सुमेरियन धर्म- बहुदेववादी सुमेर और अक्काद में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी किन्तु प्रत्येक नगर में एक प्रधान एवं विशिष्ट देवता था जिसे नगर का संरक्षक माना जाता था। एन्सी और लूगल अपनी विजयों को देवी सहायता का परिणाम मानते थे जो तत्कालीन समाज की धार्मिक प्रवृत्ति का प्रतिबिम्ब प्रतीत होता है। पराजित नगरों के देवताओं की मूर्तियों को अपने नगर में उठा लाते थे। प्रायः धर्म का असली प्रयोजन लौकिक जीवन में समृद्धि, सुरक्षा, धनसम्पत्ति, अच्छा स्वास्थ परिवार मंगल, अनाज आदि की आकांक्षा से जुड़ा हुआ था। सभी वर्गों के दैनन्दिन जीवन में सभी कार्य देवताओं के हितों के नाम पर किये जाते थे और प्रत्येक कदम धार्मिक कदम लगता था। सुमेरियन धर्म का प्रभाव बेबिलोनियन, यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म तक पड़ा था।
गुप्तों के उद्भव व मूल स्थान की विवेचना कीजिए।
सुमेरियन आचार्यों और सुन्तों की दृष्टि से स्वर्ग और पृथ्वी, सृष्टि के दो प्रधान पटक हैं। इन दोनों के मध्य में वायु (चेतन तत्व) है। सूर्य, चन्द्र, ग्रह और तारे सभी वातावरण की तरह माने गये थे जिनमें प्रकाशपुंज हैं। सुमेरियन चिन्तकों की दृष्टि में सम्पूर्ण सृष्टि आदि- युगीन समुद्र से सृजित हुई और समतल पृथ्वी के उळपर मेहराबदार स्वर्ग अध्यारोपित हुआ। तत्पश्चात् वातावरण, प्रकाशित पिण्ड, मानव तथा पशु आये। इस सम्पूर्ण सृष्टि की गतिशीलता, निर्देशन और पर्यवेक्षण का कार्य देवमण्डल करता है। जो मानवकारी होते हुए भी अतिमानव और अमर हैं। इस देवमण्डल का संरचनात्मक स्वरूप लौकिक राजतंत्रात्मक प्रणाली की तरह परिकल्पित किया गया था। देवी-देवताओं की बहुसंख्या प्रबल स्थानीयता का प्रतिबिम्ब समझा जा सकता है।