B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed. TEACHING

स्थानन सेवा के प्रकार बताइये ।

स्थानन सेवा के प्रकार

स्थानन सेवा मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है।

(1) व्यवसायिक स्थानन (Vocational Placement) –

निर्देशन क्षेत्र के विद्वान जार्ज ई० मायर्स ने इस बात को स्वीकार किया है कि व्यवसाय जगत में छात्र को प्रवेश दिलाने का कार्य विद्यालय का ही है। उन्होंने कहा है- ‘एक नवयुवक को विद्यालय से व्यावसायिक क्रियाओं में भेजना शैक्षिक सेवा है, अतः समाज द्वारा चुनी हुई शैक्षिक संस्था विद्यालय का ही एक उचित कार्य है।’ परन्तु अभी यह एक विवादस्पद विषय है कि विद्यालय व्यावसायिक नियुक्ति सम्बन्धी कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर सकेगा या नहीं। शिक्षा विशेषज्ञों का मत है कि छात्र अपने जीवन का निर्माण काल विद्यालय में व्यतीत करता है। अतः उससे सम्बन्धित सभी सूचनाएँ विद्यालय में रखी जाती हैं। इन सूचनाओं के आधार पर किया गया नियुक्ति सम्बन्धी कार्य समाज एवं व्यक्ति दोनों के लिए ठीक रहता है। विद्यालय नियुक्ति सम्बन्धी कार्य समाज के सहयोग सफलतापूर्वक कर सकता है।

(2) शैक्षिक स्थानन (Educational Placement )-

स्थानन सेवा का कार्य केवल व्यावसायिक नियुक्ति तक सीमित नहीं रहता है, परन्तु इस सेवा को छात्रों की विभिन्न विषयों के चुनने में भी सहायता करनी चाहिए। कुछ छात्र अध्ययन की समाप्ति पर प्रशिक्षण विद्यालयों में प्रवेश लेते है। छात्रों को विभिन्न विषय एवं विद्यालय से सम्बन्धित सूचनाएं प्रदान करना शैक्षिक नियोग सेवा काही कार्य है। शैक्षिक स्थान सेवा निरन्तर चलती रहनी चाहिए, क्योंकि छात्रों को नवीन विद्यालय में वातावरण में समायोजन होने के लिए सदैव सहायता की आवश्यकता रहती है। सफल नियोजन के लिए आवश्यक है कि छात्र सम्बन्धी समस्त सूचनाएँ उसके साथ ही नवीन विद्यालय में भेज दी जाएँ जहाँ उसने प्रवेश लिया हो। यहाँ के निर्देशन अधिकारियों को निर्देशन देने में इन सूचनाओं से अधिक सहायता मिलेगी। शैक्षिक नियोग के निम्नलिखित प्रकार होते हैं

सांस्कृतिक प्रतिमानों के संरक्षण से आप क्या समझते हैं?

नियमित पाठ्यक्रम में स्थानन (Placement in Regualr Courses )-

निर्देशन का कार्य केवल इतने तक ही सीमित नहीं है कि विद्यालय में प्रवेश लेने वाले नवीन विद्यार्थियों को उन पाठ्य-विषयों से अवगत करा दिया जाय तो उसके यहाँ पढ़ाये जाते हैं नवीन छात्रों के लिए इससे भी बढ़कर कार्य विद्यालय को करना चाहिए। छात्रों की योग्यता एवं रूचि के अनुसार ही विषय का चुनाव करने में उसकी सहायता करनी चाहिए। सेवा मुदालियर कमीशन’ के सुझाव के परिणामस्वरूप माध्यमिक तदा उच्चतर माध्यमिक स्तर पर विविध पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया गया हैं अतः आठवीं कक्षा उत्तीर्ण कर लेने के बाद प्रत्येक बालक या बालिका का एक सा ही प्रश्न होता है, ‘मैं कौन-से विषयों का अध्ययन करू ? ऐसे छात्रों को अध्यापक या परामर्शदाता की सहायता की आवश्यकता पड़ती है। इनमें से कोई भी सहायता कर सकता है। ?

About the author

pppatel407@gmail.com

Leave a Comment