शशांक बंगाल या गौड़ का शासक था। वह हर्ष का प्रबल शत्रु, शैव धर्म का उपासक ..और बौद्ध धर्म का कट्टर शत्रु था। ह्वेनसांग ने उसे कर्ण-सुवर्ण का दुष्ट राजा कहा है। शशांक ने बौद्ध धर्म के विरुद्ध बहुत से कार्य किये। उसने कुशीनगर तथा वाराणसी के बीच सभी बौद्ध विहारों को क्षतिग्रस्त कर दिया। गया के बोधि वृक्ष को काट डाला। बुद्ध के पद चिन्हों से अंकित पत्थरों को गंगा में फेंक दिया। बुद्ध की मूर्ति के स्थान पर शिव की मूर्ति स्थापित की। शशांक ने श्री शशांक की उपाधि अंकित किये 票 सोने के सिक्के चलाये। इन सिक्कों में एक तरफ शिव अपने बैल नन्दी के साथ लेटे हुए है और उसके पीछे अर्द्धचन्द्र का मुद्रालेख ‘शशांक’ है। इन सिक्कों के दूसरी ओर कमल के ऊपर खड़ी लक्ष्मी का चित्र है।
आत्मकथा का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?
शशांक की उपलब्धियाँ- शशांक एक वीर और कूटनीतिज्ञ शासक था। उसका राज्य बंगाल से वाराणसी तक फैला हुआ था। वह अपने राज्य का विस्तार कन्नौज तक करना चाहता था इसीलिए उसने देवगुप्त से सन्धि की देवगुप्त और राज्यवर्धन की शत्रुता में उसने देवगुप्त का साथ दिया और राज्य वर्धन को धोखे से मार डाला और हर्षवर्धन को अपना शत्रु बना लिया। इतना होते हुए भी उसे बंगाल का प्रथम शक्तिशाली शासक माना जा सकता है। यद्यपि शशांक की मृत्यु का वर्ष ज्ञात नहीं है तथापि विद्वानों ने उसकी मृत्यु का वर्ष सन् 619 ई. स्वीकार किया है।