स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध – भारतीय शिक्षा में सुधार हेतु सर्वप्रथम स्वतन्त्र भारत में 1948-49 में राधाकृष्णन् आयोग, जो उच्च शिक्षा पर सुझावों के लिए केन्द्रित था, इसलिए इसे विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के नाम से भी जाना जाता है, का गठन किया गया। आयोग ने स्त्री शिक्षा को गम्भीरता से लेते हुए इस विषय में सुझाव निम्न प्रकार दिये.
- स्त्रियों की शिक्षा में वृद्धि करने हेतु उनको शिक्षा के अधिक-से-अधिक अवसर प्रदान किये जाने चाहिए।
- स्त्रियों और पुरुषों की शिक्षा एकसमान न हो अपितु स्त्रियों की अभिरुचि के अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए।
- बालिकाओं हेतु शैक्षिक एवं व्यावसायकि निर्देशन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
- महिला तथा पुरुष अध्यापकों को समान वेतन ।
- कॉलेज स्तर पर सहशिक्षा को प्रोत्साहन ।
इस समय तक देश में 100 से अधिक महिला महाविद्यालय थे। पंचवर्षीय योजनाओं के संचालन द्वारा स्त्री शिक्षा में प्रगति तथा उनकी सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक इत्यादि उन्नति का कार्य योजनाबद्ध रूप से सम्पन्न किया जाने लगा। प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में स्त्री शिक्षा के लिए विशेष प्रावधान किये गये।
मुदालियर आयोग का गठन
1952 में माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन के लिए ए. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में मुदालियर आयोग का गठन किया गया। आयोग का मानना था कि माध्यमिक स्तर पर स्त्रियों तथा पुरुष दोनों की शिक्षा समान होनी चाहिए। स्त्री शिक्षा विषयी आयोग के मुख्य सुझाव निम्न प्रकार थे
- स्त्री तथा पुरुषों की समान शिक्षा की व्यवस्था ।
- बालिकाओं के पाठ्यक्रम में गृहविज्ञान, शिल्प, गृह उद्योगों, संगीत एवं चित्रकारी को स्थान।
- सहशिक्षण संस्थाओं में महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति का सुझाव।
- बालिकाओं को विद्यालयों में पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान की जाये। इस प्रकार आयोग ने शिक्षा के द्वारा महिलाओं के सामाजिक तथा आर्थिक स्वावलम्बन में भूमिका निभायी।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61)
इसमें स्त्री शिक्षा के प्रसार के साथ शिक्षिकाओं के प्रशिक्षण का प्रावधान किया गया, जिससे महिलाओं की आर्थिक सुदृढ़ता में वृद्धि हो सके। इस योजना के ही समय सन् 1958 में श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख की अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति’ (National Women Education Committee) का गठन किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट सन् 1959 में प्रस्तुत की, जिसमें स्त्री शिक्षा के विषय में सुझाव निम्न प्रकार दिये गये –
- स्त्री तथा पुरुषों की शिक्षा में वर्तमान विषमताओं को दूर कर दोनों के लिए समान शिक्षा की व्यवस्था करना।
- स्त्री शिक्षा को राष्ट्र की प्रमुख समस्या माना जाये तथा कुछ समय के लिए इसके प्रचार एवं प्रसार का उत्तरदायित्व केन्द्र सरकार स्वयं ले।
- केन्द्रीय सरकार स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में एक निश्चित नीति बनाये तथा इसके प्रसार के लिए एक निश्चित योजना बनाये तथा इस नीति एवं योजनानुसार स्त्री शिक्षा के प्रसार का कार्य प्रान्तीय सरकारों को सौंपे।
- प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को अधिक सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु विशेष कार्य किये जायें
- केन्द्रीय स्तर पर ‘राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् (National Council for Women Education) तथा प्रान्तीय स्तर पर (राज्य महिला शिक्षा परिषद्) का गठन किया जाये परिषदें स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु उत्तरदायी हो।
- श्री शिक्षा सम्बन्धी योजनाओं के लिए केन्द्रीय सरकार अतिरिक्त धन व्यवस्था करे तथा द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) में इस हेतु रु. 10 करोड़ की धनराशि का आवंटन करे। धनराशि का आवंटन करे
दुर्गाबाई देशमुख समिति
इसके सुझाव पर 1959 में केन्द्र में ‘राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्’ का गठन किया गया तथा इसे देश में स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में नीति एवं योजना बनाने का कार्य सौंपा गया। इसके निर्देशन में स्त्री-शिक्षा के विकास को गति प्राप्त हुई। प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान छात्राओं की संख्या 1951 में जो 60 लाख थी, बढ़कर 1961 में लगभग 140 लाख हो गयी। 1961 में तृतीय पंचवर्षीय योजना प्रारम्भ हुई और इसके दौरान 1962 में राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् (NCWE) ने श्रीमती हंसा मेहता की अध्यक्षता में स्त्री शिक्षा के पुनर्गठन हेतु सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया। इसे ‘हंसा मेहता समिति के नाम से भी जाना जाता है। इस समिति ने महिलाओं के सशतीकरण हेतु उनकी शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव निम्न शब्दों में दिये
- प्राथमिक स्तर पर बालकों और बालिकाओं हेतु समान पाठ्यक्रम की व्यवस्था ।
- माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं हेतु गृहविज्ञान के अध्ययन की सुविधा ।
- बालिकाओं हेतु पृथक् व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था।
- किसी भी स्थिति में बालकों और बालिकाओं की शिक्षा में बहुत अन्तर नहीं होना चाहिए।
1963 में ‘राष्ट्रीय महिला परिषद्’ ने श्री भक्तवत्सलम की अध्यक्षता में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा के पुनर्गठन हेतु सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया और इस समिति ने ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा के प्रसार हेतु जनसहयोग प्राप्त करने का सुझाव दिया। उसी समय 1964 में भारतीय शिक्षा पर समग्र रूप से सुझाव देने हेतु ‘कोठारी आयोग’ की नियुक्ति की गयी तथा इस आयोग ने स्त्रियों की स्थिति में सुधार हेतु शैक्षिक सुझाव इन शब्दों में दिये
- 6 से 14 आयु वर्ग के सभी लड़के लड़कियों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
- 11 से 14 आयु वर्ग की लड़कियों के लिए अल्पकालीन शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
- बालिकाओं हेतु अलग से माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की जाये।
- माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को छात्रावास की सुविधा प्रदान की जाये।
- बालिकाओं हेतु अलग से व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
- बालिकाओं के लिए अलग से महिला महाविद्यालयों की स्थापना की जाये।
- बालिकाओं हेतु विशेष छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाये।
- लड़कियों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालय भेजने के लिए जनमानस को तैयार करना।
- अशिक्षित प्रौढ़ महिलाओं की शिक्षा की व्यवस्था की जाये तथा उनके लिए अलग से प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की जाये।
आयोग ने इन सुझावों के पश्चात् राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 की घोषणा की जिसमें स्त्री शिक्षा पर विशेष रूप से बल दिया गया। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74) के अन्तर्गत 1970 में राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् (NCWE) द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट में स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए निम्न बिन्दुओं पर बल दिया गया –
- केन्द्रीय सरकार स्त्री शिक्षा हेतु अलग से पर्याप्त धनराशि सुनिश्चित करे।
- स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु योजनाबद्ध कार्यक्रम बनाया जाये।
- ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाली शिक्षिकाओं को प्रोत्साहित किया जाये और उन्हें अतिरिक्त भत्ता तथा सुविधाएँ प्रदान की जाये।
1971 में छात्राओं की संख्या 1961 की लगभग 140 लाख से बढ़कर लगभग दो गुनी अर्थात् 280 लाख हो गयी। 1974 में पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-79) का शुभारम्भ किया गया। 1975 के वर्ष को यूनेस्को (UNESCO) में ‘महिला वर्ष’ के रूप में मनाया गया तथा भारत में भी महिला कल्याण की योजनाओं का शुभारम्भ किया गया। इनमें सबसे महत्वपूर्ण योजना उनके लिए शिक्षा की समुचित व्यवस्था करने की थी। इस योजना के दौरान स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु विशेष प्रयास तथा महिला शिक्षिकाओं की पूर्ति हेतु प्रयास किया गया।
जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1979 में प्राथमिक शिक्षा को प्रथम वरीयता दी गयी तथा प्रौढ़ शिक्षा को द्वितीय। इसमें लड़के-लड़कियों और प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों सबको साक्षर बनाने और उन्हें सामान्य शिक्षा देने पर बल दिया गया। अभी इस शिक्षा नीति के अनुसार कार्य शुरू ही हुआ था कि केन्द्रा में जनता दल के स्थान पर पुनः कांग्रेस की सरकार सत्तारूढ़ हो गयी। उसने पुनः राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 के अनुपालन पर बल दिया और परिणामस्वरूप छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) में स्त्री शिक्षा का प्रसार कार्य जारी रखा।
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