शिक्षा एवं संस्कृति में सम्बन्ध शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की शिक्षा धातु में अ प्रत्यय लगने से बना है। शिक्षा का अर्थ है सीखना और सिखाना। इसलिए शिक्षा का अर्थ हुआ सीखने और सिखाने की क्रिया। शिक्षा शब्द की उत्पत्ति ‘संस्कार’ शब्द से हुई है। इस प्रकार जो संस्कार व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाते हैं, उसे संस्कृति नाम से सम्बोन्धित किया जाता है।
शिक्षा एवं संस्कृति का अत्याधिक घनिष्ठ सम्बन्ध है। बामेल्ड के शब्दों में, ‘संस्कृति की सामग्री से ही शिक्षा का प्रत्यक्ष रूप से निर्माण होता है और यही सामग्री, शिक्षा को न केवल उसके स्वयं के उपकरण वरन् उसके अस्तित्व का कारण भी प्रदान करती है। इसी प्रकार शिक्षा भी संस्कृति को परिवर्तित एवं परिमार्जित कर उसका अस्तित्व एवं निरन्तरता बनाये रखती है। शिक्षा एवं संस्कृति के सम्बन्ध को निम्न तथ्यों द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं।
1. संस्कृति की निन्तरता में सहायता
शिक्षा जाति की संस्कृति या सांस्कृतिक परम्परा की निन्तरता में उल्लेखनीय योगदान देती है और उसका अन्त नहीं होने देती। अपनी-अपनी संस्कृति की रक्षा करने के लिए प्रगतिशीलदेशों ने विद्यालयों की स्थापना करके उनमें शिक्षा की उत्तम व्यवस्था। की है और उन पर संस्कृति की निरन्तरता का
2. संस्कृति के हस्तानान्तरण में सहायक
समाज का सदस्य होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी संस्कृति को सीखता है और अगली पीढ़ी को भी सीखने का अवसर देता है। इस कार्य में शिक्षा संस्कृति की अपूर्व सहायता करती है। अनेक बातों की शिक्षा बालक को विद्यालय में अध्यापक के द्वारा मिलती है। इस प्रकार शिक्षा द्वारा संस्कृति का हस्तानान्तरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को होता रहता है। इस सन्दर्भ में श्री ओटावे (Ottaway) ने ठीक ही लिखा है, शिक्षा एक कार्य समाज के सांस्कृतिक मूल्यों एवं व्यवहार के प्रतिमानों को उसके तरूण एवं समर्थ सदस्यों को हस्तन्तरित करना है।”
3. संस्कृति के परिवर्तन एवं परिवर्धन में सहायता
शिक्षा संस्कृति को परिवर्तित परिमार्जित एवं परिवर्धित भी करती है। किसी भी संस्कृति में कुछ ऐसी प्रथाओं, परम्पराओं, रूढ़ियों अन्धविश्वास आदि का विकास हो जाता है, जिनसे समाज को मुक्त करना आवश्यक हो जाता है। शिक्षा इस कार्य में महान योगदान देती है, जिसके कारण संस्कृति का एक नवीन रूप हमारे सामने प्रकट होता है
4. व्यक्ति के सांस्कृतिक विकास में सहायता
हम विद्यालय में जिन विषयों का अध्ययन करके उनमें संचित ज्ञान हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। जैसे इतिहास का अध्ययन करके महापुरुषों एवं वीरों की महानता के बारे में जानते हैं और इस प्रकार शिक्षा सांस्कृतिक विकास का अवसर प्रदान करती है। अतः ‘राधाकृष्णन आयोग’ का परामर्श है- “महानता की स्वभाविक झलक, सांस्कृतिक विकास की निधि है। जिनमें स्वयं महानता नहीं है उन्हें (इतिहास का अध्ययन करके) महान् व्यक्तियों की संगति में रहना चाहिए।
5. व्यक्तित्व के विकास में सहायता
शिक्षा संस्कृति के सहयोग से बालक के व्यक्ति का विकास करती है।
6. ओटावे के अनुसार
शिक्षा के अन्तर्गत कला एवं मानव अभिव्यक्तियों के अन्य सांस्कृतिक स्वरूपों का समावेश रहता है। यदि शिक्षा का अर्थ बालक की प्रस्तुत शक्तियों को जागृत करके बाहर लाना है तो शिक्षा का समावेश आवश्यक है।
अर्थपचारिक शिक्षा की परिभाषा देते हुए उसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
7. संस्कृति शिक्षा के विभिन्न अंगों को प्रभावित करती है
जहाँ संस्कृति शिक्षा से प्रभावित परिवर्तित एवं परिमार्जित होती है वहां शिक्षा एवं उसके लिखित अंगों तथा शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम शिक्षण विधियां, पाठ्यपुस्तक, शिक्षक, अनुशासन, शिक्षालय आदि पर संस्कृति का गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए संस्कृति में परिवर्तन एवं परिमार्जन होने के कारण शिक्षा के विभिन्न अंगों में भी परिवर्तन एवं परिमार्जन हो रहा है।
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