तुजुक-ए-बाबरी भारत में मुगलवंश के संस्थापक जहीरउद्दीन मुहम्मद बाबर की आत्मकथा है। इसे ‘बाबर’ ने चुगतई तुर्की भाषा में लिखा है। इसका बाबरनामा के नाम से अनुवाद फारसी में अकबर के शासनकाल में अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना ने किया। इसे वाक्याते बाबरी के नाम से भी जाना जाता है। बाबर नामा में भारत की तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं प्राकृतिक दशा, आदि का सजीव चित्रण किया गया है। बाबरनामा में 1493 से 1509 ई. तक का विवरण इतिहास के रूप में है, और प्रत्येक वर्ष की समस्त घटनाओं पर पूरे-पूरे लेख लिखे गये हैं। किन्तु 1519 ई. के बाद का वृतान्त डायरी के रूप में लिखा गया ही 1527 ई. के बाद उसने भारत के भूगोल, पशु-पक्षियों और वनस्पतियों आदि का वर्णन किया है। कहा जाता है कि इस ग्रन्थ का सन् 1509 से 1519 ई. के मध्य का भाग नष्ट हो गया था।
प्रबुद्ध निरंकुश शासक के रूप में फ्रेडरिक महान का उल्लेख कीजिए।
इस ग्रन्थ में मध्य एशिया की राजनीति, तैमूर-वंश का इतिहास, उमरा वर्ग, आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ में बाबर ने अपने अन्दर विद्यमान गुण दोषों का भी वर्णन किया है। निः सन्देह बावरनामा विश्व साहित्य की अमूल्य निधि है।