शिक्षा में समानता के सूचकों का वर्णन कीजिए।

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शिक्षा में समानता के सूचक – शिक्षा के निम्नलिखित चार बातें समानता के सूचक कहे जा सकते हैं

1. अधिगम की समानता

इसका सम्बन्ध प्रवेश के अवसर से सम्बद्ध है। समानता के आधार पर प्रवेश होना चाहिए। जाति, धर्म इसमें बाधक न हों। कुछ समय पहले भारतीय समाज में स्त्रियों एवं शूद्रों को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था। यह अधिगम की विवशता थी। हिन्दुओं की पूर्तता के कारण इस वर्ग के बच्चों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। यह हिन्दु समाज के लिये सदियों तक कलंक के रूप में उनके माथे पर लगा रहेगा। इस असमानता को अब दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन आज भी समान शिक्षा का दिखा हो रहा है। आज सरकारी व प्राइवेट शिक्षा के बीच गहरी खाई होती जा रही है।

2. उत्तराजीवितता की समानता

विद्यालय में प्रवेश में ही समानता न हो वरन् छात्र स्कूल में बना रहे, वह विद्यालय छोड़ न दें, इसके लिए भी समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। अनुसूचित जाति के बच्चे की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं।

3. स्तर की समानता

एक निश्चित स्तर तक सभी बालक-बालिकाओं को बिना किसी भेदभाव के अनिवार्य शिक्षा मिले। निर्धन बालकों को विशेष सुविधा दी जाए। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर तक हो।

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4. परिणाम की समानता

स्कूल छोड़ने के बाद प्रत्येक बच्चे को शिक्षा के आधार पर जीवन बिताने के समान अवसर सुलभ हो। यदि किसी वर्ग विशेष को अवसर की विषमता नजर आये तो उसे विशेष सुविधा देकर उसके लिए समान अवसर की सुलभता निश्चित की जाए। इसी सूचक के अन्तर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए नौकरियों में आरक्षण की निरंतर व्यवस्था की जानी चाहिए। जब तक की इस समाज के निम्न स्थिति वाले व्यक्ति अपनी स्थिति में सुधार कर ले।

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