सिसरो के राजनीतिक क्षेत्र में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।

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सिसरो के राजनीतिक क्षेत्र में योगदान – मौलिक राजनीतिक चिन्तन की दृष्टि से सिसरो का यद्यपि कोई विशेष महत्त्व नहीं है। किन्तु फिर भी उसने यूनानी चिन्तन को रोमन रूप प्रदान करके राजनीतिक चिन्तन के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है। इसी कारणा से उसे सर्वश्रेष्ठ रोमन राजनीतिक चिन्तक होने का श्रेय प्राप्त है। सिसरो का राजनीतिक चिन्तन को सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान उसका प्राकृतिक कानून का सिद्धान्त है जिसे उसने स्टोइक दर्शन से ग्रहण किया था। उसके इस सिद्धान्त को रोमन विधिशास्त्रियों के द्वारा ग्रहण किया गया, जिसके फलस्वरूप 19वीं शताब्दी तक के अधिकांश विधि – विद्वानों द्वारा उसे स्वीकार किया जाता रहा। विलोबी के अनुसार, “सिसरो के विचारों के सम्बन्धा में यह मानना पड़ता है कि उसका महत्त्व विशिष्ट राजनीतिक सिद्धान्तों के प्रतिपादन में नहीं है, अपितु इस बात में है कि उसने यूनान के आदशों को रोमन विचारधारा में प्रविष्ट होने में योगदान दिया।

इस प्रकार उसने रोम के कानून सम्बन्धी विचारों के साथ न्याय तथा औचित्य के विचारों को मिलाकर रोमन विधिशास्त्र को विकसित करने तथा उसे पूर्णता प्रदान करने में अपना महत्त्वपूर्ण अंशदान किया है। सेवाइन के अनुसार- “राजनीतिक चिन्तन के विकास में उसकी महत्ता इस बात में है कि उसने स्टोइक विचारकों के प्राकृतिक कानून के सिद्धान्त को वह रूप प्रदान किया जिसमें वह स्वयं उसके काल से लेकर 19वीं शताब्दी तक समूचे पश्चिमी यूरोप में सार्वभौमिक रूप से मान्य किया गया।”

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यद्यपि सिसरो के विचारों का उसके जीवन काल में कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा, किन्तु उसके विश्व एकता, सार्वभौम सत्ता एवं नियम के विचार मध्यकाल में बहुत लोकप्रिय हुए तथा उनके प्रभाव के कारण यह माना जाने लगा कि सार्वभौमिक नियम के विरुद्ध जाने वाली कोई भी व्यवस्था वैधानिक नहीं मानी जानी चाहिए। अतः गैटिल के अनुसार- “उसके न्याय तथा प्राकृतिक कानून सम्बन्धी विचारों ने रोमन विधि के चिन्तन पर गहरा प्रभाव डाला और बाद में रोमन विधिशास्त्रियों और प्रारम्भिक ईसाई लेखकों को प्रभावित किया। उसके सार्वभौम कानून एवं विश्व एकता सम्बन्धी विचारों को समूचे मध्य युग के राजनीतिक चिन्तन का केन्द्रीभूत तत्त्व होने का यश प्राप्त है।”

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