उदारवादी राजनीति की असफलता- उदारवादियों का उद्देश्य सीमित था, जिससे देशभक्त तथा नवयुवक वर्ग सन्तुष्ट नहीं था। वे कुछ सुधारों के द्वारा भारतीयों को प्रशासन में उच्च स्थान दिलाना चाहते थे और विधान सभाओं का विस्तार चाहते थे। उनमें अंग्रेजो के प्रति राजभक्ति की भावना तथा ब्रिटिश साम्राज्य में बने रहने की भावना का प्राधान्य था। उनके आत्म निवेदन का तरीका अत्यन्त अपमानजनक था, अत: उसे भिक्षावृत्ति उचित ही कहा गया था। वस्तुतः नरमदल पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त बुद्धिजीवियों का एक उदारवादी आन्दोलन था, जिसमें संघर्ष या स्वतन्त्रता का कोई स्थान नहीं था।
काँग्रेस के चौथे अधिवेशन में एक वक्ता ने तो यहाँ तक कहा था कि “वे ब्रिटिश सरकार को अपनी राष्ट्रीय सरकार समझते हैं। अंग्रेजी हमारी सामान्य भाषा है और अंग्रेजी संस्थाएँ हमें अत्यन्त प्रिय हैं।” उदारवादियों के इतने समर्पण तथा निष्ठा का ब्रिटिश सरकार 7 पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उसका दृष्टिकोण उदारवादियों के प्रति द्वेषपूर्ण और विरोधी बना रहा।
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दूसरी ओर उनकी नीतियों का भारतीयों ने भी विरोध किया और अन्ततः उन्हें अस्वीकार कर दिया। उनके अस्वीकार करने का मुख्य कारण यह था कि बीस वर्षों में वे कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं प्राप्त कर सके। यह भी महत्वपूर्ण है कि 1889 के बाद उदारवादी आन्दोलन कर्ज़न की दमनात्मक नीति से बिखरने लगा था।
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