स्त्री शिक्षा में सुधार हेतु सरंचनावादी एवं विखंडन जेन्डर सिद्धान्त के अनुप्रयोग बताइये।

संरचनावादी सिद्धान्त

संरचनावादी सिद्धान्त- जब हम शिक्षा से संरचनावादी दृष्टिकोण की बात करते हैं तो पाते हैं कि संरचनावादी मुख्यतः स्थायी सत्ताओं की व्यवस्था को अधिक मूल्य प्रदान करते हैं जबकि विखंडनवादी दृष्टिकोण लगातार परिवर्तनशील सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर ध्यान केन्द्रित करता है। दोनों ही सिद्धान्त संरचनावादी तथा विखण्डनवादी किसी भी अन्य सिद्धान्त से अधिक व्यापक है। • समाजीकरण सिद्धान्त, उदारवादी नारीवाद सिद्धान्तों के शैक्षिक निहितार्थों पर आधारित है जो स्त्री य पुरुष के प्रति समान व्यवहार (Treatment) करने पर जोर देता है। जेन्डर अन्तर सिद्धान्त स्त्रियों के स्त्रीत्व तथा संबंधपरक (relational orientation) रुझानों को स्थापित करने में संस्कृति, शिक्षा तथा नैतिकता के तर्क देता है। परन्तु अक्सर ही यह सिद्धान्त एक-दूसरे से सहसम्बन्धित तथा मिले-जुले से प्रतीत होते हैं जैसे समाजीकरण सिद्धान्त को जेन्डर अन्तर सिद्धान्त से मिलाकर देखा जाता है तथा संरचनावादी एवं विखंडन सिद्धान्त परस्पर घुले-मिले हो सकते हैं। सभी सिद्धान्त अपने मूल्यों के आधार पर शिक्षा के भिन्न-भिन्न उद्देश्य की संरचना करते हैं तथा इसके आधार पर जेन्डर असामनताओं को दूर करने की प्रविधियों का सुझाव देते हैं।

संरचनावादी विश्लेषण कुछ विशिष्ट लोगों द्वारा सत्ता तथा विशेषाधिकार (Power and Privilege) के एकत्रीकरण (Consolidation) पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। इन सिद्धान्तों के अनुसार, सत्ता या शक्ति को एक समूह दूसरे समूह पर आरोपित करता है। यह विभिन्न नियमों द्वारा हो सकता है, धन बल द्वारा या नेतृत्व (hegemonic) या संस्थानीकरण द्वारा किया जा सकता है। जेन्डर तथा अन्य प्रकार की असमानताओं को एक स्थायी व्यवस्था द्वारा जन्म दिया जाता है तथा इस प्रकार की असमानताओं के विरुद्ध यह एकजुट भी प्रतीत होती हैं। उदाहरण के तौर पर पाश्चात्य देशों में विषमलैंगिक समूहों (Heterosexual unions) को अन्य समूहों जैसे गया लेस्बियन (gay & Lisbian unions) समूहों से ज्यादा सुविधायें प्राप्त हैं जिनमें अपने जीवनसाथी का बीमा, दत्तक संतान लेने के नियम, विवाह का अधिकार तथा किसी भी प्रकार की असमानता के विरुद्ध कानूनी संरक्षण प्राप्त होता है। अन्य प्रकार की संरचनात्मक असमानता के उदाहरणों में महिलाओं को कम वेतन वाले कार्यों में संलग्नता या कम सम्मान वाले कार्यों में संलग्नता (जैसे होटल की आया तथा वेटर एवं पिंक कलर जॉब्स जैसे अध्यापिका, सेक्रेटरी तथा नर्स) का होना है। पुरुषों को वरीयता देने वाली पदोन्नति योजनायें होती हैं तथा चिकित्सा से सम्बन्धित शोधों में भी ‘पुरुष होने’ (maleness) को ही प्रतिमान (normative) माना जाता है। (हृदय रोग तथा एड्स शोधों में) तथा ऐसे कानून व नियम होते हैं जिसमें महिला को गर्भधारण के लिये तो उत्तरदायी मानते हैं। परन्तु उन्हें गर्भपात (abortion) का अधिकार नहीं देते।

संरचनात्मक असमानता ज्ञान के तंत्र को भी प्रश्न करती है। समाजीकरण तथा संरचनात्मक सिद्धांतकार समान रूप से इस बात को सामने रखते हैं कि सैन्य इतिहासों में, साहित्य में, कला एवं विज्ञान के हाशियें के लोगों को (marginalised groups) उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। उनकी शिक्षा के अवसरों तथा नेतृत्व के पदों से दूर रखा गया। चिकित्सा के स्तर को ऊंचा उठाने के लिये, श्वेत पुरुषों (White men) द्वारा यूनाइटेड स्टेट्स में महिलाओं को (मिडवाइफ सहित) “वास्तविक” चिकित्सकीय ज्ञान (real medical knowledge) की पहुंच से दूर रखा गया तथा बाद में इन्हीं कारणों से श्वेत महिलाओं द्वारा अफ्रीकन अमेरिकन महिलाओं को नर्सिंग कॉलेजों में प्रवेश लेने से रोक दिया गया (गडलर्नर, 1989)।

संरचनात्मक नजरिया मुख्य रूप से इस प्रकार के विस्थापन या बाहर रखने के तर्कों (exclusion) को कानूनी नियमों व रिवाजों के आधार पर उचित ठहराता है। चूँकि मुख्यधारा का इतिहास सैन्य तथा राजनीतिक नेताओं पर ख्यातिलब्ध कलाकारों तथा अन्य लोकप्रिय लोगों पर केन्द्रित होता है इसमें घरेलू या निजी क्षेत्र (Private sphere) से जुड़े सेवक, दास इत्यादि का उल्लेख “इतिहास” के रूप में नहीं होता है। इस प्रकार विभिन्न विषयों के क्षेत्र से कामकाजी वर्ग के लोगों को (members of working class), विभिन्न रंग वाले लोगों तथा अधिकतर श्वेत महिलाओं को भी दूर रखा जाता है जिन्होंने राजनीति, ज्ञान या कला में उल्लेखनीय प्रदर्शन ही क्यों न किये हो

चूँकि हमें जेन्डर / सेक्स, नस्ल तथा वर्ग के विस्थापन (exclusion) को प्राकृतिक तथा उचित मानने की आदत हो जाती है। इसलिये इस विस्थापन को पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह विस्थापन (exclusionary character) तभी स्पष्ट हो पाता है जब हमें विभिन्न सिद्धान्त इस जानकारी हेतु प्रेरित करते हैं। जिसमें सामान्यीकरण के अनुभवों को सावधानीपूर्वक तथा ऋतिक रूप से प्रश्न किया जाता है।

अधिकतर संरचनावादी नजरियों में, पहले ‘दमन’ (opperssion) को समझना पड़ता है। तब इसे बदलने की कोशिश की जाती है। इसके मद्देनजर ही संरचनात्मक नारीवादी शैक्षिक उपचार या सुधार, प्राथमिक रूप से एक उदारवादी शिक्षणशास्त्र (liberationist pedagogy) तथा एक विपरीत नायकत्व पाठ्यचर्या (counter hegemonic curriculum) पर आधारित होते हैं। इन दोनों तरीकों के द्वारा छात्रों को स्वयं की तथा दूसरों की स्थितियों को मापने एवं समझने की शक्ति दी जाती है। कुछ संरचनावादी नारीवादी, अस्तित्वमान सतता एवं शक्ति संबंधों को प्राकृतिक तथा योग्यतावादी (meritocractic) मानते रहने की चुनौती देते हैं, वहीं दूसरी ओर अन्य नये तथा वैकल्पित संरचनाओं को खोजने पर जोर देते हैं। प्रथम प्रकार के संरचनावादी, किन्हीं सामाजिक समूहों के दमन को खुलकर सामने रखते हैं तथा यह भी स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार दमन ने उन लोगों को फायदा पहुंचाया है जो पहले से सत्ता में हैं। अक्सर ही ऐसे भौतिक विषय जैसे इतिहास, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में काम करने वाले संरचना नारीवादी इसलिये इन विषयों में जेन्डर समानता को लाने के लिये वस्तुनिष्ठता की बात करते हैं। प्रभुत्वकारी विचारधारा के लोग जो वर्णानात्मकता तथा मेरिट को महत्त्व देते हैं, उनमें अक्सर ही देखा गया है कि यदि अधीनस्थ समूह उनसे कहीं बेहतर प्रदर्शन करने लगता है तो वे अपने मानकों को पुनः परिभाषित (revise) कर लेते हैं। इसी प्रकार यदि स्त्रियों, पुरुषों से किसी परीक्षा में अधिक अंक लायें या अधिक मेडल लायें तो अक्सर ही स्त्रियों की शिक्षा की पहुँच तक सीमित कर दिया जाता है या फिर परीक्षण की वैधता, या शिक्षण पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिये जाते हैं।

दूसरी तरफ यदि स्त्रियों के बदले हुये स्तर से समाज को कोई लाभ प्राप्त होता है तो विचारधारा इसको चारों तरफ से घेर लेती है। उदाहरण के लिये स्त्रियों की प्राकृतिक जगह ‘घर’ है यह ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक धारणा है परन्तु यदि श्रमिकों की कमी पड़ रही हो तो इस धारणा को भी निकाल फेंका जा सकता है तथा उनसे श्रमिक का कार्य बड़ी आसानी से कराया जा सकता है। इस प्रकार से संरचनाओं को खुले रूप में प्रस्तुत करके छात्रों को इसमें शैक्षिक निहितार्थ से परिचित कराया जाता हैं जिससे वे जेन्डर, लिंग, नस्ल तथा वर्ग के पैटर्न को समझ सकें तथा यह भी जान सकें कि वे किस के लाभ के लिये कार्य कर रहे हैं।

प्रभुत्ववादी विचारधारा की प्रत्यक्ष रूप से आलोचना करने के बजाय कुछ दूसरे संरचनावादी इन अर्थों के विपरीत सांस्कृतिक फ्रेमवर्क (Counter Culture Framework) विकसित करते हैं। जैसे वीमेन स्टडीज प्रोग्राम का उद्देश्य वास्तव में मुख्यधारा के ज्ञान (Mainstream) को सही (Correct) करना नहीं होता। इसके बजाय वे छात्रों को स्त्रीकेन्द्रित पाठ्य तथा विश्लेषण में डूब जाने देते (Immerse) हैं जिससे कि वे मुख्यधारा के सत्ता सम्बन्धों का नया विकल्प सुझा सकें। यह डूब जाने वाली (Immersion approaches) प्रविधियों छात्रों को प्रभुत्ववादी विचारधाराओं से अलग हटकर सोचने में मदद करती है साथ ही स्त्रियों द्वारा स्वयं विकसित किये गये उपकरणों, प्रविधियों व ज्ञान की सहायता से उनकी स्थितियों के सुधार की ओर कार्य करने को प्रेरित करती हैं।

इसके अतिरिक्त छात्र अन्य नारीवादी विचारधाराओं जैसे मार्क्सवादी रेडिकल, क्रिटिकल रेस थ्योरिस्ट से भी विचार लेकर ऐसे सिद्धांत विकसित कर सकते हैं जिससे वर्तमान में प्रचलित सत्ता सम्बन्धों का प्रश्न कर सकते हैं तथा उद्याइ (demystify) सकते हैं। इस प्रकार से वे प्रभुत्ववादी विचारधारा के मनगदत विश्वासों को स्वयं के अनुभव एवं विचारों से प्रश्न कर सकते। हैं। चूँकि ऐसा तभी संभव हो सकता है जब छात्रों को पाठ्य तथा पाठ्यचर्या की आलोचनात्मक अध्ययन की जानकारी हो इसलिये संरचनात्मक नारीवादी शिक्षा में इस बात पर जोर दिया जाता है कि पाठ्यवस्तुओं में समालोचनात्मक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाये जिससे ये प्रभुत्ववादी विचारधारा की विध्वंसकारी प्रवृत्तियों को समझ सकें।

विखंडन सिद्धान्त

संरचनावादी एक तरफ जहाँ कुछ सत्ता संरचनाओं की लाभप्रद अवस्था को अधिक या कम स्थायी मानते हैं (जिससे पितृसत्ता, श्वेतवर्णीयता, बुर्जुआ या इसी प्रकार के वर्गों को बताया जा सके) विखंडन विश्लेषण इन निश्चित वर्गों को संदेह के साथ देखते हैं। इसके आधार पर “जेन्डर’ को किसी ‘वास्तविक’ ( वस्तु से भ्रमित नहीं किया जा सकता। किसी वास्तविक तथ्य की और इशारा करने के बजाय ‘जेन्डर’ स्वयं में एक वर्ग है।

“लिंग, जोकि जैविक रूप से निर्धारित वर्ग है उसका राजनीतिक व्यावहारिक विकल्प” (“A politically pragmaic alternative to the biologically determinist category of sex”) के रूप में “जेन्डर” एक सामाजिक निर्मिति (social construct) को इंगित करता है. अतः इसको परिवर्तित किया जा सकता है। हालांकि हम इसको प्राकृतिक मान कर देखने के आदी हो चुके हैं, परन्तु हमें समझना चाहिये कि ‘जेंडर’ एक सामाजिक निर्मिति (Social Construction) है। जो वर्ग इस प्रकार से प्राकृतिक या सामान्यीकृत कर दिये जाते हैं वे बहुत आसानी से बहिष्कृत (exclusion) किये जा सकते हैं। जैसे कि जिन्डर समानता’ लाने के लिये बनी नीतियाँ सरल दिखाई पड़ती है परन्तु यह नीतियाँ ‘जेन्डर’ को सीधे और स्पष्टता से परिभाषित करने के कारण यह आवश्यक समझने लगती है कि समानता लाने के लिये जेिन्डर को वर्ग में रख दिया जाये तथा इसका नतीजा यह होता है कि इसमें अधिकारों को ‘सुनिश्चित’ (affirm) करने के बजाय उन्हें ‘नकारा (deny) अधिक जाने लगता है। इसीलिये विखंडन नारीवाद किसी भी वर्ग के सामान्यीकरण या प्राकृतिक बनाने के खिलाफ हैं तथा इस तथ्य को सामने रखते हैं कि यह सब समाज द्वारा निर्मित वर्ग है तथा समाज ही इसे बनाये रखने में मदद करता है।

विखंडन नारीवाद पूर्व में निर्मित सभी सत्ता संबंधों को भंग करने की सिफारिश करते हैं। इस प्रकार की सभी प्रचलित धारणाओं जैसे लैंगिकता (sexuality) जेन्डर, नस्ल (Race), वर्ग में व्यवधान उत्पन्न करने के लिये विभिन्न विधियों को प्रयुक्त करते हैं। जैसे इसके लिये वे पहले से ज्ञात को पुनः नया नाम दे सकते हैं जिससे वह अपरिचित श्रेणी का हो जाये (defaniliarize) वस्तुओं का क्रम उलट सकते हैं सम्मानित विमर्शो में चौंका देने वाले रूपकों (को ला सकते हैं। किसी दूसरे ही नजरिये से परिचित का पुनः पाठ कर सकते हैं; या पुराने शब्दों के नये अर्थ गढ़ सकते हैं अन्य विधियों में अनेकार्थी अर्थ प्रस्तुत करना (जिसमें ” या ‘()’ कोष्ठक) का उपयोग समलित है।

विखंडन नारीवाद को उत्तर संरचनावाद (post structuralism) तथा अन्य दूसरे उत्तर आधुनिक सिद्धांतों (Postmodemist), सांस्कृतिक सिद्धांतों, श्वेत अध्ययन, नारीवाद मनोविश्लेषण

आदि से प्रेरणा प्राप्त होती है। इन सभी सिद्धान्तों की मदद से छात्र पूर्व में संरचित पाठों को विखंडित (deconstrut) कर पाते हैं। पहले से तैयार या रेडीमेड अर्थों को स्वीकार करने की बजाय, छात्र पहले से स्थापित नजरियों पर पुनः कार्य करके नये वैकल्पिक तथा उत्तेजक (Provocative) विविध अर्थ सुझा सकते हैं। संरचनावादी तथा कुछ सीमा तक समाजीकरण सिद्धांतकारों की तरह) सिद्धांतों की तरह

ही विखंडन के शैक्षिक सुधार (deconstructive educational interventions) काफी मात्रा में वैकल्पिक पाठों तथा नयी व्याख्याओं पर निर्भर रहते हैं। परन्तु फिर भी विखंडनवादी (Deconstructive Classroom Practices) कक्षा, अभ्यास, संरचनावादी तथा समाजकरण सिद्धान्तों से अन्तर रखती हैं।

1885-1905 ई. के मध्य उदारवादियों के कार्यक्रम एवं कार्य पद्धति की विवेचना।

जेन्डर – अन्तर सिद्धान्त के आभासी तत्वबाद (quasi essentialist) जो देखभाल (caring) तथा नारीत्वको महत्त्व देते हैं, को विखंडन सिद्धावादी चुनौती देते हैं। जेन्डर अन्तर सिद्धान शिक्षा को एक संबंध परक नजरिये (relational enterprise) की तरह परिभाषित करते हैं जहाँ नारीत्य पूर्ण कर्तव्यों देखभाल तथा महिलाओं की महजहान समता को केन्द्रीय महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है। जबकि विखंडन सिद्धान्त, जेन्डर से संबंधित सभी धारणाओं को पुनरिचित या विखत (deconstruct) करने की जरूरत पर बल देते हैं। साथ ही उन वर्गीय धारणाकों को भी ध्वस्त करते हैं जोकि जेन्डर अन्तर सिद्धान्त सहज ज्ञान तथा देखभाल (Intuitive knowledge and Caring) को नारीत्व के गुण बताकर महिमामंडित करता है।

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