स्वतन्त्र भारत में प्रौढ़ शिक्षा के प्रसार हेतु आरम्भ किये गये महत्वपूर्ण कार्यक्रमों की विवेचना कीजिए।

स्वतन्त्र भारत में प्रौढ़ शिक्षा प्रसार हेतु आरम्भ किये गये महत्वपूर्ण कार्यक्रम

स्वतन्त्र भारत में प्रौढ़ शिक्षा आजादी के बाद की अवधि में देश में प्रौढ़ शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान सामाजिक शिक्षा का कार्यक्रम लागू किया गया। 1959 में महाराष्ट्र में ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता आन्दोलन चलाया गया। जिसका उद्देश्य 4 माह की अवधि में बुनियादी साक्षरता-कौशल प्रदान करना था। सुव्यवस्थित अनुवर्ती कार्यक्रम के अभाव में यह कार्यक्रम आगे न बढ़ सका। इसी प्रकार वर्ष 1967-68 में कृषक कार्यात्मक साक्षरता परियोजना, पाँचवीं योजना के आरम्भ काल में 15-25 आयु वर्ग के छात्रों के लिए ‘गैर औपचारिक शिक्षा’ का एक कार्यक्रम तथा 1977 के दौरान ‘बहु संयोजन प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र’ आदि कार्यक्रम चलाये गये।

1. व्यापक प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम

प्रौढ़ शिक्षा का व्यापक राष्ट्रीय कार्यक्रम, वस्तुतः 15 से 35 आयु वर्ग के लोगों के लिए सन् 1978 में चलाया गया, अतएव छठीं पंचवर्षीय योजना के दौरान ‘प्रौढ़ शिक्षा’ को न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम में शामिल किया गया और 1990 तक शत-प्रतिशत लक्ष्य पूरा करने की बात सोची गयी थी, पर दुर्भाग्यवश यह लक्ष्य उस रूप में पूरा. न किया जा सका। यद्यपि 1991 की जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय साक्षरता दर में पिछले दशक के मुकाबले 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

‘प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम’ से ‘जनसंख्या नियन्त्रण का कार्यक्रम’ सीधे जुड़ा हुआ है। उधार, जनसंख्या की अधिकता, गरीबी तथा पर्यावरण में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध देखा गया है। अतएव, जनसंख्या में अनियमित बढ़ोत्तरी राष्ट्र के लिए एक गंभीर चुनौती है और इस विचार से, इस पर कारगर अंकुश लगाया जाना बेहद जरूरी है, अन्यथा यह समस्या विकराल बनकर सबके लिए अभिशाप साबित होगी।

वर्ष 1981 में देश की आबादी 68.4 करोड़ थी, जो 1991 में बढ़कर 84.4 करोड़ हो गयी। जनसंख्या में बढ़ोत्तरी की ऐसी रफ्तार बिल्कुल ठीक नहीं। ऐसे में आज आवश्यकता इस बात की है कि ‘जनसंख्या नियन्त्रण’ के कार्यक्रम को केवल सरकारी काम न मानकर इसे एक ‘जन आन्दोलन’ का रूप दिया जाये। इसके लिए प्रभावी जनसंख्या शिक्षा’ के विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा’ प्रत्येक देशवासी में व्यक्तिगत चेतना जगायी जानी चाहिए। इस चेतना जागृति के लिए,

शिक्षा का ही नहीं, प्रौढ़ शिक्षा’ का राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। ऐसा देखा गया है कि आज जो राज्य अपेक्षाकृत अधिक शिक्षित है, वहाँ जन्मदर उन राज्यों से कम है जहाँ निरीक्षरता ज्यादा है। अतएव, आज जब हम निरक्षरता के कोड़ के भयानक संकटों को भलीभाँति समझ चुके हैं तो क्यों न इसके विराट अँधेरे में ‘समग्र-साक्षरता’ के दीप जलायें।’ अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस भी तो हम सबको इसी पुनीत कर्तव्य की याद दिलाता है कि हम सब मिलकर साक्षरता ) के टिमटिमाते दीपक की ली को ऐसी रौनक प्रदान करें, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप की धुंधली तस्वीर चमचमा उठे। आखिर हम लोग इस प्राकृतिक सत्य को क्यों भूल गये हैं कि ‘आधारभूत शिक्षा’ प्राप्त करना हर किसी का मौलिक अधिकार है। जब हम ऐसा समझ चुके हैं तो फिर राष्ट्र के सभी बचे निरक्षर प्रौदों को शीघ्र से शीघ्र न्यूनतम क्यों नहीं बना पा रहे हैं, जिससे की वे नयी बुशलताओं और तकनीकों की जानकारी हासिल कर अपने जीवन स्तर को ऊपर उठा सके।

भारत में आज भी 15 से 35 आयु वर्ग के लगभग 10 करोड़ वयस्क निरक्षर हैं। राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और रचना व सर्जना के लिए यही उम्र सबसे बढ़कर उत्पादक होती है, तो फिर क्यों न कुछ जोरदार कर दिखायें और ‘यूनेस्को’ की भावना का आदर करते हुए देश के सभी निरक्षरों को साक्षर बनाने का व्रत लें। राष्ट्रपिता गाँधी ने भी तो इस पावन कर्तव्य की ओर हम सबका ध्यान आकर्षिक किया था।

2. राष्ट्रीय साक्षरता मिशन तथा कार्यात्मक साक्षरता-

वर्ष 1988 में राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय साक्षरता मिशन’ का गठन किया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य 15 से 35 आयु वर्ग के उक्त निरक्षर व्यक्तियों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करना रहा। इन सबकों ‘मिशन’ की अपेक्षा के मुताबिक 1995 तक कार्यात्मक साक्षरता प्रदान की जानी है।

कार्यात्मक साक्षरता का अर्थ है- निरक्षरों वयस्कों को साक्षरता और गणित में आत्मनिर्भर बनाना, जिन्हें उनकी गिरी हालत के कारणों की जानकारी देना और उसे सुधारने हेतु उन्हें संगठित होने और विकास कार्यक्रमों में भाग लेने- निमित्त प्रेरित करना। उन्हें नये-नये हुनर सीखने, अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने, पर्यावरण का बचाव करने, अपने परिवार को छोटा रखने, महिला-पुरुष समानता कायम करने तथा राष्ट्रीय एकता और सामाजिक मूल्यों को अच्छी तरह समझने के लिए प्रोत्साहित करना भी ‘कार्यात्मक साक्षरता’ के दायरे में शामिल किया गया है।

3. कार्यक्रम का कार्यावयन

प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम अधिकतर केन्द्र सरकार प्रायोजित ग्रामीण कार्यात्मक साक्षरता परियोजनाओं, स्वैच्छिक प्रौढ़ शिक्षा-संगठनों, राज्य प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों : औद्योगिक कर्मिकों, उनके परिवारों के लिए श्रमिक विद्यापीठों तथा यू०जी०सी० द्वारा प्रदत्त वित्तीय सहायता-आधार पर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में स्थापित ‘प्रौढ़ सतत एवं प्रसार शिक्षा-विभागों द्वारा चलाया जा रहा है।

प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम की पूरी सहायता के लिए ‘जनसंख्या शिक्षा के कार्यक्रमों को साथ साथ चलाये जाते रहना चाहिए। जनसंख्या शिक्षा का उद्देश्य, वस्तुतः “मानव विकास के उन समस्त आँकड़ों एवं घटकों का ज्ञान देना है, जो मानव जीवन के बहुमुखी विकास में सहायक हो सके। इस शिक्षा की कुशल आयोजना द्वारा निरक्षर – साक्षर या अर्द्धशासित यहाँ तक कि औसत शिक्षित प्रौदजनों को मूलभूत जनसंख्या सम्बन्धी, स्वास्थ्य-सफाई पर्यावरण सम्बन्धी, प्रजनन एवं पारिवारिक जीवन सम्बन्धी, खाद्य एवं पौष्टिक आहार सम्बन्धी परिवार नियोजन परिसीमन सम्बन्ध तथा मातृ एवं शिशु कल्याण सम्बन्ध जानकारी विभिन्न तरीकों-विधियों, श्रव्य दृश्य साधनों द्वारा समय-समय पर प्रदान करायी जाती रहनी चाहिए।

बहुपति विवाह ?

अतएव देश की प्रौढ़ शिक्षा दशा-दिशा, यदि सचमुच सुधारनी है तो इस कार्यक्रम का पूरा-पूरा लाभ हर निरक्षर अल्पविकसित प्रौढ़ों को उठाना चाहिए। उसे, कार्यक्रम और इसकी आयोजना में लगने वाली श्रम-शक्ति- धन और अन्य संसाधनों की भारी लागत की गम्भीरता से एहसास करना चाहिए। इस पुनीत महान राष्ट्र सेवा के कार्य में इसकी कार्य-योजना में लगे या जुड़े, छोटे-बड़े सभी कर्मचारी-अधिकारियों को भी पूरी निष्ठा से जुटना चाहिए। निरक्षर के लिए कोई भी सेवा, निश्चय ही अक्षर-सेवा होगी और अक्षर सेवा न केवल अमूल्य मानव सेवा होगी, अपितु वह यशकारी असली राष्ट्र और ईश्वर सेवा होगी।

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