उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 पर लेख
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा हेतु 24 दिसम्बर, 1986 से लागू किया गया था। यह अधिनियम सभी वस्तुओं तथा सेवाओं (केन्द्रीय सरकार द्वारा विशिष्ट रूप से छूट प्राप्त वस्तुओं और सेवाओं को छोड़कर) पर लागू होता है। यह अधिनियम निजी, सार्वजनिक या सरकारी सभी क्षेत्रों पर लागू होता है।
हम सभी वस्तुओं तथा सवाओं के उपभोक्ता हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रयोजन से ‘उपभोक्ता’ शब्द की ‘वस्तुओं’ तथा ‘सेवाओं’ के लिये अलग-अलग परिभाषा दी गयी है।
‘वस्तुओं’ के मामले में, उपभोक्ता से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो निम्नांकित वर्गों में आता है
- (i) जो किसी ऐसे प्रतिफल के लिए उसका भुगतान किया गया है या वचन दिया गया है या अंशतः भुगतान किया गया है और अंशतः वचन दिया गया है, या किसी स्थगित भुगतान की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है या क्रय हेतु सहमत होता है।
- (ii) इसके अन्तर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से मित्र, जो वास्तव में माल का क्रय करता है, ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्ता भी सम्मिलित है, जब ऐसा प्रयोग क्रेता के अनुमोदन से किया जाता है।
टिप्पणी – कोई व्यक्ति यदि माल को वाणिज्यिक या पुनः विक्रय के उद्देश्य से क्रय करता है, तो वह उपभोक्ता नहीं है तथापि किसी उपभोक्ता द्वारा स्वरोजगार के लिए किसी माल को क्रय किया जाना और उसका केवल अपनी आजीविका उपार्जित करने के उद्देश्य से प्रयोग किया जाना ‘वाणिज्यिक’ शब्द में सम्मिलित नहीं है।
‘सेवाओं’ के मामलों में ‘उपभोक्ता’ से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो अग्रवर्णित वर्गों में आता है
- (i) वह व्यक्ति, जो किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका भुगतान किया गया है या वचन दिया गया है या अंशतः भुगतान किया गया है और फिर अंशतः वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित भुगतान की पद्धति के अधीन किसी सेवा या किन्हीं सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उनका उपयोग करता है।
- (ii) इसके अन्तर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न, जो वास्तव में प्रतिफल के लिए सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उपयोग करता है, कोई हिताधिकारी भी सम्मिलित है जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है।
इस अधिनियम में उपभोक्ताओं के अग्रलिखित अधिकारों का वर्णन है –
- जहाँ भी सम्भव हो वहाँ प्रतिस्पर्धा मूल्यों पर विभिन्न श्रेणियों के माल एवं सेवाओं को सुलभ कराने का आश्वासन दिए जाने का अधिकार;
- ऐसी सेवाओं एवं मान के विपणन के विरुद्ध संरक्षण पाने का अधिकार जो जीवन और सम्पत्ति के लिए खतरनाक हो;
- इस अधिनियम में केन्द्रीय तथा राज्य स्तरों पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की स्थापना करने की व्यवस्था की गई है, जिनका मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देना तथा उनकी रक्षा करना होगा:
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार;
- सुनवाई तथा इस आश्वासन का अधिकार है कि उपभोक्ताओं के हितों पर समुचित मंचों पर सम्यक रूप से विचार किया जाएगा;
- अनुचित व्यापारिक व्यवहारों से उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए माल या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, मानक और मूल्य के बारे में सूचित किए जाने का अधिकार तथा
- अनुचित व्यापारिक व्यवहार या उपभोक्ताओं के अनैतिक शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का अधिकार।
इस अधिनियम में निम्नलिखित दो बातों पर विशेष ध्यान दिया गया है
- उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए उपभोक्ता परिषदों का गठन किस प्रकार किया जाएगा तथा
- उपभोक्ता तथा उपभोक्ता से सम्बन्धित विवादों के निपटारे के लिए इस अधिनियम में अधिकारयुक्त अभिकरणों का गठन किया जाएगा।
उपभोक्ता संरक्षण परिषदें
“उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 4 के अन्तर्गत उपभोक्ताओं की शिकायतों का सरल, शीघ्र तथा अल्प व्यय में निवारण करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण परिषदों के गठन का प्रावधान है। ये परिषदे दो प्रकार की है.
- (अ) केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद् तथा
- (ब) राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद्
(अ) केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 4(2) के अनुसार इस परिषद् में निम्न सदस्य होंगे
- केन्द्रीय सरकार के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के प्रभारी मन्त्री इस परिषद के अध्यक्ष होंगे।
- विभिन्न वर्गों में से सरकारी तथा गैर सरकारी प्रतिनिधियों की नियुक्ति की जाती जिनकी संख्या सरकार निर्धारित करेगी।
अधिनियम की धारा 6 के अनुसार यह परिषद् उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा से सम्बन्धित अलिखित को सुनिश्चित करेगी
- वस्तु के मूल्य प्रमाप, शुद्धता, क्षमता, मात्रा तथा गुण आदि के बारे में सूचित होने का अधिकार, जिससे कि अनुचित व्यापार व्यवहार से उपभोक्ता की सुरक्षा की जा सके।
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
- जीवन एवं सम्पत्ति के लिए घातक वस्तुओं के विपणन के विरुद्ध सुरक्षित होने का अधिकार।
- अनुचित व्यापार व्यवहार या धोखाधड़ी से उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध निवारण प्राप्त करने का अधिकार।
- प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्यों पर वस्तुओं की विभिन्न श्रेणियों तक यथासम्भव पहुँचने की सुनिश्चित करने का अधिकार।
(ब) राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद्
राज्य सरकारें आदेश जारी करके ‘राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद्’ का गठन करेंगी परिषद् के सदस्यों की संख्या भी सरकारी आदेश द्वारा निर्धारित होगी। अधिनियम की धारा 7 में वर्णित राज्य में उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा एवं प्रवर्तन
का कार्य ‘राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद् रखेगी। ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986’ के दूसरे प्रावधान के अन्तर्गत उपभोक्ता तथा दूसरे उपभोक्ता से सम्बन्धित विवादों के निपटारे के अधिकार युक्त अभिकरणों का गठन किया जाएगा।
उपभोक्ता विवाद निवारण अभिकरण
‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 9 के अनुसार अधिनियम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्न अभिकरणों (Agencies) का गठन किया जाएगा
(अ) राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद आयोग (National Consumer disputes redresssal commission) केन्द्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय आयोग’ (National Comission) की स्थापना की जाएगी।
राष्ट्रीय आयोग की संरचना – उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 20 के अनुसार राष्ट्रीय आयोग की संरचना के बारे में निम्नलिखित बातें महत्त्वपूर्ण हैं –
(1) राष्ट्रीय आयोग के निम्न सदस्य होंगे
- (क) एक व्यक्ति, जो उच्चतम न्यायालय का जज हो अथवा रहा हो, की नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा अध्यक्ष के रूप में की जाएगी। वर्तमान जज के अतिरिक्त किसी अन्य की नियुक्ति करने के लिए मुख्य न्यायाधीश का पूर्व परामर्श लेना आवश्यक होगा।
- (ख) चार ऐसे सदस्य नियुक्त किए जाएँगे जो योग्य एवं सत्यनिष्ठ हो तथा जिन्हें अर्थशास्त्र, कानून, वाणिज्य, लेखाशास्त्र, उद्योग, जनसम्पर्क अथवा प्रशासन सम्बन्धी समस्याओं का पर्याप्त ज्ञान अथवा अनुभव हो। इनमें एक महिला सदस्य अवश्य होगी।
(2) सदस्यों का कार्यकाल, वेतन, भत्ते व सेवा शर्तों का निर्धारण केन्द्र सरकार द्वारा किया जाएगा।
राष्ट्रीय आयोग का कार्यक्षेत्र
(1) उन शिकायतों एवं वादों का निपटारा करना
- (क) जो शिकायतें ऐसी वस्तुओं तथा सेवाओं से सम्बन्धित है जिनका मूल्य या क्षतिपूर्ति 10 लाख रुपये से अधिक हो
- (ख) राज्य आयोग के आदेशों के विरुद्ध अपील सुननाः
(2) ऐसे उपभोक्ता विवादों के अभिलेखों को माँगना तथा आवश्यक निर्णय अभिनिर्णीत करना जो राज्य आयोग के समक्ष विलम्बित हैं अथवा उसके द्वारा निर्णय दिया गया है और राष्ट्रीय आयोग ऐसा समझता है कि राज्य आयोग ने प्रदत्त अधिकारों अथवा कार्यक्षेत्र का अतिक्रमण किया है अथवा निर्णय में किसी विशेष प्रकार की त्रुटि की है।
उपभोक्ता, उपभोक्ता संगठन, राज्य सरकार अथवा केन्द्र सरकार उपर्युक्त तीनों स्तर के संगठनों में शिकायत कर सकते हैं जबकि
- व्यापारी द्वारा अनुचित व्यापार व्यवहार अपनाए जाने की स्थिति में शिकायतकर्ता ने हानि उठाई है या क्षति हुई है।
- शिकायत में उल्लिखित सेवाओं में किसी-न-किसी प्रकार की कमी अवश्य हो।
- व्यापारी ने वस्तु पर छपे मूल्य से अधिक अथवा कानून द्वारा निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य वसूल किया हो।
- शिकायत में उल्लिखित वस्तु एक या एक से अधिक कमी से प्रभावित हो। जिला मंच, राज्य आयोग अथवा राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गए निर्णय, निश्चित समय के अन्दर अपील न होने पर अन्तिम निर्णय माने जाएँगे और उनका क्रियान्वयन उसी प्रकार होगा जिस प्रकार न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों में होता है।
(ब) उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (Consumer disputes redressal commission) राज्य सरकार द्वारा केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति लेकर ‘राज्य आयोग’ (State Commission) की स्थापना की जाएगी।
राज्य आयोग की संरचना ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 16 के अनुसार राज्य आयोग की संरचना के बारे में निम्नलिखित बातें महत्वपूर्ण है
(1) प्रत्येक राज्य आयोग में निम्नलिखित व्यक्ति सदस्य होंगे
- (क) एक व्यक्ति, जो उच्च न्यायालय का जज है अथवा रहा है, की नियुक्ति राज्य सरकार अध्यक्ष के रूप में करेगी।
- (ख) दो ऐसे अन्य सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी जो योग्य, सत्यनिष्ठ तथा प्रतिष्ठित हो तथा जिन्हें अर्थशास्त्र, कानून, वाणिज्य, लेखाशास, उद्योग, जनसम्पर्क अथवा सम्बन्धी समस्याओं का पर्याप्त ज्ञान हो अथवा अनुभव हो। इनमें एक महिला सदस्य होगी।
(2) इन सदस्यों का कार्यकाल, वेतन, भत्ते व सेवा शर्तों का निर्धारण राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा।
राज्य आयोग का कार्यक्षेत्र राज्य आयोग का कार्यक्षेत्र निम्न होगा.
(1) उन शिकायतों एवं वादों का निपटारा करना
- (क) ये शिकायते जो वस्तुओं अथवा सेवाओं के एक लाख रुपये से अधिक तथा 10 साख रुपये तक के मूल्य से सम्बन्धित है अथवा क्षतिपूर्ति से सम्बन्धित है।
- (ख) जिला मंच के आदेशों के विरुद्ध अपील सुनना और
(2) ऐसे उपायों के अभिलेखों को मांगना तथा आवश्यक आदेश जारी करना जो जिला मंच के समक्ष विलम्बित है अथवा उसके द्वारा ऐसा निर्णय दिया गया है और राज्य आयोग ऐसा समझता है कि जिला मंच ने वैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण किया है अथया कार्यक्षेत्र अथवा उसके किसी विशेष प्रकार की त्रुटि हो गई है।
(स) उपभोक्ता विवाद निवारण मंच (Consumer Disputes redressal forum) – राज्य के प्रत्येक जिले में राज्य सरकार द्वारा केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति लेकर जिला मंच के नाम से एक मंच स्थापित किया जाएगा।
जिला मंच की संरचना –
‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार जिला मंच की संरचना के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें महत्त्वपूर्ण हैं –
(1) प्रत्येक जिला मंच में निम्नलिखित सदस्य होंगे।
- (क) एक व्यक्ति, जो जिला जज हो अथवा जिला जज के योग्य हो, का नामांकन राज्य सरकार द्वारा अध्यक्ष के रूप में किया जाएगा।
- (ख) एक व्यक्ति जो शिक्षा, व्यापार या वाणिज्य के क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त हो।
- (ग) एक सामाजिक कार्यकर्त्ता
(2) जिला मंच का प्रत्येक सदस्य 5 वर्ष तक या 65 वर्ष की आयु होने तक, जो भी पहले हो, ही पद धारण करेगा। ये सदस्य पुनर्नियुक्ति के योग्य न होंगे।
(3) सदस्यों का वेतन, भत्ते एवं शर्तों का नियमन राज्य सरकार करेगी।
जिला मंच कार्यक्षेत्र
जिला मंच स्थानीय सीमा के अन्तर्गत आने वाले एक लाख रुपये तक के, वस्तुओं अथवा सेवाओं तथा क्षतिपूर्ति के दावों के सम्बन्ध में शिकायतों को देखेगा।
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