तुगलक कौन थे? गयासुद्दीन तुगलक की विजयों एवं उसकी उपलब्धियों का वर्णन कीजिए?

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तुगलक कौन थे? – ‘गयासुद्दीन तुगलक वंश का संस्थापक माना जाता है। उसका बचपन का नाम ‘गाजी मलिक’ था। इतिहासकारों का मत है कि गाजी मलिक का पिता’ मलिक तुगलक’ बलबन का गुलाम था। कुछ विद्धान कहते हैं कि ‘गाजी तुगलक अपने दो भाइयों ‘रजब’ तथा अबूबकर को लेकर ‘खुरासान’ से भारत आया था और उसने अलाउद्दीन खिलजी के यहाँ नौकरी कर ली थी। उसने अलाउद्दीन के शासनकाल में सीमान्त प्रदेशों में मंगोलों के नेता ‘अलीबेग’ और ‘इकबाल मन्द’ को परास्त किया था। इससे प्रसन्न होकर सुल्तान ने गाजी मलिक को ‘दिपालपुर’ का शासक नियुक्त कर दिया।

‘अलाउद्दीन’ की मृत्यु के बाद अराजकता का युग आरम्भ हुआ और सिंहासन पर ‘खुसरव’ ने अधिकार कर लिया। खुसरव ने ‘गाजी मलिक के पुत्र ‘जूनाखी’ (मौहम्मद तुगलक) को अपने यहाँ ‘मालिक आखूर’ का पद देकर गाजी मलिक को प्रसन्न किया था। यह स्मरण रहे कि खुसरव हिन्दू या उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। सुल्तान, होने पर खुसरव ने मुसलमानों पर अत्याचार किये। प्रो. एस आर शर्मा लिखते हैं, “मस्जिदें भ्रष्ट तथा नष्ट की गई और इस्लाम के धर्म ग्रन्थों का आसनों तथा स्टूलों की भाँति प्रयोग किया गया।” इस प्रकार के अत्याचार को ‘गाजी मलिक सहन न कर सका। उसने अपने पुत्र ‘जूनाखों’ को दिल्ली से बुला लिया और एक विशाल सेना लेकर ‘खुसरब’ के विरुद्ध चल दिया। सभी तुर्की सरदारों तथा अमीरों ने उसका स्वागत किया। खुसरव की सेना को परास्त कर दिया गया। खुसरव को ‘तिलपट’ के पास एक बाग में छिपा हुआ पाया गया और गाजी मलिक के सम्मुख लाया गया। तथा उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया।

खुसरव शाह का वध किये जाने के पश्चात् 7 सिम्बर 1320 ई. को ‘गाजी मलिक’ ने दिल्ली के ‘हजार खम्भा महल’ में प्रवेश किया। उसने अमीरों की सहानुभूति प्राप्त करने के उद्देश्य से यह प्रस्ताव रखा कि यदि खिलजी वंश का कोई उत्तराधिकारी शेष जीवित हो तो उसको सुल्तान बना दिया जाये। खिलजी वंश का कोई उत्तराधिकारी उस समय जीवित नहीं था। अतः अमीरों ने सर्वसम्मति से सुल्तान पद के लिए उसको ही चुना। इस तरह वह 8 सितम्बर 1320 ई. को ‘गयासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

ग्यासुद्दीन की गृहनीति

ग्यासुद्दीन ने सुरतान बनने के बाद सबसे पहले साम्राज्य को सुसंगठित और स्थायित्व प्रदान किया। इसके लिए उसने कई महत्वपूर्ण कार्य किये, उसने नस्त के आधार पर तुर्की अमीरों का समर्थन प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की थी। परन्तु उसने खुशरव के समर्थकों को भी उनके पदों पर रहने दिया जिससे वे संतुष्ट रहे। उसने अलाउद्दीन के वंश की लड़कियों के विवाह तो करायें परन्तु कट्टर खिलजी समर्थकों से उसने उनकी जागीरे छीन ली और उन्हें उनके पद से पृथक कर दिया। अलाउद्दीन के समय जिन व्यक्तियों से उनकी जागीरें छीन ली गयी थी वे उन्हें वापस कर दी गयी। इस प्रकार उसने उदारता और कठोरता का समन्वित प्रयोग करके सभी सरदारों और नागरिकों को संतुष्ट किया तथा किसी ने उसके सुल्तान बनने का विरोध नहीं किया गयासुद्दीन ने खुसरव द्वारा अनावश्यक रूप से वितरित किये गये। धन को वापस करने का प्रयत्न किया। इस कार्य में वह पर्याप्त सफल रहा परन्तु वह सम्पूर्ण धन को वापस न ले सका। शेख निजामुद्दीन औलिया ने तो उसकी धन की मांग का उत्तर देने की आवश्यकता ही नहीं समझी। एक अन्य धारणा के अनुसार उन्होंने सुल्तान को कहलवा दिया कि “उन्होंने उस धन को बाँट दिया और अब उनके पास वापस करने के लिए धन नहीं है।”

गयासुद्दीन ने सम्पूर्ण राज्य की सड़के ठीक करवायी तथा पुलों एवं नहरों का निर्माण कराया। इससे यातायात में सुविधा हुई। उसकी डाक व्यवस्था श्रेष्ठ थी और शीघ्रता करने के लिए प्रत्येक 3/4 मील पर डाक लाने वाले कर्मचारी अथवा घुड़सवार नियुक्त किये गये थे। उसने न्याय व्यवस्था में सुधार किये अलाउद्दीन के समय की कठोर दण्ड व्यवस्था समाप्त कर दी गयी ‘चोगें, कर न देने वालों और सरकारी धन की बेइमानी’ करने वालों को दण्ड दिये गये। बरनी के कथनानुसार “तुगलक शाह के न्याय से भेडिये को भी इस बात का साहस नहीं होता था कि किसी भेड़ की ओर देखे।” इसके अतिरिक्त गयासुद्दीन ने व्यभिचारी मदिरापान, जुआ खेलना आदि मुदयों को भी रोकने का प्रयत्न किया। हिन्दुओं के प्रति गयासुद्दीन की नीति कठोर थी। हिन्दुओं के बारे में उसने अपने अधिकारियों को आदेश दिया कि वे न तो इतने धनवान बन सके कि विद्रोह करने को तत्पर हो जाय और न इतने निर्धन हो जाय कि कृषि छोड़ कर भाग जाय। इस प्रकार हिन्दुओं के प्रति अपनायी गयी उसकी नीति का मुख्य आधार राजनीतिक था। डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है कि “यदि उसने हिन्दुओं के प्रति कठोरता प्रदर्शित की तो यह कठोर धर्मान्धता का परिणाम न होकर राजनीतिक आवश्यकता थी।” इस प्रकार गयासुद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति अलाउद्दीन की नीति के निकट ही थी।

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विदेश नीति

ग्यासुद्दीन तुगलक एक वीर साहसी और महत्वकांक्षी शासक था विदेश नीति के अन्तर्गत उसने साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाया। उसने वारंगल, उड़ीसा, गुजरात, बंगाल और तिरहुत पर आक्रमण किये। उसे 1324 ई. में मंगोलों के आक्रमण का भी सामना करना पड़ा। जिसमें उसे सफलता प्राप्त हुई, जिसका विवरण ग्निवत है

(i) वारंगल की विजय ग्यासुद्दीन ने सन् 1322-23 ई. में वारंगल पर आक्रमणकर उसे जीत लिया।

(ii) उड़ीसा विजयः सन् 1324 ई. में उसने उड़ीसा पर आक्रमण किया और वहाँ के राजा भानुदेव की पराजय हुई।

(iii) बंगाल विजय- बंगाल प्रांत दिल्ली सल्तनत के हाथों से अलग हो गया था। ग्यासुद्दीन तुगलक के शासन काल के दौरान इस प्रांत पर शासन को लेकर तीन भाइयों में लड़ाई हो रही थी। इस लड़ाई में ग्यासुद्दीन ने अपना हस्तक्षेप करके वहाँ के शासक को हराकर उत्तरी बंगाल का शासक नासिरुद्दीन का बना दिया और बहराम खाँ को यहाँ का सूबेदार नियुक्त कर दिया।

(iv) तिरूहत विजय- इसामी का मत है कि सुल्तान ने बंगाल से लौटते समय निरूहत पर आक्रमण किया था। उस समय यहाँ का राजा हरसिंह देव या जो कि आक्रमण से डर कर नेपाल भाग गया था। इसके पश्चात् इसे दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बना दिया गया। ग्यासुद्दीन ने

(v) मदुरा पर विजय दक्षिण के मालाबार तट पर स्थित इस राज्य को आक्रमण कर विजित कर लिया और दिल्ली के साम्राज्य में मिला लिया।

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