उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता- अनुच्छेद 226 यह उपबन्धित करता है कि अनुच्छेद 32 में किसी बात के होते हुए भी प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन समस्त क्षेत्रों में, इनके सम्बन्ध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, संविधान के भाग 3 में प्रदत्त मूल अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए और किसी अन्य प्रयोजन के लिए, सम्बन्धित राज्यों में किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को समुचित मामलों में किसी सरकार को ऐसे निदेश या आदेश या रिट, जिनके अन्तर्गत बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रितषेध अधिकार.. पृच्छा और उत्प्रेरण रिट है, जारी करने की शक्ति होगी।
भारत में राज्यपाल की भूमिका की समीक्षा कीजिए।
इस प्रकार, उच्च न्यायालय की रिट-अधिकारिता केवल मूल अधिकारों की संरक्षा के लिए ही नहीं सीमित है बल्कि किसी अन्य विधिक अधिकारों की संरक्षा के लिए भी उपलब्ध है। इस मामलें में उच्च न्यायालयों की शक्ति उच्चतम न्यायालय की अपेक्षा अधिक विस्तृत है। “किसी अन्य प्रयोजन के लिए” पदावली से तात्पर्य किसी विधिक अधिकार या कर्तव्य से है। इस पदावली का अर्थ यह नहीं है कि उच्च न्यायालय अपनी इच्छानुसार किसी भी प्रयोजन के लिए इसका प्रयोग कर सकते हैं।
उच्च न्यायालयों को इसका प्रयोग संविधान के अतिरिक्त अन्य विधियों के अधीन प्राप्त विधिक अधिकारों के प्रवर्तन कराने के लिए भी किया जा सकता है। अनुच्छेद 226 (क) द्वारा उच्च न्यायालय को प्रदत्त शक्ति अनुच्छेद 32 के खण्ड (2) के अधीन उच्चतम न्यायालय को प्राप्त शक्ति को किसी प्रकार कम नहीं करती है।