शिक्षा का ध्येय स्वाभाविक विकास में सुधार करना है। विवेचना कीजिए।

शिक्षा का ध्येय स्वाभाविक विकास – इस विचारधारा के विद्वानों का कहना है कि बालक के ऊपर अध्यापक के व्यक्तित्व तथा ज्ञान का प्रभाव अवश्य पड़ता है, वह कभी भी समस्त प्रभावों से रहित नहीं हो सकता। इस प्रकार शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया के रूप में हमारे सामने आती है। एक ओर शिक्षक होता है, जो अपने व्यक्तित्व पर अपने विशिष्ट ज्ञान का प्रभाव डालता है और दूसरी ओर बालक होता है, जो उस प्रभाव को ग्रहण करता है। इस परिभाषा का समर्थन निम्नलिखित विद्वानों ने किया है

मानव जीवन में शिक्षा के दो कार्यों का वर्णन कीजिए।

  • (1) एडम्स “शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है, जिसमें एक व्यक्तित्व दूसरे पर एक दूसरे के विकास में सुधार लाने के लिए कार्य करता है। वह प्रक्रिया चेतन तथा प्रयोजनयुक्त होती है। इसके दो साधन शिक्षक का व्यक्तित्व तथा ज्ञान का प्रयोग होते हैं।
  • (2) रस्किन- “आप किसी व्यक्ति को यह बताकर नहीं शिक्षित करते कि वह क्या नहीं जानता है, अपितु उसे यह बताकर आप शिक्षा देते हैं जो कि वह नहीं है।
  • (3) स्ट्रेयर- शिक्षा वह है जो उस व्यक्ति के कार्यों में परिवर्तन उपस्थित कर देती है, जिसे शिक्षा दी जाती है।

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