शक सातवाहन संघर्ष – प्राचीन काल में भारत पर आक्रमण करने वाली जातियों में शकों का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि शकों ने भारत के एक बड़े भू-भाग पर शासन किया और भारत की तत्कालीन राजनीति को बहुत प्रभावित किया। शक मूलतः सीरदरिया में निवास करने वाली एक बर्बर खानाबदोश एवं पर्यटनशील जाति थी। दूसरी शताब्दी ई.पू. के मध्य में यु-ची जाति से पराजित होने के कारण उन्हें अपना मूल निवास स्थान छोड़ना पड़ा। मूल निवास स्थान छोड़ने के बाद यह जाति दो भागों में विभाजित हो गयी। उसकी एक शाखा के शक, पार्थियन नरेश मिश्रदातद्वितीय से पराजित होने के बाद वहाँ से भागकर अफगानिस्तान की हेमन्द घाटी में आए और यहीं पर बस गए। शकों ने यहाँ लम्बे समय तक निवास किया और वह क्षेत्र सीस्तान के नाम से जाना गया। वहाँ से शक कन्धार एवं बोलन दर्रा होते हुए सिन्धु नदी घाटी में आ पहुँचे। शकों के इस क्षेत्र में निवास के कारण इस क्षेत्र को शकद्वीप कहा गया। इसी स्थान से शकों ने भारतीय क्षेत्र पर आक्रमण किया।
पश्चिमी भारत के अधिकांश भाग पर उस समय यवनों का शासन था। यवन सत्ता को समाप्त करके शकों ने पश्चिमोत्तर भारत के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया। भारत में भी शक कई शाखाओं में विभाजित थे। शकों की अलग-अलग शाखाओं ने तक्षशिला, मथुरा, महाराष्ट्र एवं उज्जैन में काफी लम्बे समय तक शासन किया। शक नरेशों के भारतीय प्रदेशों के शासक क्षत्रप कहे जाते थे। शकों की कुल पाँच शाखाएं थीं
- अफगानिस्तान की शाखा
- तक्षशिला की शाखा
- मथुरा की शाखा
- उज्जैन की शाखा
- दक्कन की शाखा (महाराष्ट्र की शाखा))
पश्चिमी भारत के भू-भाग पर शासन करने वाले शकों के दो वंशों के अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं
- महाराष्ट्र के क्षहरात वंश
- सुराष्ट्र अथवा मालवा का चष्टन वंश
क्षहरात वंश
भूमक- भारतीय प्रदेश में शक-शासक कई क्षेत्रों में विभाजित हो गए। कुछ ने मथुरा, कुछ ने तक्षशिला और कुछ ने पश्चिमी भारत के क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। तक्षशिला के प्रारम्भिक महत्वपूर्ण शासकों में भूमक का नाम उल्लेखनीय है। इस वंश के साम्राज्य क्षेत्र के अन्तर्गत महाराष्ट्र, लाट एवं सुराष्ट्र प्रदेश आते थे। इस वंश का पहला शासक भूमक था। अभिलेखों में इसे महाराज भोग कहा गया है। उसका साम्राज्य पूर्व में मथुरा तक विस्तृत था। इस शासक के सिक्के गुजरात, कठियावाड़ और मालवा क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं। इन सिक्कों पर लिखे लेख खरोष्ठी एवं ब्राह्मी भाषा के हैं। सामान्यतयः भूमक के शासन काल का प्रारम्भिक समय 50 से 60 ई. के बीच माना जाता है। इतिहासकार डी.सी. सरकार का मत है कि जिन क्षेत्रों पर इसका अधिकार था वहाँ पर ब्राह्मी एवं खरोष्ठी लिपियों का प्रचलन था। उनके अनुसार भूमक राज्य के अन्तर्गत मालवा, सौराष्ट्र, गुजरात के अतिरिक्त राजस्थान राज्य का कुछ क्षेत्र एवं सिन्धु प्रदेश भी शामिल था। इसने प्रायः 75 से 80 ई. तक शासन किया।
नहपान- नहपान इस वंश का सबसे प्रतापी एवं शक्तिशाली शासक था। इसके सम्बन्ध में जानकारी का प्रमुख स्रोत उसके द्वारा चलवाये गए सिक्के हैं। इसके सिक्के अजमेर एवं नासिक क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं। इसका महाराष्ट्र के नासिक एवं पूना क्षेत्रों पर अधिकार था। सम्भवतः उसने इन क्षेत्रों को सातवाहनों से जीता था। परीव्वस के अनुसार उसकी राजधानी मिन्नार (मी) में स्थित थी। इसने 119 ई. से 125 ई. तक शासन किया। यह सातवाहन शासक गौतमी पराजित हुआ (पुत्र सातकर्णी द्वारा और मार डाला गया। जोगल थम्बों से नहपान के सिक्कों का एक ढेर प्राप्त हुआ है। जिसको सातकर्णी ने अपनी तरह से पुनः अंकित करवाया है। जो इस बात का प्रमाण है कि सातवाहन शासक शातकर्णी ने उसके कोषागार पर अधिकार कर लिया था। नहपान के बाद उसके किमी उत्तराधिकारी के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती है। इसके साथ ही उसके वंश एवं शक्ति का अन्त हो गया।
कार्दमक/ चष्टन वंश
क्षहरात सत्ता के समाप्त हो जाने के बाद पश्चिमी भारत में एक नए वंश की स्थापना हुई। इतिहास में इस शक वंश को इसके संस्थापक चष्टन के नाम पर चष्टन वंश कहा जाता है। इसका एक दूसरा नाम कार्दमक वंश भी है। चष्टन के पिता का नाम यसामोतिक था। नहपान की मृत्यु के बाद इसे (चष्टन को) दक्षिणी पश्चिमी प्रान्त का वायसराय नियुक्त किया गया। बाद में अवसर का लाभ उठाकर उसने अपने आप को स्वतन्त्र कर दिया और महाक्षत्रप की उपाधि धारण की। उसके जीवनकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि उज्जयिनी की विजय थी। उज्जयिनी क्षेत्र को उसने सातवाहनों से जीता था।
जय दामन चष्टन का पुत्र और उत्तराधिकारी जयदामन हुआ। इसके अन्धों अभिलेख में इसके नाम के साथ किसी उपाधि का उल्लेख नहीं किया गया है। यह कभी महाक्षत्रप नहीं बन सका। मुद्राओं पर भी इसकी उपाधि केवल क्षत्रप ही मिलती है। चष्टन इसके समय तक जीवित रहा और प्रशासनिक कार्य से सम्भवतः उसी मदद भी करता रहा होगा भाण्डारकर का मत है कि जय दामन के समय सातवाहनों ने शकों को पराजित किया था। लेकिन ऐसा तर्क असंगत लगता है क्योंकि इसका कोई अभिलेखीय एवं साहित्यिक प्रमाण प्राप्त नहीं होता।
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शक सातवाहन संघर्ष
पश्चिमी भारत पर अपना-अपना आधिपत्य स्थापित करने के निमित्त शकों तथा सातवाहनों के बीच एक दीर्घ संघर्ष चला जो इतिहास में शक सातवाहन संघर्ष के नाम से जाना जाता है। उसका प्रारम्भ शकों की क्षहरात शाखा के समय हुआ उस शाखा का प्रथम शासक भूमक था। उसने सातवाहन शासित मालवा आदि प्रदेशों को जीत लिया। उसके बाद नहपान शासक हुआ जिसके नेतृव्य में शकों ने सातवाहनों को मालया अपरान्त और महाराष्ट्र से बाहर खदेड़ दिया तथा उनके प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। यह घटना शातकर्णि प्रथम के उत्तराधिकारियो के काल में घटी। सातवाहनों के अन्धकार युग का अन्त गौतमीपुत्र सातकर्णि के नेतृत्व में हुआ। उसने समकालीन शक शासक नहपान को पराजित कर पुनः सातवाहन प्रदेशों को अर्जित कर लिया। उसके बाद सातवाहनों का अगला शासक उसका पुत्र वाशिष्ठीपुत्र पुलुमावी हुआ जिसका सामना शकों की कार्दमक शाखा के शासक रुद्रदामन से हुआ। रुद्रदामन ने उसे परास्त कर अधिकांश सातवाहन प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। शक सातवाहन संघर्ष का अन्तिम चरण सातवाहन नरेश यशश्री सातकर्णि के समय प्रारम्भ हुआ। उसने रुद्रदामन द्वारा जीते गए अधिकांश सातवाहन प्रदेशों पर पुनः अधिकार कर लिया। उसके समय ही शक सातवाहन संघर्ष का भी अन्त हो गया।
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