समाजीकरण जेन्डर सिद्धान्त
स्त्री शिक्षा में सुधार हेतु शुरुआती नारीवादी इस सेक्सिस्ट नजरियों को खारिज करते हैं कि चूंकि लड़कियों ‘पुरुषवादी’ (Masculine) विषयों जैसे गणित व विज्ञान में खराब प्रदर्शन करती हैं अतः वे उच्च बौद्धिक स्तर तक नहीं पहुँच पाती समाजीकरण सिद्धांतकार मानते हैं कि लड़कियाँ भी लड़कों के समान शैक्षिक स्तर प्राप्त कर सकती है यदि अध्यापक तथा अभिभावक उन्हें इस बात को मानने के लिये समाजीकरण न करें कि वे कठिन विषयों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायेंगी। अध्यापक व अभिभावकों को लड़कियों से भेदभावपूर्ण रवैया नहीं रखना चाहिये तथा उनके मन में कठिन विषयों का हौवा भी ही बनाकर रखना चाहिये। लड़कियों की सफलता की राह की बाधायें हटाने के लिये आवश्यक है कि उन्हें जेन्डर निरपेक्ष शिक्षा प्रदान की जाये तथा इस प्रकार से ही विद्यालय पक्षपातरहित शिक्षा दे पायेंगे। साथ ही कुशल कर्मचारी की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी जिससे अंततः समाज ही लाभन्वित होगा।
हालांकि इस प्रकार के समाजीकरण को बढ़ाने के लिये कुछ क्षतिपूर्ण कार्यक्रम किये जाते है जिनमें महिला रोल मॉडल को कक्षा में आमंत्रित करना या लड़कियों के लिये विज्ञान एवं गणित की कार्यशालायें आयोजित करना आदि है। समाजीकरण सिद्धान्तकार इन सबके अतिरिक्त लड़कियों के लिये शैक्षिक उपचारों (pedagogical interventions) पर भी ध्यान देते हैं तथा कहते हैं कि यदि लड़कियों को आगे बढ़ाना है तो अध्यापकों, अभिभावकों तथा प्रशासकों को लड़कियों के साथ लड़कों के समान व्यवहार करना चाहिये। इस बात को क्रियान्वित करने में काफी परेशानी आती है, क्योंकि अध्यापकों को न केवल लड़के-लड़कियों से समान व्यवहार करना होता है बल्कि उन्हें अपने समाजीकृत रुझानों पर भी विषय प्राप्त करनी होती है जो उनके लड़कों एवं लड़कियों के प्रति व्यवहार को आकार प्रदान करते हैं। नारीवादी अध्यापक (feminist teacher) अपनी कक्षाओं में लड़कियों पर अधिक ध्यान दे सकने के कारण पक्षपातपूर्ण तथा व्यक्तिनिष्ठ भी नजर आ सकते हैं परन्तु ऐसा करने में उन्हें अभिभावकों तथा अन्य अध्यापकों का भरपूर सहयोग चाहिये होता है।
प्रगति के रास्ते में कई बाधायें होने के बावजूद, समाजीकरण सिद्धांतकार विश्वास करते हैं कि इस प्रकार के सुधार एक अधिक समानतापूर्ण समाज के निर्माण में सहायक होंगे। हालांकि इस बात से निराशा भी होती है जब सिद्धांतकार कहते हैं कि हमें शताब्दियों से जारी सेक्सिस्ट समाजीकरण पर विजय प्राप्त करनी होगी। इसके अलावा यह देखने में आता है कि चूंकि लड़कियों के पास सेक्सिज्म तथा रेसिज्म के चलते न तो कोई रोल मॉडल होता है और न ही पथप्रदर्शक ( mentor) अतः उन्हें स्वयं को स्थापित करने में लड़कों की अपेक्षा अधिक संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि लड़कों को सहयोग करने के लिये पुरुष अध्यापक एवं मार्गदर्शक उपलब्ध रहते हैं।
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कुछ जेन्डर-निरपेक्ष सिद्धांतकार, उन नारीवादियों की आलोचना करते हैं जो लड़कियों की ‘समान परन्तु अलग’ शिक्षा की वकालत करते हैं इस प्रकार की व्यवस्था लड़कियों की प्रगति में बाधक ही सिद्ध होती हैं। सैडकर कहते हैं कि कैरल गिलिगन (Caroll Gilligan) का जेन्डर – अन्तर सिद्धान्त पर जोर देना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि अन्तर (difference literature) वाले साहित्य में जिन नारीत्व के गुणों की बात की जाती हैं वह एक प्रकार से शक्तिहीनता (powerlessness) के प्रतीक हैं तथा इन्हें ‘शिक्षा द्वारा बदला’ (altered by education) जाना चाहिये। दूसरे समाजीकरण सिद्धांतकारों की तरह सैडकर (Sadker’s) भी आशा करते हैं कि यदि लड़कियों को भी लड़कों की तरह शिक्षा प्रदान की जाये तो भविष्य में महिलायें भी समस्त प्रक्रियाओं में बराबर की साझेदार सिद्ध होगी।
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