तथ्य की परिभाषा देते हुए प्राथमिक एवं द्वैतीयक स्रोतों की विवेचना कीजिए।

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तथ्य की परिभाषा – यह सत्य है कि वैज्ञानिक अध्ययन का सारा दारोमदार वास्तविक तथ्यों पर ही निर्भर होता है। पर ‘तथ्य क्या है? वैज्ञानिक विवरण में ‘तथ्य’ शब्द का प्रयोग बहुत ज्यादा किया जाता है, परन्तु जैसा कि श्रीमती यंग ने लिखा है, यह ऐसा शब्द है जिसको परिभाषित करना बहुत कठिन है। अमेरिकन कालेज शब्दकोष में तथ्य को “जो वास्तव में घटित हुआ है’ कहकर परिभाषित किया गया है। परन्तु श्रीमती यंग के अनुसार, ‘तथ्य’ केवल मूर्त चीजों तक ही सीमित नहीं है। सामाजिक विज्ञान में विचार, अनुभव तथा भावनाएँ भी ‘तथ्य हैं। श्रीमती यंग ने आगे और लिखा है, कि “तथ्यों का ऐसे भौतिक या शारीरिक, मानसिक या उद्वेगात्मक घटनाओं के रूप में देखा जाना चाहिए। जिनकी निश्चयपूर्वक पुष्टि की जा सकती है एवं जिन्हें भाष्य की दुनिया में सच कहकर स्वीकार किया जाता है।

श्री फेयर चाइल्ड ने अपनी ‘डिक्शनरी ऑफ सोशियोलोजी’ में तथ्य की दो संभावित परिभाषाओं का उल्लेख किया है जो इस प्रकार है-1 तथ्य, कोई प्रदर्शित की गई या प्रकाशित की गई रचना है 2. तथ्य, एक घटना है जिसके अवलोकनों व माप के विषय में बहुत अधिक सहमति पाई जाती है।

सर्वश्री गुड एवं हु.ट महोदय के अनुसार “तथ्य एक अनुभवसिद्ध सत्यापनीय अवलोकन है।”

तथ्य संकलन (सूचना) के स्रोत

सामाजिक अनुसन्धान में विषय का चुनाव तथा अध्ययन पद्धतियों के निर्धारण के बाद अगला चरण समंकों या आँकड़ों का संकलन है। अध्ययन विषय से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्र करने के कार्य को समंकों का संकलन कहा जाता है। समंकों का संकलन जिन स्रोतों से होता है, उसे सूचना के स्रोत के नाम से सम्बोधित किया जाता है। सामाजिक घटना के कारण कार्य सम्बन्धों के वैज्ञानिक अध्ययन में समंकों के संकलन तथा इसमें सहयोग देने वाले सूचना के स्रोतों का काफी महत्त्व होता है, क्योंकि अनुसन्धान की सफलता समंकों की उपलब्धता पर ही निर्भर करती है। सामाजिक शोधकर्ता जिन साधनों के माध्यम से समंक या सूचनाएँ उपलब्ध करता है, वे सूचना स्रोत कहे जाते हैं।

समंक तथा सूचना के प्रकार

सामाजिक अनुसन्धान में संग्रह किये जाने वाले समंकों तथा सूचनाओं को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है-

  1. प्राथमिक समंक
  2. द्वैतीयक समंक

(1) प्राथमिक समंक

इन्हें मौलिक समंक भी कहा जा सकता है। शोधकार्य में जो समंक प्रारम्भ से अन्त तक नये सिरे से एकत्र किये जाते हैं, प्राथमिक समंक या सूचना कहा जाता है। इन समंकों का प्रयोग शोधकर्त्ता प्रथम बार करता है। इस प्रकार के समंक मौलिक होते. हैं तथा इसीलिए इनमें नवीनता पाई जाती है।

(2) द्वैतीयक समंक या सूचना

इसके अन्तर्गत उन समंकों को सम्मिलित किया जाता है जो शोधकर्ता के पूर्व ही संग्रहीत एवं प्रकाशित हो जाते हैं, इस प्रकार इनमें मौलिकता का अभाव होता है। इन समंकों का प्रयोग पहले भी हो चुका होता है। इस प्रकार की द्वैतीयक सूचना किन्हीं अन्य व्यक्तियों द्वारा पूर्व में ही संकलित कर लिया जाता है, जिनको शोधकर्त्ता अपने शोधकार्य में उपलब्ध तथ्यों की पुष्टि व विश्लेषण करने के लिए प्रयुक्त करता है। लेपियर ने लिखा है कि समंक उन समंकों को कहते हैं जो पहले से ही अस्तित्त्व में हैं एवं जो वर्तमान प्रश्नावली के उत्तर में नहीं अपितु किसी अन्य उद्देश्य के लिए एकत्रित किए गये हैं।”

अन्तर- प्राथमिक तथा द्वैतीयक समंक सूचना में प्रमुख अन्तर इस प्रकार है-

  1. प्राथमिक समंक या सूचना मौलिक होती है, जबकि द्वैतीय समंकों में मौलिकता का अभाव होता है।
  2. प्राथमिक समंकों की खोज व संकलन स्वयं शोधकर्त्ता करता है, जबकि द्वैतीयक समंक शोधकर्ता के पूर्व किन्हीं अन्य व्यक्तियों या संस्थानों के द्वारा संकलित हो चुके होते हैं।
  3. प्राथमिक समंक अप्रकाशित होते हैं, जबकि द्वैतीयक समंक पूर्व से ही प्रकाशित होते हैं।
  4. प्राथमिक समंक एक प्रकार से कच्चे माल की तरह होते हैं जिनका विश्लेषण तथा विवेचन शेष रहता है, जबकि द्वैतीयक समंक तैयार माल की तरह होते हैं, क्योंकि इनका विश्लेषण तथा कम से कम या दो बार प्रयोग हो चुका होता है।
  5. प्राथमिक समंक शोधकर्त्ता के लिए ज्यादा विश्वसनीय होते हैं, क्योंकि इनका संकलन स्वयं शोधकर्त्ता करता है, जबकि द्वैतीयक समंक शोधकर्ता के लिए उतने विश्वसनीय नहीं होते, क्योंकि इनका संकलन स्व’ गोधकर्त्ता के द्वारा न होकर अन्य व्यक्तियों के द्वारा होता है।

प्राथमिक समंक व सूचना के प्रमुख स्रोत पद्धति

जिन साधनों से प्राथमिक समंक संकलित किये जाते हैं, उन्हें सूचना के प्राथमिक स्रोत कहा जाता है। प्राथमिक समंक या सूचना का संकलन चूंकि शोधकर्त्ता स्वयं क्षेत्र में जाकर करता है इसलिए इसे क्षेत्रीय सूचना के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। श्रीमती पी० बी० यंग ने प्राथमिक समंक या क्षेत्रीय सूचना स्रोतों को निम्न भागों में बाँटा है- 1. प्रत्यक्ष अवलोकन, 2. साक्षात्कार, 3. प्रश्नावली, 4. अनुसूची।

(1) प्रत्यक्ष अवलोकन

क्षेत्र में जाकर अनुसन्धानकर्ता अपनी आँखों से मनुष्यों के व्यवहारों को देखकर तथ्यों का संकलन जिस विधि से करता है उसे अवलोकन कहा जाता है। इस विधि में अनुसन्धानकर्ता समुदाय की संस्कृति, भाषा, रहन-सहन व उनसे सम्बन्धित तथ्यों को प्रत्यक्ष रूप से देखते हुए उनका संकलन करता है। अवलोकन, कई प्रकार का होता है जैसे सहभागी अवलोकन, असहभागी अवलोकन, नियन्त्रित व अनियन्त्रित अवलोकन इत्यादि।

(2) साक्षात्कार

इस विधि में अनुसन्धानकर्ता व्यक्तियों से बातचीत कर या प्रश्न पूछ कर परस्पर उत्तर प्रत्युत्तर के जरिए सूचना प्राप्त कर अध्ययन विषय से सम्बन्धित विश्वसनीय सूचनाएँ इस विधि से प्राप्त हो जाती है, जिनका संकलन शोधकर्ता अपने शोधकार्य में समस्या की व्याख्या व विश्लेषण करने के लिए करता है।

(3) प्रश्नावली

समस्या से सम्बन्धित प्रश्नों की व्यवस्थित तालिका के माध्यम से सूचना प्राप्त करने की विधि प्रश्नावली है। इस विधि में शोधकर्ता द्वारा छपी हुई प्रश्नावली को सूचनादाता के पास डाक या किसी अन्य माध्यम से भेज दिया जाता है, जिनका उत्तर लिखकर सूचनादाता उसे वापस भेज देते हैं। इस प्रकार प्रश्नावली में उत्तर लिखने का कार्य सूचनादाता करता है। शोधकर्ता उनके सामने उपस्थित नहीं रहता।

(4) अनुसूची

प्रश्नावली की तरह अनुसूची भी समस्या से सम्बन्धित प्रश्नों की व्यवस्थित तालिका है, जिसमें उत्तर या सूचना लिखने का कार्य स्वयं शोधकर्ता करता है। अनुसन्धानकर्त्ता सूचनादाताओं से व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित कर सूचनाओं को अनुसूची में अंकित करता जाता है, इस प्रकार उसमें विश्वसनीयता की सम्भावना अधिक रहती है तथा अधिक से अधिक सूचनाएँ भी प्राप्त की जाती हैं।

दैतीयक समंकों के प्रमुख स्रोत

द्वैतीयक समंक वे होते हैं, जो पहले से ही किसी व्यक्ति, संस्था या संगठन द्वारा संकलित कर लिए जाते हैं। इस प्रकार की सूचनाएँ लिखित होती हैं, इसलिए इनको लिखित या दस्तावेज स्रोत के नाम से सम्बोधित किया जाता है। द्वैतीयक समंकों के संकलन की प्रमुख विधियों या सूचना के स्रोत इस प्रकार हैं-

  1. व्यक्तिगत दस्तावेज,
  2. सार्वजनिक दस्तावेज

(1) व्यक्तिगत दस्तावेज

व्यक्तिगत दस्तावेज वे होते हैं, जिनसे व्यक्ति स्वयं के बारे में या अन्य व्यक्तियों के बारे में सूचना तथा घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करता है, इनके विवरण का स्वरूप व्यक्तिगत दस्तावेज में अंकित सूचनाओं से व्यक्ति के अनुभव, दृष्टिकोण व भावनाओं को समझने में सहायता मिलती है।

(2) सार्वजनिक दस्तावेज

वे प्रलेख जो व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन व स्थिति से सम्बन्धित होते हैं, उन्हें सार्वजनिक दस्तावेज (पब्लिक डाक्यूमेंट) कहा जाता है। इस प्रकार के सार्वजनिक दस्तावेज, प्रकाशित व अप्रकाशित दोनों प्रकार के होते हैं। प्रकाशित सार्वजनिक दस्तावेज वे हैं, जिनमें सार्वजनिक सूचनाओं को प्रकाशित कर दिया जाता है। कुछ गोपनीय सूचनाओं को प्रकाशित नहीं किया जाता, जिन्हें अप्रकाशित दस्तावेज कहते हैं।

(अ) प्रकाशित सार्वजनिक दस्तावेज

केन्द्रीय सरकार देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, व्यावसायिक इत्यादि स्थितियों का समय-समय पर सर्वेक्षण कराकर जनसाधारण के लिए उन्हें प्रकाशित करती है। भारत में केन्द्रीय सरकार के द्वारा संकलित आँकड़ों के स्रोतों को मुख्य रूप से निम्न भागों में बाँटा जा सकता है।

  1. जनगणना,
  2. रिजर्व बैंक,
  3. मन्त्रालय का प्रकाशन
  4. अर्द्ध शासकीय प्रकाशन,
  5. पत्र-पत्रिकाओं की सूची।

(ब) अप्रकाशित सार्वजनिक दस्तावेज

इसके अन्तर्गत उन दस्तावेजों व सूचनाओं को सम्मिलित किया जाता है जो सार्वजनिक स्थितियों से सम्बन्धित तो होते हैं किन्तु उनका प्रकाशन नहीं हो पाता। जैसे व्यक्तिगत शोधककर्ताओं द्वारा संकलित सूचनाएँ अप्रकाशित साहित्य इत्यादि।

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प्राथमिक एवं द्वैतीयक तथ्यों के स्रोतों में अन्तर

(1) प्राथमिक स्रोतों से प्राप्त हुआ ज्ञान अपेक्षाकृत अधिक यथार्थ होता है जिसके परिणाम स्वरूप यह निर्भर करने के योग्य है। इसका कारण अनुसंधानकर्ता का प्राथमिक स्रोतों पर नियन्त्रण स्थापित होना है। द्वितीयक स्रोतों के माध्यम से भूतकाल से सम्बन्धित सूचनाओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त हो जाती है।

(2) प्राथमिक स्रोतों पर अनुसंधानकर्ता का नियन्त्रण होने से वह अपने विषय को आवश्यकता अनुसार परिवर्तित भी कर सकता है। द्वैतीयक स्रोतों से अनेक ऐसी सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं जिन्हें व्यक्तिगत और संस्थागत आधार पर एकत्रित करना कठिन और खर्चीला होता है।

(3) प्राथमिक स्रोतों तथा निरीक्षण और साक्षात्कार के अर्न्तगत अनुसंधानकर्ता सूचनादाताओं पर निगाह रख सकता है तथा अपने विषय से सम्बन्धित सूचनाएँ सफलतापूर्वक एकत्रित कर लेता है। द्वैतीयक स्रोत व्यक्ति के अत्यन्त गोपनीय तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं।

(4) प्राथमिक लोतों के सूचनाओं को उनके व्यावहारिक रूप में देखा और एकत्रित किया जा सकता है। द्वैतीयक स्रोत व्यक्तिगत मनोभावों एवं दृष्टिकोणों पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं।

(5) प्राथमिक स्रोत काफी विस्तृत क्षेत्र के बिखरे हुए सूचनादाताओं से अपने विषय से सम्बन्धित अध्ययन की सामग्री को एकत्रित कर लेता है।

द्वैतीयक स्रोतों से प्राप्त की गयी सूचनाओं के आधार पर विषय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का निर्माण किया जा सकता है।

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