राज्य आयोग
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के सम्बन्ध में निम्न प्रावधान (Provisions) दिए गए हैं राष्ट्र के संविधान के ढांचे के अन्तर्गत प्रत्येक राज्य में राज्य सरकार “उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग” की स्थापना कर सकती हैं, जिसे ‘राज्य आयोग’ कहा जाता है। [ धारा 19 (b)]
(1) आयोग का गठन (Composition of State Commission)-
इस अधिनियम की (धारा 16a) के अनुसार, इस आयोग में सभापति सहित कुल तीन सदस्य होते हैं। सभापति की नियुक्ति राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के पश्चात् ही राज्य सरकार द्वारा की जाती है। अन्य दो सदस्यों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा गठित ‘चयन समिति’ (Selection Committee) की सिफारिशों के अनुरूप की जाती है। इन सदस्यों में से एक महिला सदस्य होती है। ये सदस्य अत्यन्त अनुभवी, ख्यातिप्राप्त, आर्थिक, वाणिज्यिक, लेखाकर्म, कानून तथा लोक प्रशासन से सम्बन्धित समस्याओं को निपटाने में ‘योग्य’ होने चाहिए।
(2) चयन समिति का गठन (Compostion of Selection Commitee) –
राज्य सरकार के द्वारा धारा 16 (1) के अन्तर्गत चयन समिति का गठन किया जाता है जो कि सदस्यों की नियुक्ति करती है। राज्य आयोग का सभापति, इस समिति का अध्यक्ष होता है एवं राज्य के विधि विभाग (Law Department) का सचिव तथा उपभोक्ता मालों के विभाग का सचिव, दोनों इस समिति के सदस्य होते हैं।
(3) वेतन, भत्ते तथा सेवा की शर्तों
ये सभी राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। धारा 16 (2)
4. कार्यकाल (Term)
इस अधिनियम के अनुसार, राज्य आयोग के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 5 वर्ष तक का अथवा 67 वर्ष की आयु तक का (जो भी पहले हो) होता है। [ धारा 16 (3)]
(5) राज्य आयोग का न्यायिक क्षेत्राधिकार
इस आयोग के द्वारा तीन बिन्दुओं पर सुनवाई की जाती है.
- (अ) यदि जिला मंच अपने क्षेत्राधिकार का पलन करने में अनियमितता बरतता है,
- (ब) जिला मंच द्वारा जो निर्णय दिया जाता है, उससे परिवादी का कोई पक्ष सन्तुष्ट नहीं है तो वह इस आयोग के समक्ष ‘पुनर्विचार याचिका’ (Appeal) प्रस्तुत कर सकता है।
- (स) प्रत्यक्ष रूप से ऐसे सभी दावों को आयोग स्वीकार करता है जिनमें माल, सेवा या क्षति की कुल राशि 5 लाख रुपये से अधिक, किन्तु 20 लाख रुपये से कम है। (धारा 17)
(6) उपभोक्ता विवादों के निपटारे की प्रक्रिया
उपरोक्त धारा के अन्तर्गत, राज्य आयोग द्वारा भी उपभोक्ताओं के विवादों को निपटाने के लिए यही प्रक्रिया अपनाई जाती है, जो कि जिला मंच के लिए राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की गई है। (धारा 12, 13, 14)
(7) सभापति का पद रिक्त होना (Vacancy for Chairman)
यदि राज्य आयोग के सभापति का पद रिक्त हो जाता है तो उस व्यक्ति (सदस्य) के द्वारा कार्य सम्पन्न किया जाता है। जो योग्यमत होता है तथा जिसे राज्य सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिए नियुक्त किया जाता है। [धारा 18 (A)]
काका कालेलकर आयोग को सरकार ने कौन-कौन से कार्य सौंपे थे?
(8) अपील किया जाना (Appealing )
यदि कोई उपभोक्ता, राज्य आयोग के आदेश (निर्णय) से सन्तुष्ट नहीं होता है तो यह निर्णय की तिथि से 30 दिन के भीतर राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपील कर सकता है। राष्ट्रीय आयोग समय पर उपभोक्ता द्वारा अपील कर पाने पर यदि अपील न करने के कारणों से सन्तुष्ट हो जाता है तो 30 दिन के पश्चात् भी अपील को स्वीकार कर सकता है। (धारा 19)
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