शैक्षिक निर्देशन की प्रकृति बताइये ?

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शैक्षिक निर्देशन की प्रकृतिके स्वभाविक एवं सहेतु शिक्षा का विशेष महत्व है, परन्तु शिक्षा के द्वारा वांक्षित विकास की दिशा में अप्रसरण केवल तभी सम्भव है जब प्रत्येक बालक को अपनी वैयक्तिक विभिन्नताओं के अनुरूप विकास का अवसर प्राप्त हो। साथ ही विकास की प्रक्रिया, सतत् रूप से संचालित होती रहे, इसके लिए विभिन्न प्रकार की शैक्षिक समस्याओं का समाधान भी आवश्यक है। निर्देशन का यही कार्य है। शिक्षा के सहगामी अंश के रूप में विधार्थी के समक्ष उत्पन्न होने वाली समस्याओं के समाधान हेतु उसे सक्षम बनाने तथा उसकी रूचि स्तर योग्यता आदि के अनुरूप शिक्षण-अधिगम की परिस्थितियों का चयन करने में निर्देशन सहायक है।

शिक्षा की समस्त प्रक्रिया में अधिगम ही वह आधार होता है कि जिसकी दिशा में समस्त प्रयास किए जाते हैं तथा जिसके द्वारा यह ज्ञात हो जाता है कि किए गये प्रयास किस सीमा तक सफल रहे हैं। अधिगम के वर्गीकृत उद्देश्यों के आधार पर अधिगम से सम्बन्धित यह जानकारी प्राप्त हो जाती है यही कारण है कि अधिगम के सम्बन्धित समस्याओं को, शैक्षिक निर्देशन के अन्तर्गत यथेष्ट महत्व प्रदान किया जाता है। वेबर के अनुसार ‘शिक्षा निर्देशन चेतना अनुभूति प्रयत्न हैं, जिसके द्वारा व्यक्ति की बौद्धिक विकास में सहायता प्रदान की जाती है।…. कोई भी चीज जो शिक्षण या सीखने के साथ की जाती है, शैक्षिक निर्देशन के अन्तर्गत आती है।”

टी० ए० टी० से आप क्या समझते है ?

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