सिकन्दर के भारत आक्रमण
सिकन्दर के इस तूफानी आक्रमण का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा, इस प्रश्न पर विद्वानों में बहुत मतभेद है। कुछ विद्वानों का कथन है कि सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर कोई भी प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ा। इस सम्बन्ध में चार मत है
(1) डॉ. स्मिथ का कथन है कि भारतवर्ष अपरिवर्तित रहा। युद्ध का घाव शीघ्र ही भर गया। जैसे ही सन्तोषी बैलों तथा उनसे अक्षण सन्तोषी किसानों ने अपने-अपने अवरूद्ध कार्यों को प्रारम्भ किया, वैसे ही विनष्ट क्षेत्र पुनः लहलहा उठे और वह स्थान जहाँ असंख्य नरहत्याएँ हुई थीं, पुनः असंख्य प्राणियों से परिपूर्ण हो गए। भारत पर यूनानियों का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। भारत अपना भव्य और एकांकी जीवन बिताता रहा और शीघ्र ही यूनानी तूफान को भूल गया। हिन्दू, बौद्ध अथवा जैन किसी भी भारतीय लेखक ने सिकन्दर या उसके कार्यों का नाम मात्र भी संकेत नहीं किया है।
(2) राधाकुमुद मुकर्जी का कथन है कि सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर कोई भी स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा। मुकर्जी लिखते हैं कि सिकन्दर का आक्रमण राजनैतिक दृष्टिकोण से सफल नहीं रहा। क्योंकि इसके फलस्वरूप ज्यादा स्थायी रूप से मैसिडोनिया के अधिकार में नहीं रह सका। जनता के जीवन, साहित्य एवं संस्कृति पर इसकी कोई छाप नहीं पड़ी। राधाकुमुद मुकर्जी का तो यहाँ तक कहना है कि सिकन्दर की वास्तविक लड़ाई हुई ही नहीं थी क्योंकि अभी तक वह पर्वतीय एवं सीमान्त जातियों से ही युद्ध कर रहा था। प्रो. गलिनस का भी कथन है कि सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा।
(3) वेतन लिखते हैं कि भारत पर यूरोपीय आक्रमण एक ऐसी महत्वपूर्ण घटना थी कि जिसका गहरा प्रभाव पड़ना आवश्यक था। अन्य विदेशी आक्रमणों के समान इसने भी उन आन्तरिक बाधाओं को नष्ट कर दिया जो इस प्रदेश की एकता में बाधक सिद्ध होती थी।
(4) डॉ. हेमचन्द्र राय चौधरी, डॉ. मजूमदार एवं डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी आदि विद्वानों ने यह स्वीकार किया है कि सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। हेमचन्द्र राय चौधरी लिखते हैं कि सिकन्दर के आक्रमण का एक स्थायी प्रभाव प्रतीत होता है कि उत्तर में कुछ यवन बस्तियों स्थापित हो गई। सिकन्दर के आक्रमण का एक अप्रत्यक्ष प्रभाव भी पड़ा। उसने उत्तर पश्चिम के छोटे-छोटे राज्यों को नष्ट करके भारत की एकता में बड़ा योगदान दिया।
राजनैतिक प्रभाव
(अ) राजनैतिक एकता का पाठ
इस आक्रमण ने भारतीयों को राजनैतिक एकता की सीख दी। डॉ. हेमचन्द्र राय चौधरी का कथन है कि सिकन्दर के आक्रमण से यह स्पष्ट हो गया कि भारत में जब तक छोटे-छोटे राज्यों के मध्य में एकता की भावना उत्पन्न न होगी तब तक किसी भी विदेशी राज्य से मुकाबला करना कठिन है। अतः अप्रत्यक्ष रूप से भारतवासियों को राजनैतिक एकता का पाठ पढ़ाया।
(ब) चन्द्रगुप्त के कार्य में सुगमता
सिकन्दर के आक्रमण का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्दों को परास्त करके एकर विशाल साम्राज्य की स्थापना की। डॉ. आरके मुकर्जी ने लिखा है कि “सिकन्दर के आक्रमण से जो छोटे राज्य में एकीकरण का आभाव था, वह समाप्त हो गया केवल पौरव, अभिसार, तक्षशिला आदि बड़े-बड़े राज्य शेष रह गए। यह परिस्थितियाँ एक महान भारतीय साम्राज्य के लिए अत्यन्त अनुकूल थीं और चन्द्रगुप्त ने शीघ्र ही एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
(स) उत्तर पश्चिम में क्षत्रपीय व्यवस्था
सिकन्दर के आक्रमण के परिणामस्वरूप सीमान्त प्रदेश पंजाब और सिन्ध में स्थायी रूप से यूनानी सत्ता स्थापित हो गई। उत्तर पश्चिम भाग में कुछ क्षत्रपी बस्तियाँ स्थापित हुई तथा क्षत्रपों ने अनेक भागों में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था जिसके फलस्वरूप क्षत्रपीय शासन व्यवस्था आरम्भ हुई। इस प्रकार देश के एक कोने में क्षत्रपीय व्यवस्था का भी विकास हो रहा था।
(द) नवीन नगरों की स्थापना
सिकन्दर के आक्रमण का एक यह भी प्रभाव पड़ा कि उसने अनेक नगरों का निर्माण किया जो राजनैतिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण थे अपनी भारतीय यात्रा की अवधि में सिकन्दर ने जो स्कन्धावार तथा नगर स्थापित किए उनका अस्तित्व उसकी मृत्यु के पश्चात् भी बहुत दिनों तक बना रहा और उसके द्वारा यूनानी जीवन का सीधा प्रभाव भारतीय जन-जीवन पर पड़ता रहा। सिकन्दर ने नगरों में विजयोत्सव का आयोजन किया और अनेक नयी चीजों का भी निर्माण किया। सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् भी बहुत समय तक उसके द्वारा निर्मित नवीन नगर जीवित रहे।
(इ) भारतीय सैन्य संगठन में परिवर्तन
इस आक्रमण से पश्चिमोत्तर के भारतीयों की अपनी सैनिक एवं राजनैतिक दुर्बलताएँ स्पष्ट हो गई। उन्होंने अपनी आँखों से देखा कि किस प्रकार छोटे-छोटे राज्य एक संगठित विदेशी आक्रमण के सामने धाराशायी हो जाते हैं। डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी कहते हैं कि इस आक्रमण ने भारतीयों को समझा दिया कि उनका सैन्य संगठन और युद्ध कौशल अपर्याप्त तथा दोषपूर्ण है और उचित रूप से शिक्षित तथा अनुशासित सेना अल्पसंख्यक होते हुए भी विजयी हो सकती है। कुछ विद्वानों का यह भी विचार है कि सिकन्दर के आक्रमण से ‘भारतीयों ने अपने संगठन में यूनानी प्रणाली का भी मिश्रण किया। भारतीयों ने देख लिया कि उनका सैन्य संगठन तथा रणकौशल अपर्याप्त एवं दोषपूर्ण है। इसी कारण चन्द्रगुप्त मौर्य ने अनेक छोटी छोटी जातियों को संगठित एक विशाल साम्राज्य का स्वरूप दिया।
वाणिज्य और व्यापार पर प्रभाव
(अ) नवीन व्यापारिक मार्ग
सिकन्दर के आक्रमण का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि भारत और यूरोप के मध्य जलीय और स्थलीय मार्ग खुल गए। डॉ. राजबली पाण्डेय का कथन है कि “वैसे तो यूनान और भारत पहले से ही एक दूसरे से परिचित थे और समुद्र तट तथा स्थल मार्ग से व्यापारी एवं अमीर आते जाते भी थे परन्तु यूनानियों के भारत में अधिक संख्या में आने और मध्य एशिया में यूनानी साम्राज्य के स्थापित होने से आवागमन और व्यापार को अधिक प्रोत्साहन मिला।”
इस आक्रमण के फलस्वरूप भारत के लिए कम से कम चार व्यापारिक मार्ग खुल गए। इनमें एक समुद्री मार्ग थे और तीन स्थलीय मार्ग थे। यह स्थल मार्ग काबुल, बलोचिस्तान तथा जोडेशिया होकर जाते थे, बड़े उपयोगी सिद्ध हुए। इन मार्गो के खुल जाने से पूर्व तथा पश्चिम के मध्य घनिष्ट व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हो गए। पाल, मिसन का भी कथन है कि ‘भूमध्य सागरीय सभ्यता का पंजाब और मध्य एशिया की सभ्यता से घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुआ। पूर्व और पश्चिम के मध्य सेमेटिक, बेबीलोनिया और ईरानी साम्राज्य भी एक दीवार के रूप में खड़े न रह सके बल्कि वहाँ के लिए भी व्यापारिक मार्ग खुल गया।”
(ब) व्यापार में वृद्धि
आवागमन की सरलता के कारण आवागमन में भी वृद्धि होना स्वाभाविक था। नाहर का कथन है कि “यह व्यापारिक सम्बन्ध पहले से ही स्थापित था, परन्तु वाणिज्य यनानी नगरों की माँग ने भी यूनान तथा भारत के व्यापार को बढ़ाया होगा। “
(स) मुद्रा का प्रचलन
यूनान और भारत के व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हो जाने के कारण द्रम नामक मुद्रा का प्रचलन हुआ। बाद में भारतीय दीनार नामक मुद्रा का प्रचलन इसी क्रम का अनुकरण था। सिकन्दर ने पोरस पर विजय के उपलक्ष्य में भी एक स्वर्ण मुद्रा चलायी थी जिसके एक ओर सिकन्दर की तस्वीर थी तथा दूसरी ओर भागते हुए पोरस की तस्वीर बनी हुई थी। यह मुद्रा आज भी लन्दन संग्रहालय में देखी जा सकती है।
सांस्कृतिक प्रभाव
(अ) भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहन
सिकन्दर के अभियान के कारण भारत और पश्चिमी देशों के बीच कई मार्गों की खोज हुई। सिकन्दर नए मार्गों की खोज में स्वयं दिलचस्पी रखता था। उसने अपने मित्र निर्याकस को सिन्धु नदी के मुहान से फरात नदी के मुहाने तक के जलमार्ग का पता लगाने के लिए भेजा था। उस मार्ग का पता चल जाने के बाद पश्चिमी देशों के ★ साथ भारत के व्यापार में वृद्धि हुई।
(ब) तिथि निर्धारण
सिकन्दर के आक्रमण का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि इसने भारतीय इतिहास के तिथिक्रम को सुनिश्चित कर दिया। सिकन्दर के आक्रमण के पूर्व भारतीय इतिहास का तिथिक्रम निश्चित नहीं है, परन्तु 326 ई.पू. के पश्चात् भारतीय इतिहास का क्रमबद्ध ब्यौरा प्रस्तुत किया जा सकता है।
मिहिरभोज प्रथम का इतिहास लिखिए।
(स) भारतीय संस्कृति पर प्रभाव
सिकन्दर के आक्रमण का सर्वाधिक प्रभाव भारतीय संस्कृति पर पड़ा। उसके आक्रमण से भारतीय सैन्य व्यवस्था कला, साहित्य, चिकित्सा, ज्योतिष एवं मुद्रा व्यवस्था के स्वरूप में परिवर्तन आया। सिकन्दर के साथ हुए युद्धों ने गज-सेना की दुर्बलता स्पष्ट कर दी। अतः अब अश्वसेना का महत्व अधिक बढ़ गया। यूनानी नगरों में (भारत में) अनेक भारतीय यूनानी देवताओं की पूजा करने लगे। कालान्तर में भारतीय मुद्रा प्रणाली, कला, चिकित्सा एवं साहित्य भी यूनानी संस्कृति से प्रभावित हुए, यद्यपि इनका तात्कालिक प्रभाव नहीं पड़ा। बैक्ट्रिया यूनानियों का प्रधान सांस्कृतिक केन्द्र बन गया। मौर्य साम्राज्य के पहन के पश्चात् जब गान्धार पर पुनः बैक्ट्रियनो का अधिपत्य हुआ, तब भारतीय संस्कृति इनसे अत्यधिक प्रभावित हुई। सिकन्दर के आक्रमण के समय अनेक यूनानी इतिहासकार भारत आए, जिनके विवरणों से तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अवस्था की जानकारी उपलब्ध होती है। इन इतिहासकारों ने प्राचीन इतिहास को हमारे लिए सुरक्षित रखकर एक महान कार्य किया है। इन दृष्टिकोणों से सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर चिरस्थायी प्रभाव पड़ा। सिकन्दर का आक्रमण कोई महत्वहीन या परिणामविहीन घटना नहीं थीं। इसने पश्चिमोत्तर सीमा को हमेशा के लिए विदेशी आक्रान्ताओं के लिए खोल दिया। इसी मार्ग से आगे हिन्द-यूनानी, शक-पहलव, कुषाण, हूण, तुर्क, मुगल इत्यादि भारत में आए और अपना शासन स्थापित किया। इन सम्पर्कों का कालान्तर में भारतीय इतिहास और संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा।
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