‘तीस वर्षीय युद्ध फ्रेडरिक विलियम के काल में आरम्भ हो गया था। युद्ध बैन्डेन वर्ग की जन और धन की अपार क्षति हुई। इस युद्ध में बैन्डेन वर्ग की अधिक क्षति इसलिए भी हुई क्योंकि फ्रेडरिक विलियम का परवर्ती शासक जार्ज विलियम कमजोर था। एत्व और ऑडर नदियों की दृष्टियों में प्रोटेस्टेन्ट और कैथोलिकों के बीच कत्लेआम हुआ था। इस युद्ध की समाप्ति 1648 ई. की बेस्ट फोलिया की सन्धि के साथ हुई इस युद्ध का आरम्भ धार्मिक रूप में हुआ, किन्तु अन्त राजनीतिक रूप में हुआ।
युद्ध के कारण
(1) धार्मिक मतों में ईर्ष्या
यूरोप में 16 वीं शताब्दी का अन्त होते-होते प्रोटेस्टेन्ट मत की शाखाओं के अनुयायियों की शक्ति और प्रभाव बढ़ने लगे थे। उधर धर्म सुधार प्रतिक्रिया आन्दोलन के कारण कैथोलिकों की शक्ति भी प्रबल हो उठी थी, जिसके कारण दोनों धार्मिक विचारधाराओं में परस्पर ईर्ष्या उत्पन्न होने से युद्ध भूमि में उतरने की उत्सुकता प्रकट करने लगे।
(2) धार्मिक दलों में मतैक्य का प्रभाव
आक्सबर्ग की सन्धि द्वारा केवल मार्टिन लूथर की ही विचारधारा को प्रधानता दी गई थी। कैल्विन की विचारधारा अभी मान्यता प्राप्त नहीं कर सकती थी। अतः स्वयं प्रोटेस्टेन्ट धर्म की शाखाओं में भी आपस में मतभेद में वृद्धि होने लगी जिसके परिणामस्वरूप धार्मिक युद्ध की सम्भावना बढ़ने लगी।
(3) प्रोटेस्टेन्टों की आशंका
कैथोलिक धर्म सुधार द्वारा प्रोटेस्टेन्टों पर भली-भाँति के अत्याचार किए जाने लगे जिनसे उनमें भय और आंशिका उत्पन्न होने लगी। अतः उन्होंने अपनी रक्षार्थ यूरोप के कुछ शक्तिशाली राज्यों का समर्थन प्राप्त कर लिया, जिससे धार्मिक युद्ध अनिवार्य हो गया।
(4) कैथोलिकों का प्रोटेस्टेन्ट के साथ मतभेद
प्रोटेस्टेन्टों ने प्रभावपूर्ण स्थिति प्राप्त करके कैथोलिक गिरजों और मठों की अतुलनीय सम्पत्ति पर अधिकार कर लिया। इससे कैथोलिकों में असन्तोष और दोष उत्पन्न हुए। उन्होंने प्रोटेस्टेन्टों की प्रगति को रोक लगाने के लिए अपने धर्म को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए प्रयास करने लगे, जिनके कारण दोनों धर्मों के अनुयायियों में संघर्ष होने लगा, जो बढ़ते बढ़ते भीषण युद्ध का रूप धारण करने लगा।
(5) शासकों का स्वार्थ
यूरोपीय राज्यों के शासकों के स्वायों ने भी धार्मिक युद्ध को प्रोत्साहन दिया हेप्सवर्ग वंश के शासक जर्मनी में निरंकुशताबाद शासन की स्थापना करना चाहते थे। परन्तु छोटे-छोटे राज्य उनकी निरकुशता के विरोधी बन गए। डेन्मार्क उत्तरी सागर में और स्वीडन बाल्टिक सागर में अपना प्रभाव बढ़ाने के प्रयत्न कर रहे थे। इस प्रकार यूरोपीय शासकों के स्वार्थों ने धार्मिक संग्राम को सहयोग प्रदान किया।
तीस वर्षीय युद्ध के परिणाम
(1) राजनीतिक परिणाम
तीस वर्षीय युद्ध का प्रारम्भ बोहेमियावासियों का हैप्सवर्ग के विरुद्ध विद्रोह के रूप में हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे यही बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष में बदल गया था। इस युद्ध के दो प्रमुख राजनीतिक परिणाम सामने आये थे। पहला परिणाम दो सदियों तक फ्रांस का उदय तथा दूसरा परिणाम जर्मनी का अनादर था। इस युद्ध में सबसे अधिक हानि जर्मनी की हुई थी। अत्याधिक संख्या में लोग मारे गए थे, उसके नगर पूरी तरीके से ध्वस्त हो गए थे, कृषि के योग्य हरी-भरी भूमि पूर्णतया बंजर हो गयी थी। उसके उद्योग-धन्धों तथा व्यापार की रीढ़ टूट गयी थी। इन सबके कारण जर्मनी का आन्तरिक महत्व कम हो गया था। तीस वर्षीय युद्ध ने जर्मनी की सभ्यता को पूरी तरह से शताब्दियों पीछे कर दिया था। तीस वर्षीय युद्ध के कारण जर्मनी पश्चिमी यूरोपीय देशों की तुलना में पीछे रह गया।
बालटिक सागर में स्वीडेन का एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उदय हुआ। बाल्टिक समुद्र एक तरीके से सुन्दर स्वीडिश झील के रूप में बदल गया था। बाल्टिक समुद्र का क्षेत्र काफी विस्तृत था जबकि स्वीडन की जनसंख्या बहुत ही कम थी और उसके पास इतना आर्थिक स्रोत भी न था कि वह इन क्षेत्रों तक अपना अधिकार रख सकता। स्वीडेन, वेस्टेफेलिया की संधि के बाद लगभग 70 वर्षों तक ही इन क्षेत्रों पर अपना अधिकार रख सका। बाद में प्रशा तथा रूस, स्वीडेन से काफी आगे निकल गए।
फर्डनिण्ड व ईसाबेला की विदेश नीति का वर्णन कीजिए।
(2) धन-जन की हानि
तीस वर्षीय युद्ध में धन-जन की सबसे ज्यादा क्षति हुई। हजारों की संख्या में लोग मारे गए। शिक्षा, व्यापार, वाणिज्य, कला तथा साहित्य सब कुछ मिलकर खाक हो गया। इस युद्ध के कारण लोगों को इतना सदमा पहुँचा था कि लोग मॅन मस्तिष्क तथा व्यवहार से जंगली हो गए थे। इस युद्ध में शहरी आबादी को सबसे ज्यादा कष्ट उठाने पड़े थे। कोई भी किसान इस उम्मीद से खेत की बुवाई नहीं करता था कि वह इन फसलों को काट भी पायेगा। लोग घर से बेघर हो गए वे भूखों मरने लगे। लोगों को पेट की भूख मिटाने के लिए लुटेरों के जत्थों में शामिल होना पड़ा था। सैकड़ों गाँवों में एक भी निवासी नहीं रह गया था, कई नगरों की जनसंख्या आधी से भी कम रह गयी थी।
(3) आधुनिक सामरिक गठ जोड़ों का राजनीतिक उदय
तीस वर्षीय युद्ध का इतिहास क्रूर विनाश तथा अत्याचारों से भरा हुआ है। किन्तु इस युद्ध से कई राजनीतिक गठ जोड़ों का भी उदय हुआ। इस राजनीति के फलस्वरूप ही फ्रेंच और स्वीडिश तथा वोहेमियन, डेनिश के बीच युद्धों को विभाजित किया गया था। वह समझौता जिसके कारण युद्ध समाप्त हुआ वह भी इसी राजनीति का ही परिणाम था। वेस्टफेलिया की संधि यूरोप के कूटनीतिक, धार्मिक तथा राजनीतिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी।
(4) जर्मनी व हैप्स बर्ग वंश की हानि
तीस वर्षीय युद्ध से जर्मनी को सबसे ज्यादा हानि का सामना करना पड़ा था। जर्मनी को अनेकों स्वतंत्र राज्यों और जागीरों में बाँट दिया गया था। जर्मनी दो शक्तिशाली राज्यों स्वीडेन व फ्रांस का काफी वर्चस्व स्थापित हो गया था। आस्ट्रिया रोमन साम्राज्य में हैप्सबर्ग राजवंश का धीरे-धीरे पतन होने लगा था। जर्मनी के कई छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हो जाने के कारण रोमन साम्राट के अधिकार छिन गए थे। स्पेन के गौरव का धीरे-धीरे सूर्यास्त होने लगा था। इस युद्ध के बाद हालैंड और स्वीटजरलैण्ड को पूर्ण स्वतंत्रता एवं अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्रदान कर दी गयी थी। तीस वर्षीय युद्ध का जो अच्छा परिणाम सामने आया वह यह था कि वेस्टफेलिया की संधि के द्वारा ब्रेडनवर्ग की राज्य सीमा के विस्तृत हो जाने के कारण तथा जर्मनी से हैप्सबर्ग सम्राट का प्रभुत्व पूरी तरीके से समाप्त हो जाने से प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण हो पाया।