स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में प्रसार हेतु जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम का वर्णन कीजिए।

जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम

स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में प्रसार हेतु जो कदम उठाये गये उनमें उल्लेखनीय कदम है जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम। यह कार्यक्रम मुख्य रूप से उन जिलों में प्रारम्भ किया गया जिनमें स्त्री वि साक्षरता प्रतिशत न्यूनतम था। बालिका निरौपचारिक शिक्षा केन्द्रों को 90% अनुदान देना शुरू किया गया। बालिका माध्यमिक विद्यालय वहाँ खोले गये जहाँ इनका एकदम अभाव था। केन्द्रीय विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों में बालिकाओं के लिए 30% आरक्षण प्रदान किया गया और उनकी शिक्षा निःशुल्क की गयी। महिलाओं के लिए +2 स्तर पर नये-नये व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये गये, अलग से पॉलिटेक्निक कॉलेज खोले गये। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विश्वविद्यालयों तथ महाविद्यालयों में महिला अध्ययन केन्द्र खोलने हेतु सहायता देना प्रारम्भ कर दिया। 1989 में ‘महिला समाख्या’ कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया जिसके अन्तर्गत ग्रामीण एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं की शिक्षा तथा उनको अधिकार सम्पन्न बनाने हेतु कार्यक्रम तैयार किया गया। 1991 में लगभग 6.2 करोड़ बालिकाएं अध्ययनरत थीं।

1992 में आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) प्रारम्भ की गयी, जिसमें माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर पर छात्राओं के लिए छात्रावास सुविधाएँ तथा इन छात्रावासों को रु 1.500 प्रति छात्रा के हिसाब से फर्नीचर, वर्तन, मनोरंजन, खेल-कूद सामग्री तथा वाचनालय व्यवस्था हेतु अनुदान दिया गया और रु 5,000 प्रति छात्र भोजन सामग्री एवं भोजन व्यवस्था करने वाले कुक एवं कर्मचारियों के वेतन हेतु अनुदान दिया गया।

नवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) के अन्तर्गत मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में राज्यों के शिक्षा मन्त्रियों और शिक्षा सचिवों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें महिलाओं हेतु स्नातक स्तर की निःशुल्क शिक्षा, बालिकाओं की शिक्षा की प्रतिबद्धता को दोहराया गया।

दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07 ) के अन्तर्गत प्राथमिक स्तर पर सर्व शिक्षा अभियान (SSA), कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना (KGBVP) का संचालन किया गया, स्त्री शिक्षा में तीव्रता से विस्तार हुआ तथा प्राप्त आँकड़ों के अनुसार 2005-06 में देश में अध्ययनरत छात्राओं की कुल संख्या 10.9 करोड़ हो गयी। जिससे

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ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 2007-12 में वंचित वर्गों की बालिकाओं की सभी स्तर पर शिक्षा के लिए प्रयास किये गये। इस प्रकार स्वतन्त्र भारत में अर्थात् 20वीं और 21वीं सदी में खी शिक्षा की प्रगति के क्रमिक विकास को देखा जा सकता है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना 2012-17 में स्त्री-शिक्षा के सभी स्तरों पर शिक्षा के लिए निम्नलिखित प्रयास किये गये –

  1. कलिकाओं की शिक्षा में स्वास्थ्य विज्ञान का विशेष ध्यान दिया जाए और स्थानीय सामाजिक वातावरण को ध्यान में रखा जाए।
  2. बालिकाओं को जीवनोपयोगी शिक्षा दी जाए और वह ऐसी हो जिससे वे सामाजिक जीवन में अपना उचित स्थान ग्रहण कर सकें।
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकाधिक बालिका विद्यालय स्थापित करने चाहिए।
  4. नारी को सुमाता तथा सुगृहणी बनाने की शिक्षा दी जाए।
  5. ऐसा पाठ्यक्रम बनाया जाए जो बालिकाओं को समाज में समान स्थान दिला सकें।
  6. रिफ्रेशर कोर्स की व्यवस्था की जाए।
  7. बालक तथा बालिका शिक्षा के लिए विषमता को शीघ्र समाप्त किया जाए।
  8. वर्तमान कार्यक्रम का विस्तार एवं अनेक सहायता कार्यक्रम को प्रारम्भ किया जाए जिससे बालिकाओं का स्तर बढ़ाया जा सके।
  9. महिला शिक्षा के लिए अलग से धन का प्रावधान किया जाए।
  10. लड़कियों के नामांकन में वृद्धि हेतु विशेष सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाएँ।
  11. बालिका विद्यालयों में शिक्षण तथा निरीक्षण का कार्य करने के लिए स्त्रियाँ ही नियुक्त की जाएँ।
  12. बालिकाओं के लिए गृहविज्ञान, संगीत, कला, स्वास्थ्य और परिचर्या की शिक्षा व्यवस्था की जानी चाहिए।
  13. अध्यापिकाओं को समान कार्यों के लिए अध्यापकों के बराबर वेतन दिया जाए।
  14. स्कूलों में आया की नियुक्ति हेतु ।
  15. राज्यों में बालिकाओं एवं स्त्री शिक्षा की राज्य परिषदों का निर्माण किया जाए।
  16. स्थानीय महिलाओं को शिक्षक के रूप में कार्य करने हेतु प्रेरित करने का प्रयास किया जाएं।
  17. छात्रवृत्तियाँ, मुफ्त पाठ्य पुस्तकों का वितरण एवं अन्य प्रोत्साहन अधिक से अधिक दिये जाएं।
  18. विद्यालयों में पोषण, स्वास्थ्य एवं बाल विकास का समावेश किया जाए।
  19. बालिकाओं की शिक्षा के लिए परिवेश का निर्माण करना।

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