ट्रपति के निर्वाचन में राज्य मण्डल के सदस्य भी भाग लेते हैं, जबकि उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में केवल संसद के सदस्य ही भाग लेते हैं।
उपराष्ट्रपति की अर्हतायें वहीं हैं जो राष्ट्रपति की होती हैं. इसके सिवाय कि उसे राज्य सभा के लिए चुने जाने की अहंता होनी चाहिये। उपराष्ट्रपति की पदावधि पाँच वर्ष की है परन्तु इस अवधि के पहले ही-
- वह अपने पद से राष्ट्रपति को सम्बोधित करके अपना पद त्याग सकता है,
- उसे राज्य सभा के संकल्प द्वारा जिसे सदन के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत ने पारित किया हो तथा जिसे लोकसभा के साधारण बहुमत ने स्वीकृत किया हो, अपने पद से हटाया जा सकता है, परन्तु ऐसे संकल्प को प्रस्तावित करने के पूर्व 14 दिन का नोटिस देना आवश्यक है।
उपराष्ट्रपति के हटाने की प्रक्रिया राष्ट्रपति के हटाने की प्रक्रिया की अपेक्षा सरल है। उपराष्ट्रपति के हटाने के लिए लोक सभा का साधारण बहुमत ही पर्याप्त है और उसके आरोपों की जांच भी नहीं की जाती है।
उपराष्ट्रपति पदेन राज्य सभा का सभापति होता है। उसका सामान्य कार्य राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना है। उसे मतदान का अधिकार नहीं होता किन्तु सभापति के रूप में निर्णायक मत देता है।