उच्च शिक्षा के उद्देश्य
विभिन्न विद्वानों ने उच्च शिक्षा के उद्देश्य को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुसार “विश्वविद्यालय का दायित्व मानवता, सहनशीलता, तर्क, विचारों के विकास तथा सत्य की खोज करना है।”
एच. हेदरिंगटन ने अपनी पुस्तक “दि सोशल फंक्शन ऑफ दी युनिवर्सिटी” में विश्वविद्यालय का कार्य ज्ञान के उस व्यापक रूप का अन्वेषण करना बताया है जो मानव संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में विकास एवं उन्नति में सहायक हो सके। इससे स्पष्ट होता है कि उस शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान का संकलन, खोज तथा प्रसार करना है।
राधाकृष्णन आयोग (1952-53) के अनुसार विश्वविद्यालय शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं
- छात्रों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना।
- छात्रों में नैतिकता, सदाचार व आदर्श नागरिकता विकसित करना।
- प्रजातंत्र की सफलता हेतु कुशल नागरिक तैयार करना।
- सभ्यता व संस्कृति का संरक्षण व प्रसार करना।
- विभिन्न व्यवसायों, वाणिज्य, कृषि, उद्योग, राजनीति, प्रशासन आदि के लिए छात्रों को प्रशिक्षण देना।
कोठारी आयोग (1664-66) ने भी उच्च शिक्षा के उद्देश्यों पर अपने विचार निम्न प्रकार व्यक्त किये हैं
- अध्यापकों एवं विद्यार्थियों में तथा उनके माध्यम से समस्त समाज में सत् जीवन के लिए आवश्यक मूल विकसित करना।
- शिक्षा के द्वारा समानता व सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना तथा सांस्कृतिक व सामाजिक विभिन्नताओं को खत्म करना।
- नवीन ज्ञान की खोज करना, सत्य की प्राप्ति के लिए निडर होकर कार्य करना तथा नवीन जरूरतों व अन्वेषणों के सन्दर्भ में प्राचीन ज्ञान का विश्लेषण करना।
- जीवन के सभी क्षेत्रों में उचित नेतृत्व प्रदान करना। इसके लिए प्रतिभावान् युवकों को खोजकर उनमें मानसिक शक्ति, अभिरुचि, सुप्रवृत्ति एवं नैतिकता विकसित करना।
- कृषि, कला, चिकित्सा विज्ञान व तकनीकी एवं अन्य व्यवसायों में निपुण व प्रशिक्षित नागरिक तैयार करना।
उच्च शिक्षा का महत्त्व एवं आवश्यकता
प्राचीन काल से शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। शिक्षा के बिना राष्ट्र एवं समाज की प्रगति असम्भव है। राष्ट्र एवं समाज की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ तैयार किये जाना जरूरी है जो उच्च शिक्षा प्राप्त होते है। इसलिए आधुनिक युग में उच्च शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व है। उच्च शिक्षा के महत्त्व और आवश्यकता को निम्न बिन्दुओं के तहत् स्पष्ट किया जा सकता है
1.छात्रों में व्यापक दृष्टिकोण उत्पन्न करने हेतु
छात्रों में व्यापक दृष्टिकोण उत्पन्न करने की क्षमता उच्च शिक्षा में ही होती है। सामान्य शिक्षा छात्रों को सामान्य ज्ञान देती है, जबकि उच्च शिक्षा छात्रों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों का उच्चस्तरीय ज्ञान कराती है, जिससे उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति का नजरिया व्यापक हो जाता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करके लोग संकुचित एवं संकीर्णता के क्षेत्र से निकालकर सहिष्णुता के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। उनमें समानता, सामाजिकता, सहिष्णुता एवं सांस्कृतिक और अन्तर्राष्ट्रीयता का ज्ञान उत्पन्न होता है। इसलिए उच्च शिक्षा व्यक्ति की प्रगति एवं राष्ट्र व समाज के विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक है।
2. कार्यकुशलता और नेतृत्व क्षमता का विस्तार करने हेतु
कार्यकुशलता और नेतृत्व क्षमता के अभाव में व्यक्ति अधूरा रहता है। इसके बिना व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकता। उच्च शिक्षा ही एक ऐसी शिक्षा है जो छात्रों को स्वयं की रुचि, रुझान, योग्यता एवं क्षमता के अनुसार किसी भी कार्य को कुशलतापूर्वक अंजाम देने के योग्य बनाती है। उच्च शिक्षित लोग ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व बड़ी कुशलता से करते हैं। व्यक्ति के लिए उच्च शिक्षा का अत्यन्त महत्त्व एवं आवश्यकता का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
3. उच्च स्तर का ज्ञानार्जन, नये ज्ञान का आविष्कार और सत्यता की जानकारी हेतु
उच्च शिक्षा के माध्यम से छात्रों को सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, मानविकी एवं अनेकानेक क्षेत्रों के सम्बन्ध में जानकारी दी जाती है। इसके साथ-ही-साथ उन्हें नये ज्ञानों का आविष्कार तथा वास्तविक तथ्यों का पता करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं। इसके माध्यम से छात्रों को इस योग्य बनाया जाता है कि वे ज्ञान-विज्ञान एवं अन्य क्षेत्रों में नित्य नये आविष्कार कर सकें। इसलिए उच्च कोटि के ज्ञान के लिए उच्च शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व एवं आवश्यकता है।
4. विषय विशेषज्ञों के निर्माण हेतु
राष्ट्र, समाज एवं मानव के विकास के लिए अनेकानेक विषयों के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है, जिसे पूरा करने के लिए उच्च शिक्षा का महत्त्व एवं आवश्यकता का महत्वपूर्ण स्थान है। उच्च शिक्षा के द्वारा ही धर्म, दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, चिकित्स्य, कानून, अभियांत्रिकी शिक्षण संगठन एवं प्रशासन आदि के लिए विशेषज्ञ तैयार किये जाते हैं उच्चतम वर्ग के मानव संसाधन तैयार किये जाते हैं। इसलिए उच्च शिक्षा के बिना मनुष्य के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। अतः कहा जा सकता है कि इन सबके लिए उच्च शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व और आवश्यकता है।
5. राष्ट्र के चहुंमुखी विकास हेतु
राष्ट्र के किसी भी क्षेत्र में चतुर्मुखी विकास करने के लिए सर्वप्रथम प्राकृतिक एवं मानव संसाधन की जरूरत पड़ती है। उच्च शिक्षा उच्च स्तरीय मानवीय संसाधन का निर्माण करती है। यही वजह है कि जिस राष्ट्र में उच्च स्तरीय मानवीय संसाधन की जितनी अधिक प्रचुरता होती है, वह राष्ट्र उतनी ही तीव्र गति से विकास की ओर बढ़ता है। किसी राष्ट्र के किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए उच्च स्तर के मानवीय संसाधन की आवश्यकता होती है, क्योंकि राष्ट्र के आर्थिक विकास तो औद्योगीकरण पर आधारित होता है, इस निर्भरता को पूरा करने का दायित्व उच्च शिक्षा पर रहता है, जिसके द्वारा कुशल वैज्ञानिक एवं तकनीशियन, अभियन्ता एवं प्रशासन का निर्माण किया जाता है। अतः कह सकते हैं कि किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए उच्च शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व एवं आवश्यकता है।