शैक्षिक निर्देशन के आधारभूत सिद्धान्त कौन-कौन से है ?

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शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त –

शैक्षिक निर्देशन के आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

(1 ) निर्देशन सभी छात्रों को प्राप्त होना चाहिए- निर्देशन सेवाएँ कुछ गिने-चुने छात्रों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। इससे निर्देशन अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर पायेगा। निर्देशन अपने उद्देश्यों में केवल उसी समय सफल हो सकता है। जब निर्देशन सेवाएँ समस्त छात्रों को उपलब्ध हो।

(2) प्रमापीकृत परीक्षाएँ प्रयोग की जायँ विद्यालय में प्रवेश लेने पर प्रमापीकृत परीक्षाएँ छात्रों पर लागू की जायें। इन परीक्षाओं के परिणाम छात्र की किसी पाठ्यक्रम में सफलता के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करेंगे। इसके अलावा अन्य समयों पर भी अप्रमापीकृत परीक्षाओं की अपेक्षा प्रमापीकृत परीक्षाएँ सदैव अच्छी रहती है।

( 3 ) समस्या समाधान प्रारम्भ हो उचित यह है कि रोग की चिकित्सा प्रारम्भ में ही करा ली जाय। इस प्रकार यदि निर्देशन से सम्बन्धित छात्र को कोई समस्या पैदा होती है तो उस समस्या का समाधान समस्या के गम्भीर होने से पूर्व ही कर लेना चाहिए।

(4) उचित एवं सम्बन्धित सूचनाएँ हों व्यावसायिक तथा शैक्षिक निर्देशन उस समय तक संभव नहीं है जब तक कि पर्याप्त मात्रा में उचित एवं सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्रित नहीं कर ली जायें। सफल निर्देशन हेतु पर्याप्त सूचनाएँ जरूरी है।

(5) अनुगामी अध्ययन हो निर्देशन की सफलता की जाँच करने हेतु छात्र का व्यवसाय में लग जाने के पश्चात् अनुगामी अध्ययन (Follow up Study) अत्यन्त आवश्यक है। अपने व्यवसाय में छात्र सफल हुआ या नहीं, इसी के ज्ञान से निर्देशन सेवाओं की सफलता या असफलता का पता लग जाता है। अतः व्यवसाय में लगे हुए छात्र की सफलता एवं असफलता का अध्ययन जरूरी है। ?

भारतीय संविधान में उल्लिखित शैक्षिक बिन्दुओं का विवेचन कीजिए।

(6) विद्यालय तथा माता-पिता के मध्य गहरा सम्बन्ध स्थापित किया जाय इस प्रकार शैक्षिक निर्देशन के द्वारा छात्र समाज घर गृहस्थी, माता-पिता, मित्रमण्डली. पास-पड़ोस आदि के सम्बन्ध में पूरी-पूरी आर्थिक तथा सामाजिक जानकारी प्राप्त कर लेता है।

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