तैमूर के भारत आक्रमण – तैमूर मध्य एशिया में समरकंद का शासक था। यह बहुत धीर साहसी और दूरदर्शी शासक था। उसने शीघ्र ही ख्वारिज्म, फारस मेसोपोटामिया पर अधिकार कर लिया और अपनी तूफानी घुड़सवार सेना के साथ सन् 1398 ई. में भारत पर आक्रमण किया। भारत में तैमूर द्वारा किये गये आक्रमण के लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे-
(1) भारत की दयनीय राजनैतिक दशा
भारत की राजनैतिक व्यवस्था अत्यंत खराब थी। तुगलक वंश का पतन आरम्भ हो गया था। भारत में छोटे-छोटे राज्य थे जिनमें गृह कलह का प्रकोप दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा था। यह तैमूर के लिए आक्रमण करने का अच्छा अवसर था।
(2) धन की अभिलाषा
तैमूर के आक्रमण का महान कारण यह भी था कि तुमैर का अधिक धन उसकी विपत्तियों में व्यय हो गया। अब वह भारत की धनराशि लूटकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहता था।
(3) सैन्य बल से प्राप्त प्रोत्साहन
तैमूर का साम्राज्य बहुत बढ़ गया था उसने ख्वारिज्म एवं समरकंद आदि प्रदेशों पर भी अधिकार कर लिया था जिसके कारण उसका सैन्य बल उसके उत्साह को बढ़ा रहा था।
( 4 ) आक्रमण का तत्कालिक कारण
तैमूर के आक्रमण का एक तत्कालिक कारण यह भी था कि मुल्तान के शासक ‘सरंगखी’ तथा तैमूर के पोते पीर मोहम्मद में संघर्ष चल रहा था। पीर मोहम्मद ने सरंगखा से कर मांगा किंतु उसने कर देने से इंकार कर दिया। इस घटना से असतुष्ट तैमूर लंग ने भी अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत की ओर कूच कर दिया।
भारत पर तैमूर का आक्रमण
92,000 हजार घुड़सवारों की सेना लेकर तैमूर ने सिंघ नदी को पार किया और लाहौर पर आक्रमण कर दिया और यहाँ के गवर्नर मुबारिक खां को परास्त किया। यहाँ से आगे बढ़ाकर तैमूर की सेना में पीर मोहम्मद की सेना मिल गई। अब इन सम्मिलित सेनाओं ने दिल्ली की ओर बढ़ने का प्रयास किया। इस समय दिल्ली सल्तनत की दशा अराजकतापूर्ण थी। तैमूर आगे बढ़ा और मार्ग के लोग उससे डर कर भाटनेर के दुर्ग में जा छिपे तैमूर ने वहाँ के किलेदार राय ‘दूलचन्द्र’ पर विजय प्राप्त की और लगभग दस हजार आदमियों की हत्या करवाई तथा बहुत सा धन लूटा। इसके बाद सरस्वती तथा फतेहाबाद और कैयल को लूटता हुआ तैमूर पानीपत से दिल्ली की ओर बढ़ा।
तैमूर द्वारा दिल्ली पर आक्रमण
तैमूर ने सन् 1398 ई. में दिल्ली से थोड़ी दूर रुककर दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी की। दिल्ली के सुल्तान नासिर उद्दीन महमूद तथा प्रधानामंत्री इकबाल खां ने तैमूर की सेना का डटकर मुकाबला किया। किन्तु वह सफल न हुये। किंतु इकबाल खांबरान की ओर तथा महमूद गुजरात की ओर अपनी जान बचाने के लिए भाग गये। इस प्रकार तैमूर की विजय हुई।
ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली में प्रवेश करने से पूर्व ही तैमूर ने एक लाख हिन्दुओं को जो उसने कैद कर रखे थे मरवा दिया था। दिल्ली में प्रवेश करते ही तैमूरी सेना ने रक्तपात और लूटपाट आरम्भ कर दी थी। तैमूर ने स्वयं भी लिखा है कि “मेरी तमाम सेना आवेश में आकर नगर पर टूट पड़ी और मारने-लूटने तथा दास बनाने के अतिरिक्त उसने तीन दिन तक और कुछ नहीं किया।” कुछ विद्वानों का मत है कि तैमूर लंग का विचार रक्तपात करने का नहीं था और न ही वह किसी को तंग करना चाहता था किंतु दैवयोग से उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध ऐस करना पड़ा। तैमूर ने लिखा भी हैं कि मैं बन्दियों को मुक्त करने का इच्छुक था लेकिन मैं उसमें सफल न हो सका क्योंकि यह ईश्वरी इच्छा थी।
तैमूर पन्द्रह दिनों तक दिल्ली में रुका। तत्पश्चात उसने खिज्रखों को अपना प्रतिनिधि शासक नियुक्त किया स्वदेश लौट गया।
तैमूर के आक्रमण के प्रभाव / परिणाम
भारत में तैमूर के आक्रमण का निम्न प्रभाव पड़ा-
(क) राजनैतिक प्रभाव-
- तैमूर के आक्रमण से तुगलक साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। ख्वाजाजहां ने जौनपुर में दिलावर खां ने मालवा में मुजफ्फर शाह ने गुजरात में स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए। दक्षिण में विजयनगर तथा बहमनी राज्य स्वतंत्र थे।
- भारत में तुगलक वंश के पतन के पश्चात् सैय्यद वंश की नींव पड़ी।
- तैमूर के बाद पंजाब पर खिज्रखां के उत्तराधिकारियों का स्वतंत्र राज्य होने के फलस्वरूप समरकंद तथा पंजाब से संघर्ष आरम्भ हो गया क्योंकि तैमूर के वंशज पंजाब को भी अपने अधीन मानते थे।
- तैमूर के आक्रमण तथा पंजाब और समरकंद के झगड़ों का यह भी प्रभाव पड़ा कि भारत पर विदेशियों के बार-बार आक्रमण हुये। अंत में बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली।
- भारत में छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्य स्थापित हुये जिन्होंने अपने राज्यों को कला और संस्कृति का केन्द्र बना लिया। मालवा, जौनपुर, गुजरात आदि इन केन्द्रों में विशेष स्थान रखते हैं।
(ख) सांस्कृतिक प्रभाव
- तैमूर भारत से कलाकारों को समरकंद ले गया और उनसे समरकंद में एक भव्य मस्जिद का निर्माण कराया। इस प्रकार भारतीय संस्कृति को विकसित होने के लिए एक नये क्षेत्र का उदय हुआ।
- कला की उन्नति के साथ-साथ कला का पतन भी हुआ, क्योंकि तैमूर ने बहुत से सुंदर भवनों को नष्ट भी करा दिया था।
चार्ल्स पंचम के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।
(ग) आर्थिक प्रभाव-
- तैमूर का उद्देश्य भारत की धन सम्पत्ति को लूटना था। उसने अतुल धन को लूटकर भारत को निर्धन बना दिया।
- तैमूर ने बहुत से सुंदर-सुंदर भवनों को खाक में मिलाया तथा भारत के बहुत से बागों को भी नष्ट कर दिया तथा इस प्रकार विध्वंस किया कि उन इमारतों के निर्माण पर व्यय की गयी धनराशि बर्बाद हो गयी।
- तैमूरी की सेना ने सारी फसलें बर्बाद कर दी। अनाज के गोदाम लूट लिए, इससे देश में अकाल पड़ गया। बदायूंनी ने इस बारे में लिखा है कि “जो निवासी बच रहे थे वे अकाल के कारण मर गये और दो मास तक किसी चिड़िया ने भी दिल्ली पर अपने पंख नहीं हिलाये।”
अंत में यह कहा जा सकता है कि तैमूर के आक्रमण से धन, जन तथा संस्कृति का पतन हुआ। बहुत दिनों से स्थापित राजनैतिक एकता की समाप्ति हुई। भारत पर तुगलक वंश के स्थान पर सैय्यद वंश का राज्य स्थापित हुआ। इतना ही नहीं भारत में मुगलों के राज्य की स्थापना की नींव पड़ गयी। इस प्रकार तैमूर के आक्रमण ने भारत में एक नये युग का प्रारम्भ हुआ।