शिक्षा के डाल्टन योजना की विवेचना कीजिए।

शिक्षा के डाल्टन योजना – डाल्टन प्रयोगशाला योजना या ‘डाल्टन योजना’ शिक्षण का एक कांसेप्ट है जिसे अमेरिका की शिक्षाशास्त्रियों कुमारी हेलेन पार्खस्ट ने आरम्भ किया। सन् 1912 में अमेरिका की शिक्षाशास्त्रिणी कुमारी हेलन पार्खस्ट ने आठ से 12 वर्ष के बीच की अवस्था वाले बालकों के लिए एक नई शिक्षा योजना बनाई। यद्यपि यह योजना

उनके मन में पहले से ही थी किन्तु उसका वास्तविक प्रयोग सन् 1913 और 1915 के बीच किया गया। इसी बीच प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) छिड़ गया और कुमारी पार्खस्ट ने भी अपनी योजना थोड़े दिन के लिए ढीली कर दी। विश्वयुद्ध समाप्त होने के पश्चात् सन् 1920 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के मैसाच्यूसेट राज्य के डाल्टन स्थित विद्यालयों में अपनी योजना प्रारम्भ की। इसके पश्चात् उन्होंने एक बाल विश्वविद्यालय पाठशाला (चिन्ड्रेस यूनिवर्सिटी स्कूल) स्थापित करके उसमें अपनी डाल्टन प्रयोगशाला योजना (डाल्टन लैबोरेटी प्लान) का व्यवहार किया।

परिचय

उन दिनों विद्यालयों में अध्यापकों का बोलबाला था। पशुओं की भाँति छात्र कक्षा रूपी बाड़े में बन्द कर दिये जाते थे। अध्यापकगण जो कुछ बतला देते थे उसे वे घाँटकरं सुना देते थे। सुनाते समय तनिक सा भी हेरफेर हुआ कि बेतों से धुन दिये जाते थे। प्रायः विद्यालय की कक्षाएँ भी अँधेरे, संकरे और कम हवा वाले कमरों में होती थीं। विद्याथियों के मुँह पर ताले लगे हुए थे। मेधावी बालक को तीव्रगति अवसर नहीं था और मतिमंद बालकों को अपनी मंद गति से रुक-रुक कर चलने की सुविधा नहीं थी। यद्यपि रूसो, पेस्टालॉजी और हरबार्ट जैसे शिक्षाशास्त्रियों ने बालक के स्वतंत्र शिक्षा विकास पर बहुत कुछ लिखा और कहा था, फिर भी अधिकांश विद्यालयों में दण्डवादी, प्राचीन पंथियों का साम्राज्य था। इन सब बातों में सम्पूर्ण शिक्षाक्रम नितांत नीरस और रोचकताशून्य हो गया था। कुमारी हेलन पर्खास्ट के कोमल नारी हृदय को इस कठोर, अकरुण और नीरस वातावरण से अत्यन्त क्षोभ हुआ, इसलिए उन्होंने अमेरिका में अपनी डाल्टन योजना चला दी। वे चाहतीं तो इस योजना के साथ मेरिया मौतेस्सौरी के समान अपना नाम भी जोड़ देती किन्तु विश्वास है कि किसी शिक्षा प्रणाली को अपने नाम से जोड़ना और उसे बांध देना नैतिक दृष्टि से ठीक नहीं है। उनकी यही इच्छा रही है कि इस योजना को विशेष नियमों और बंधनों में न जकड़ा जाये और इसीलिये विभिन्न देशों और स्थानों के लिए उन्होंने बड़ी छूट दे दी है। सन् 1915 से 1918 तक पार्खस्ट ने केलिफोर्निया में माँतेस्सरी प्रणाली का भी प्रयोग किया और इसीलिए कुछ लोग इस प्रणाली को माँतेस्सरी की उपज मानते हैं किन्तु तथ्य यह नहीं है।

सिद्धांत

इस प्रयोगशाला योजना के दो मुख्य सिद्धांत हैं

  1. विभिन्न विषयों के लिए निश्चित घण्टों और समयसारणी के कठोर बन्धनों को नष्ट करके बच्चों को स्वतंत्रतापूर्वक काम करने की सुविधा देना ।
  2. 2. बालक की रुचि जिस विषय में अधिक हो उसे उस विषय को जितनी देर तक वह चाहे, अध्ययन करने देना।

इन सिद्धांतों से स्पष्ट है कि यह डाल्टन योजना कोई नई शिक्षाप्रणाली नहीं है वरन् एक नई प्रकार की विद्यालय व्यवस्था है। इसमें विषय तो वे ही पढ़ाये जाते हैं जो अन्य विद्यालयों में, किन्तु इसमें पढ़ाई का ढंग, परिणाम और प्रकार भिन्न होता है।

इसमें समूचा पाठ्यक्रम सुविधाजनक मासिक छपी हुई ठेके की कार्ययोजना (कॉंट्रैक्ट एसाइनमेंट) के रूप में बांट लिया जाता है जिसमें छुट्टियों के लिए पढ़े हुए पाठ की आवृत्ति के लिए और विद्यार्थियों के स्वतः अभ्यास के लिए समय छोड़ दिया जाता है। प्रत्येक पाठ्य विषय को एक वर्ष की दस मासिक कार्ययोजनाओं में बाँट दिया जाता है और इस विद्यालय का महीना बीस दिन का होता है। इस ठेके के कार्य में नित्य का कार्य निर्दिष्ट होता है जिसे समस्या (प्रोब्लम) कहते हैं जैसे भूगोल के एक ठेके के कार्य में भारत के भूगोल का अध्ययन किया गया है, तो यह पूरा मासिक या वृहद ठेके का कार्य है और उसके छोटे भाग, जैसे-भू-प्रकृति, जलवायु आदि समस्याएँ या दैनिक कार्य हैं। इनमें से कुछ समस्याओं के लिए दो दिन का और कुछ लिए आधे दिन का समय दिया जाता है। इन समस्याओं में पढ़ने का, प्रश्नों के उत्तर देने का मानचित्र खींचने या विवरण लिखने का तथा अन्य कार्य करने का निर्देश दिया जाता है जिससे छात्र को श्रेय (क्रेडिट) मिले प्रत्येक विद्यार्थी इस कार्य को ठेके के रूप में ग्रहण करता और एक महीने के लिए दिया हुआ निर्दिष्ट कार्य निश्चित समय में पूरा करता है।

इसमें स्वतंत्रता यही है कि विद्यार्थी एक मास में पूरे किये जाने वाले कार्य को अपनी इच्छा के अनुसार चाहे जिस क्रम से और जिस गति से पूरा कर सकते हैं। वे चाहें तो एक महीने के लिए दिये गये काम को दस दिन में पूरा कर सकते हैं किन्तु कार्य समाप्त करते ही वे अगले महीने के कार्य को नहीं ले सकते। वे शेष बचे हुए समय में पुस्तकालय से मनचाही पुस्तक का अध्ययन कर सकते हैं। जब छात्र मासिक कार्य का ठेका लेते हैं तो वे यह भी वचन देते हैं कि इस कार्य को पूरा करने के लिए न हम किसी को सहायता देंगे न हम किसी से सहायता लेंगे। छात्रों को इतनी छूट अवश्य रहती है कि वे अपने । गुरु या अपने सहपाठियों से सम्मति लें किन्तु कार्य उन्हें स्वतः ही पूरा करना पड़ता है।

इस योजना में कक्षाएँ लुप्त हो जाती है और प्रत्येक कक्षा प्रयोगशाला बन जाती है। इन विभिन्न प्रयोगशालाओं में उन विषयों के सब सहायक पदार्थ पुस्तक, चित्र, रेखाचित्र, प्रतिमूर्ति, यंत्र आदि विद्यमान रहते हैं। विभिन्न श्रेणियों के जो विद्यार्थी किसी एक विषय का कार्य पूरा करना चाहते हैं वे सभी उस विषय की कक्षा प्रयोगशाला में बैठकर सामग्री का उपयोग करके अपना कार्य पूरा कर सकते हैं। इस प्रकार विद्यालय में पहली, दूसरी, तीसरी कक्षा न होकर हिन्दी की प्रयोगशाला, गणित की प्रयोगशाला, इतिहास की प्रयोगशाला तथा भूगोल, विज्ञान, संगीत, चित्रकला आदि विषयों की प्रयोगशालाएं बन जाती है। इसीलिए वहाँ न घण्टे लगते हैं न कोई बंधी हुई समय सारणी या दिनचर्या (टाइम टेबल) ही रहती है।

अध्यापकों के कार्य

इस योजना के अन्तर्गत अध्यापकों का काम यह है कि

  1. वे अपनी-अपनी प्रयोगशाला में जन्कर वर्ष भर के लिए मासिक कार्ययोजना तैयार
  2. जो विद्यार्थी कुछ पूछने आये उसे उचित परामर्श या निर्देश दें और यह देखें कि कर दें। छात्र एक दूसरी की नकल तो नहीं करते या समय तो नष्ट नहीं करते।
  3. मासिक कार्ययोजना बनाते समय विभिन्न विषयों के अध्यापक परस्पर मिलकर इस प्रकार कार्य बाँटे कि एक प्रकार के कार्य की आवृत्ति न हो।

यदि इतिहास का अध्यापक शिवाजी पर लेख लिखना चाहता है तो वह इस काम को भाषाशिक्षक की कार्ययोजना में डाल सकता है। जिसका ऐतिहासिक अंश इतिहास का अध्यापक देख ले और भाषा का अंश भाषा का अध्यापक इससे छात्र भी दो निबंध लिखने की कठिनाई से बच जाता है। इस योजना में अध्यापक को कोई अधिकार नहीं है कि वह विद्यार्थी के काम में बाधा दे, यह छात्र का ही अधिकार है कि वह आवश्यकता पड़ने पर अध्यापक से संमति और परामर्श ले

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वार्षिक ठेके की कार्ययोजना

छात्रों के लिए जो दस मास की वार्षिक ठेके की कार्ययोजना (कॉंट्रैक्ट एसाइनमेंट) बनाई जाती है उसमें निम्नांकित बातें आती हैं

  1. प्रस्तावना थोड़े शब्दों में एक महीने के लिए दिये जाने वाले कार्य का कुछ थोड़ा सा परिचय।
  2. विषयांग जो विषय दिया जाय उसके उस विशेष अंग, भाग, पाठ या अंश (रचना, व्याकरण, कविता, गद्य, नाटक, कहानी आदि) का उल्लेख यह स्पष्ट किया जाय और यह भी बताया जाये किस अंग के लिए कितना काम अपेक्षित है।
  3. समस्याएँ उन सब बातों का उल्लेख हो जिनके लिए छात्रों को मनन या विचार करना पड़े, जैसे यंत्र बनाना, मानचित्र बनाना अथवा वैज्ञानिक या दार्शनिक विवेचना करना आदि । अधिकतर भाषा के पाठ में समस्याएँ कम होती हैं। इतिहास, भूगोल, विज्ञान तथा अर्थशास्त्र जैसे विषयों में समस्याएँ अधिक होती हैं जिनके लिए छात्र को विशेष अध्ययन करके अपनी ओर ये परिणाम निकालना होता है।
  4. लिखित कार्य लिखने के कार्य की पूरी सूची दी जाये और जिस तिथि को लेख लेना हो उसका स्पष्ट उल्लेख हो ।
  5. कंठस्थ करने योग्य कार्य उन सब अंशों, कविताओं या अनुच्छेदों का उल्लेख हो जिन्हें कंठस्थ कराना अभीष्ट हो ।
  6. सम्मेलन (कौनफरेंस) – कार्ययोजना में उन तिथियों का भी उल्लेख हो जब पूरी कक्षा को एक साथ बैठाकर उस विषय पर बातचीत करनी हो या कुछ विशेष समझाना हो ।
  7. सहायक पुस्तकें-कार्ययोजना के साथ उन पुस्तकों तथा पत्रपत्रिकाओं के नाम, उनके अध्याय तथा पृष्ठ भी दे दिये जाएँ जिनसे सहायता लेना आवश्यक हो ।
  8. प्रगति विवरण- बालकों को यह भी बतला दिया जाए कि वे अपनी प्रगति का लेखा किस प्रकार बनायें जिससे उनमें यह आत्मविश्वास बना रहे और वे समझते रहें कि हमने इतना ज्ञान प्राप्त किया, इतना कार्य किया, इतनी उन्नति की। इसके लिए कक्षा में भी प्रगतिपट्ट (रूप ग्राफ) रहता है और छात्र के पास भी, जिसमें वह अपने किये हुए काम की प्रगति का अंकन करता चलता है।
  9. सूचनापट्ट का अध्ययन- यदि प्रयोगशाला के सूचनापट्ट पर कोई चित्र, मानचित्र अथवा लेख आदि पढ़ने के लिए टाँगने की योजना हो तो उसका भी उल्लेख कर दिया जाये।
  10. विभागीय छूट मासिक कार्ययोजना बनाते समय अध्यापकों को परस्पर मिलकर इस प्रकार से कार्य विभाजन करना चाहिए कि एक ही प्रकार के कार्य की आवृत्ति न हो और छात्र पर अनावश्यक भार न पड़े।। इसी योजना का व्यापक और व्यावहारिक रूप विषय योजना (यूनिट प्लानिंग) नाम से चल पड़ा है जिसके अनुसार वर्तमान विद्यालयों की कक्षा पद्धति का निर्वाह करते हुए वर्ष भर एक विषय को पढ़ाने की मासिक क्रम से पूरी योजना बना ली जाती है।

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