संगम युग के सामाजिक जीवन – संगम युग में वर्ण व्यवस्था प्रचलित नहीं थी। पुरुनानक नामक ग्रंथ में चार वर्गों लुड़ियन, पाइन, पवन और कड़म्बन का उल्लेख मिलता है। समाज सामान्यतया चार वर्गों में विभाजित था।
- शुड्डुम वर्ग (ब्राह्मण एवं बुद्धिजीवी वर्ग)
- अरसर वर्ग (शासक एवं योद्धा वर्ग)
- बेनिगर वर्ग (व्यापारी वर्ग )
- बेल्लाल वर्ग (किसान वर्ग)
1.शुइडुम वर्ग
इस वर्ग में ब्राह्मणों का स्थान सर्वप्रमुख था। ये उत्तर भारत के ब्राह्मणों के विपरीत मांस खाते थे और ताड़ी पीते थे। कुछ ब्राह्मण उत्तर से जाकर दक्षिण में बस गए थे, इन्हें वेदमार कहा जाता था। राजा, ब्राह्मणों से अपने कार्यों में सलाह लेता था।
2. अरसर वर्ग
यह शासक एवं योद्धा वर्ग था। योद्धा वर्ग में कुछ ऐसी भी जन जातियाँ थी जिनका मुख्य कार्य पशुओं की चोरी करना एवं लूटपाट करना था। ऐसी ही एक जनजाति मरवा थी जिसमें वेत्ची अथवा गो-हरण की प्रथा प्रचलित थी। मलवर नामक लोग डाका डालने का कार्य करते थे।
3. बेनिगर वर्ग
यह व्यापारियों का वर्ग था। इस वर्ग में छोटे व्यवसायियों को चेति वर्ग कहा जाता था कुछ ऐसे भी व्यवसायी इस वर्ग में शामिल थे जिनकी सामाजिक स्थिति निम्न थी। जैसे-
पुलैयन – रस्सी की चारपाई बनाने वाले
एनियर- शिकार करने वाले
परदवर – मछुवारे आदि।
4. वेल्लाल वर्ग
यह किसानों का वर्ग था। इनके दो प्रकार थे-
- बेल्लालर-ये सम्पन्न किसान थे। इनके प्रमुख को बेलिर कहा जाता था।
- कडैसियर-कृषक मजदूर।
बेल्लालर वर्ग के लोग सरकारी पदों तथा सैनिकों में नियुक्त किए जाते थे। इनका विवाह शासक वर्ग में होता था चोल राज्य में बेल्लालर वर्ग की उपाधि बेल और अरशु तथा पाण्ड्य राज्य में कविदी थी।
कुछ कारीगर खेत मजदूर वर्ग के थे परियार लोग खेत मजदूर थे, लेकिन पशु की खाल या चर्म का काम करते थे और चटाई के रूप में उसका इस्तेमाल करते थे। इस युग में गुप्तचरों को ओर्रार कहा जाता था। इस युग की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता दास प्रथा का अभाव था।
विवाह
उत्तर भारत की तरह दक्षिण भारत में भी विवाह एक संस्कार माना जाता है। तोलकापियम में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख मिलता है। सामान्यतः विवाह में लड़कियों की उम्र 12 वर्ष एवं लड़कों की 18 वर्ष थी।
वैदिक काल में पशुपालन पर टिप्पणी लिखिए।
पंचतिण-प्रेम विवाह (गन्धर्व विवाह)
स्त्री तथा पुरुष के सहज प्रणय तथा उसकी विभिन्न अवस्थाओं को पंचतिर्ण कहा गया है।
कैविकी
एक पक्षीय प्रेम (असुर, राक्षस, पैशाच)
पेरून्दिणे
औचित्यहीन प्रणय (प्रजापत्य सहित शेष चारो विवाह) यह विवाह संगम युग में सर्वाधिक प्रचलित था।
समाज में विधवा विवाह एवं पुनर्विवाह का प्रचलन था। गणिकाओं को परतियर कहा जाता था। नर्तक-नर्तकियों तथा गायको के दल घूम-घूम कर लोगों का मनोरंजन किया करते थे। इन्हें पागर तथा विडैलियर कहा जाता था। सती प्रथा का प्रचलन था। बहुत सी कवयित्री स्थियों का भी उल्लेख मिलता है जैसे ओवैयर तथा नच्चेलियर। समाज में विधवाओं की स्थिति हेय थी, उसे कई यातनाओं का सामना करना पड़ता था जिसमें बाल कटाना, आभूषण त्यागना, समारोहों में भाग न लेना आदि प्रमुख थे।
संगम समाज में शाकाहारी एवं माँसाहारी दोनो वर्ग था। ताड़ी तथा मदिरा का प्रयोग लोग करते थे। प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता था। भोजन के बाद पान-सुपारी खाने का रिवाज था। समाज में कुछ अन्ध-विश्वास भी फैले थे, जैसे खुले बाल वाली स्वी को बुरा समझा जाता था, कौवे के बोलने को अतिथि के आगमन की सूचना समझा जाता था, ज्योतिषी लोगों का भाग्य बताता था, जादू-टोना, ताबीज आदि का प्रचलन था, बरगद के पेड़ को देवताओं का निवास स्थान माना जाता था, सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण को एक-दूसरे का निगलना मानते थे।
कुल मिलाकर संगम युग में सुस्पष्ट सामाजिक विषमताएं व्याप्त थी धनी लोग ईटों के मकानों में रहते थे जबकि गरीब लोग झुग्गियों तथा झोपड़ियों में नगरों में पनी व्यापारी लोग अपने घर के ऊपरी तल्ले में रहते थे।