उपभोक्ता के स्वतन्त्र उपभोग करने में बाधाय
उपभोक्ता के स्वतन्त्र उपभोग करने में निम्नलिखित बाधायें आती है।
(1) एकाधिकार
उपभोक्ता की प्रभुता के मार्ग में एकाधिकार एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। एकाधिकार की स्थिति में वस्तु की माँग के स्थान पर उनकी पूर्ति का विशेष महत्त्व होता है। फलतः एकाधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता पूर्व निर्धारित मूल्य पर वस्तु क्रय करने के लिए बाध्य होता है और इस प्रकार एकाधिकार की स्थिति में उपभोक्ता निर्देश देने के स्थान पर एकाधिकार से निर्देश प्राप्त करता है।
(2) फैशन
फैशन से भी उपभोक्ता की चयन शक्ति सीमिति हो जाती है क्योंकि एक सामाजिक प्राणी होने के नाते उसे अपना चयन उन वस्तुओं तक ही सीमित रखना पड़ता है जो फैशन में हों।
(3) प्रमाणित वस्तुएँ
वर्तमान समय में अधिकांश वस्तुओं पर विशाल स्तर पर उत्पादन किया जाता है। उत्पादक वस्तुओं के उत्पादन में व्यक्तिगत रुचि एवं अधिमान पर कोई ध्यान नहीं देने वरन् वे कम से कम लागत पर बड़ी मात्रा में उत्पादन करना पसन्द करते हैं जिससे वे अधिकतम लाभ अर्जित कर सकें।
(4) आदतें, स्वभाव, सामाजिक रीति-रिवाज एवं परम्पराएँ
उपभोक्ता अनेक वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रयोग में अपनी आदतों, स्वाभाव, सामाजिक रीति-रिवाज एवं परम्पराओं से प्रभावित होता है जिससे उसकी चयन सम्बन्धी स्वतन्त्रता अत्यन्त सीमित रह जाती है।
(5) उपभोक्ता के सीमित साधन
उपभोक्ता की प्रभुता पर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रतिबन्ध इसके सीमित साधनों द्वारा लगता है। समाज में अधिकांश उपभोक्ताओं की आय उनकी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति सर्वथा अपर्याप्त होती है, अतः व्यवहार में उपभोक्ता दन वस्तुओं एवं सेवाओं को स्वीकार करने के लिए बाध्य होता है जिन्हें यह अन्यथा स्वीकार नहीं करना चाहता है। अन्य शब्दों में, उपभोक्ता को अपनी सीमित आय जिन्हें वह अन्यथा स्वीकार नहीं करना चाहता है। अन्य शब्दों में, उपभोक्ता को अपनी सीमित आय के कारण निम्न स्तर की तथा अल्प मात्रा में उपलब्ध वस्तुओं एवं सेवाओं से ही सन्तुष्ट होना पड़ता है।
भारत में उपभोक्ता संरक्षण
भारत के उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने अनेक उपाय किए हैं
(1) उपभोक्ता संरक्षण के लिए उपाय योजना
केन्द्र सरकार ने उपभोक्ता सुरक्षा आन्दोलन को उच्च प्राथमिकता दी है। नागरिक आपूर्ति विभाग ‘उपभोक्ता सुरक्षा के लिए उपाय’ नामक एक योजना चला रही है। इस योजना के अन्तर्गत उपभोक्ता सुरक्षा क्षेत्र में कार्यरत उपभोक्ता संगठनों को वित्तीय सहायता दी जाती है। यह विभाग उपभोक्ता सुरक्षा कानूनों से सम्बन्धित विभिन्न विभागों के साथ सम्पर्क बनाए रखता है जिससे कि उपभोक्ताओं के श्रेष्ठतर संरक्षण के लिए इन कानूनों की समीक्षा की जा सके।
एक उपभोक्ता सुरक्षा सलाहकार परिषद् बनाई गई है। यह उपभोक्ता हितों से सम्बन्ध रखने वाले सभी मुद्दों पर सरकार को परामर्श देती है।
(2) सार्वजनिक क्षेत्र का विकास एवं विस्तार
विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में सार्वजनिक क्षेत्र के विकास एवं विस्तार पर पर्याप्त बल दिया गया है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्न हैं
- (क) आर्थिक शाक्ति के संकेन्द्रण पर रोक लगाना।
- (ख) लाभ का सार्वजनिक हित में उपयोग करना।
- (ग) सामाजिक विपणन की अवधारणा को क्रियान्वित करना।
- (घ) विभेदात्मक मूल्य नीति अपनाकर कम आय वाले उपभोक्ताओं को विशेष लाभ पहुँचाना।
- (ङ) आधारभूत एवं केन्द्रीय महत्त्व के सभी उद्योगों तथा जनोपयोगी सेवाओं से सम्बन्धित उद्योगों का विकास करना।
- (ज) शोषण रहित समाज की स्थापना करना अर्थात् उपभोक्ताओं का शोषण रोकना।
- (ब) सन्तुलित औद्योगिक विकास करके देश के सभी उपभोक्ताओं को विकास के साथ पहुंचाना।।
(3) वैधानिक नियमन
भारत सरकार ने वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन, पूर्ति वितरण, मूल्य तथा गुणवत्ता की व्यवस्था में सुधार लाने के लिए अनेक अधिनियम पारित किए हैं। यथा
- (a) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 19551
- (b) बाट तथा प्रमाप अधिनियम, 19761
- (c) उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 19931
- (d) भारत प्रमाप व्यूरो अधिनियम, 1986 1
- (e) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 19861
- (f) वस्तु विक्रय अधिनियम, 19301
- (g) औषधि नियन्त्रण अधिनियम, 19501
- (h) औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम, 19461
- (i) भारतीय संविदा अधिनियम, 19721
- (J) चोरबाजारी निरोध एवं आवश्यक वस्तु पूर्ति साधारण अधिनियम, 19801
- (k) औषधि एवं अभिचार उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954।
- (L) व्यापार एवं विक्रय योग्य प्रतिरूप अधिनियम, 19571
- (m) सिगरेट (उत्पादन, वितरण एवं पूर्ति नियमन) अधिनियम, 19751
- (n) एकाधिकार एवं प्रतिबन्धित व्यवहार अधिनियम, 1969 ।
- (o) खाद्य मिलावट विरोध अधिनियम, 19961
(4) सार्वजनिक वितरण प्रणाली
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सरकार मूल्यों पर नियन्त्रण रखती है, मुद्रा स्फीति को कम करती है तथा मुख्य आवश्यक वस्तुओं की उचित मूल्यों पर उपभोक्ताओं को आपूर्ति सुनिश्चित करती है। गेहूं, चावल, चीनी, आयातित खाद्य तेल और मिट्टी का तेल, कोयला और कपड़ा आवश्यक वस्तुओं के क्रय और उनके राज्य सरकारों को वितरण का दायित्व भारतीय खाद्य निगम, भारतीय राज्य व्यापार निगम, राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता समिति तथा कोल इण्डिया लि. का है।
(5) उपभोक्ता सहाकारी भण्डार
उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर अच्छी श्रेणी की वस्तुओं को उपलब्ध कराने के लिए और इस प्रकार वस्तुओं की गुणवत्ता और मूल्यों पर नियन्त्रण रखने और सेवाएँ प्रदान करने के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ताओं की सहकारी संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया जा रहा है जिससे इन उपभोक्ता सहकारी संस्थाओं के अन्तर्गत निचले स्पर पर 16,508 उपभोक्ता सहकारी भण्डार, जिला स्तर पर 599 केन्द्रीय थोक उपभोक्ता समितियाँ, राज्य स्तर के 21 उपभोक्ता संघ/राज्य विपणन और उपभोक्ता संघ तथा शीर्ष स्तर पर राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ आते हैं। ये सहकारी संस्थाएँ शहरी क्षेत्रों में 32,500 फुटकर सहकारी भण्डार चला रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि ऋण समितियों को उपभोक्ताओं के लिए आवश्यक वस्तुओं / सामानों के वितरण का कार्य सौंप दिया गया है। 94,000 कृषि ऋण समितियों में से लगभग 50 प्रतिशत समितियाँ आवश्यक सामान के वितरण का कार्य कर रही हैं।
आत्मकथा का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?
यह 5 संवर्द्धन तथा उत्पादन इकाइयाँ भी चलाता है। परिसंघ राज्यों द्वारा मनोनीत एजेन्सियों के द्वारा नियन्त्रित मूल्य पर दिए जाने वाले कपड़े के वितरण की राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय समिति है। परिसंघ ने सरकार की वित्तीय सहायता से एक परामर्श एवं संवर्द्धन कोष्ठ का गठन किया है। इस कोष्ठ का मुख्यालय दिल्ली में है और कलकत्ता, चेन्नई और अहमदाबाद में इसके तीन क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
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